Book Title: Adhyatmavada aur Vigyan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 30
________________ धर्म का धंधा -डा. सागरमल जैन आज धर्म भी एक धन्धा है, धन्धा होकर भी अन्धा है। इस धन्धे मे होती है, सौदे बाजी, यहाँ भगवान को भी रिश्वत दी जाती है। एक रुपये और नरियल में, पास कराने की गारन्टी ली जाती है। एक-दो परसेन्ट की पार्टनरशिप में, शेष सब हडप जाने की साजिश भी यहाँ होती है। भगवान को भेंट के नाम पर, फुसलाया जाता है। फिर अपना काम निकालकर, तिलक करने के बहाने, अंगठा दिखाया जाता है। प्रभु का प्रसाद बताकर, सब कुछ हडप कर लिया जाता है। धर्म के साईनबोर्ड के नीचे धर्म का बाना पहन खड़ा शैतान अपने स्वार्थ की दुकान चलाता है। वाक् जाल की माया से खूब दौलत बटोरता है। चमत्कारो के चकमे दिखाकर जनता को उल्लू बनाता है। स्वर्ग का परवाना और नरक का भय दिखाकर जैन अध्यात्मवाद : आधुनिक संदर्भ में : २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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