Book Title: Adhyatmik Gyan Vikas Kosh
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Rushabhratnavijay

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ सुगरी ने वानर को उपदेश दिया तो वानर ने उसका ही घर-माला तोड़ दिया। LOGO ॐ माध्यस्थ भावना प्रतिवीर प्रभु का माध्यस्थ भाव । दोष- पाप युक्त जीवन जीनेवाले को समझाने के बावजूद भी न माने तो उनकी उपेक्षा करना। सुधारने के बावजूद भी न सुधरे तो उनकी उपेक्षा करना । लेट-गो करना अन्यथा वह हठीला बन जाता है। आपको उसके प्रति दुर्भाव होगा अतः माध्यस्थ भाव रखना । dos MINE प्रभु वीर ने जमाई जमाली को समझाया फिर भी नहीं माना तो प्रभु माध्यस्थ भाव रखा । धरणेन्द्र द्वारा की जाती उपासना तो दुसरी और कमठ द्वारा किए जाते उपसर्ग में भी धारण करनेवाले राग-द्वेष मुक्त श्री पार्श्वनाथ प्रभु । 'तुल्य भाव तिहार

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24