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- १. ज्ञान २. भाव और ३. संकल्प । चेतना के इन तीनों पक्षों के सम्यक् विकास के लिए ही त्रिविध साधनामार्ग का विधान किया गया है। चेतना के भावात्मक पक्ष को सही दिशा में नियोजित करने के लिए सम्यक् दर्शन, ज्ञानात्मक पक्ष के सही दिशा में नियोजन के लिए सम्यक् ज्ञान और संकल्पात्मक पक्ष को सही दिशा में नियोजित करने के लिए सम्यक् चारित्र का प्रावधान किया गया है।
जैन दर्शन के समान ही बौद्ध दर्शन में भी त्रिविध साधनामार्ग का विधान है।
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बौद्ध-दर्शन के इस त्रिविध साधनामार्ग के तीन अंग है - १. शील, २. समाधि और ३. प्रज्ञा १७
हिन्दू धर्म के ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग भी त्रिविध साधना मार्ग का ही एक रूप है। गीता में प्रसंगान्तर से त्रिविध साधनामार्ग के रूप में प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा का भी उल्लेख हैं । इसमें प्रणिपात श्रद्धा का परिप्रश्न ज्ञान का और सेवा कर्म का प्रतिनिधित्वं करते हैं। उपनिषदों में श्रवण, मनन और निदिध्यासन के रूप में भी त्रिविध साधनामार्ग का प्रास्तुतीकरण हुआ है। यदि हम गहराई से देखें तो इनमें श्रवण श्रद्धा के, मनन ज्ञान के और निदिध्यासन कर्म के अन्तर्भूत हो सकते हैं। पाश्चात्य परम्परा में भी तीन आदेश उपलब्ध होते है - १. स्वयं को जानो (Know Thyself), २. स्वयं को स्वीकार करो (Accept Thyself) और ३. स्वयं ही बन जाओ (Be Thyself) ९९ पाश्चात्य चिन्तन के तीन आदेश ज्ञान, दर्शन और चारित्र के ही समकक्ष हैं। आत्मज्ञान में ज्ञान का तत्त्व, आत्मस्वीकृति में श्रद्धा का तत्त्व और आत्मनिर्माण में चारित्र का तत्त्व उपस्थित है।
जैन दर्शन बौद्ध दर्शन हिन्दू धर्म गीता
परिप्रश्न
प्रणिपात
सेवा
सम्यक् ज्ञान प्रज्ञासम्यक् दर्शन समाधि
सम्यक् चारित्र शील
ज्ञान
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भक्ति
कर्म
उपनिषद
मनन
श्रवण
निदिध्यासन
त्रिविध साधनामार्ग और मुक्ति
कुछ भारतीय विचारकों ने इस त्रिविध साधनामार्ग के किसी एक ही पक्ष को मोक्ष की प्राप्ति का साधन मान लिया है। आचार्य शंकर मात्र ज्ञान से और रामानुज मात्र भक्ति
जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : ७
पाश्चात्यदर्शन
Know Thyself
Accept Thyself
Be Thyself
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