Book Title: Adhyatmavada aur Vigyan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya Vidyapith ShajapurPage 12
________________ चारित्र कही जाती है। जहां तक नैतिकता के वैयक्तिक दृष्टिकोण का प्रश्न है अथवा व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का प्रश्न है, निश्चयात्मक चारित्र ही उसका मूलभूत आधार है। लेकिन जहां तक समाजिक जीवन का प्रश्न है, चारित्र का बाह्य पक्ष ही प्रमुख है। निश्चय दृष्टि (Real view point) से चारित्र का सच्चा अर्थ समभाव या समत्व की उपलब्धि है। मानसिक या चैतिसिक जीवन में समत्व की उपलब्धि यही चारित्र का पारमार्थिक या नैश्चयिक पक्ष है। वस्तुत: चारित्र का यह पक्ष आत्म- रमण की स्थिति है। नैश्चयिक चारित्र का प्रादुर्भाव केवल अप्रमत्त अवस्था में ही होता है । अप्रमत चेतना की अवस्था में होने वाले सभी कार्य शुद्ध ही माने गए हैं। चेतना में जब राग, द्वेष, कषाय और वासनाओं की अग्नि पूरी तरह शांत हो जाती है, तभी सच्चे नैतिक एवं धार्मिक जीवन का उद्भव होता है और ऐसा ही सदाचार मोक्ष का कारण होता है। साधक जब जीवन की प्रत्येक क्रिया के सम्पादन में आत्म- जाग्रत होता है, उसका आचरण बाह्य आवेगों और वासनाओं से चलित नहीं होता है, तभी वह सच्चे अर्थो में नैश्चयक चारित्र का पालन-कर्ता माना जाता है । यही नैश्चयिक चारित्र मुक्ति का सोपान कहा गया है। व्यवहार चारित्र व्यवहार चारित्र का सम्बन्ध आचार के नियमों के परिपालन से हैं। व्यवहार चारित्र को देशव्रती चारित्र और सर्वव्रती चारित्र ऐसे दो वर्गों में विभाजित किया गया है। देशव्रतीचारित्र का सम्बन्ध गृहस्थ उपासकों से और सर्वव्रतीचारित्र का सम्बन्ध श्रमण वर्ग से है। जैन-परम्परा में गृहस्थाचार के अन्तर्गत अष्टमूलगुण, षट्कर्म, बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमाओं का पालन आता है। श्रमणाचार के अन्तर्गत पंचमहाव्रत, रात्रि भोजन निषेध, पंचसमिति, तीन गुप्ति, दस यतिधर्म, बारह अनुप्रेक्षाएं, बाईस परीषह, अट्ठाइस मूलगुण, बावन अनाचार आदि का विवेचन उपलब्ध है। इसके अतरिक्त भोजन, वस्त्र, आवास सम्बनधी विधि - निषेध भी हैं। साधनत्रय का पूर्वापर सम्बन्ध दर्शन, ज्ञान और चारित्र की पूर्वापरता को लेकर जैन विचारणा में कोई विवाद नहीं है। जैन आगमों में दर्शन की प्राथमिकता बताते हुए कहा गया है कि सम्यक् दर्शन Jain Education International जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : ११ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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