Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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॥ श्रीमदुपाध्यायकृता अध्यात्ममतपरीक्षा ॥
"
॥ नमः ॥
ऐंकारकलितरूपां स्मृत्वा वाग्देवतां विबुधवन्द्याम् ॥ अध्यात्ममतपरीक्षां स्वोपज्ञामेष विवृणोमि ॥ १ ॥ तत्रेयं प्रथमगाथा ॥ पणमिय पास जिणिदं वंदिय सिरिविजयदेवसूरिन्दं ॥ अज्झप्पमयपरिक्त्स्वं जहबोहमिमं करिस्सामि ॥१॥
'प्रणम्य पार्श्वजिनेन्द्र वन्दित्वा श्रीविजयदेवसूरीन्द्रम् | अध्यात्ममतपरीक्षां यथाबोधमिमां करिष्यामि ॥ १ ॥
इह हि प्रन्थारम्भे शिष्टाचारपरिपालनाय विघ्नध्वंसाय वा मङ्गलमवश्यमाचरणीयमिति मनसिकृत्य पूर्वार्द्धन समुचि तेष्टयोर्देवगुर्वीः प्रणतिलक्षणं मङ्गलमकारि, उत्तरार्द्धेन च प्रेक्षावदवधानाय विषयनिरूपणं प्रत्यज्ञायि, प्रयोजनसम्बन्धा|धिकारिणस्तु सामर्थ्यादवबोद्धव्याः ॥ १ ॥ ननु सन्दिग्धो जिज्ञासितश्चार्थः परीक्षाक्षोदें क्षमते न तु निर्णीत एव, तथा च स्वत एव विशदस्याध्यात्ममतस्य परीक्षा कथमिव नानुकुरुते सुधामधुरीकारप्रयासमितिचेत् ? भवेदेवं यदिभावाध्यात्ममतं परीक्षणीयतया लक्षितं भवेनचैवं किंतु नामाध्यात्मिकानामेवाशाम्बरमतवासनावासितान्तःकरणतया दुर्ललितचरितानां भ्रान्तिविषयोऽर्थो बाधकप्रदर्शनेन मध्यस्थानामनुपादेयताबुद्धावधिरोप्यत इत्याशयवानाह - अझप्पं णामाई चउविहं चउविहाय तवन्ता । तत्थ इमे अत्थुज्झिय णामेणज्झप्पिआ णेया ॥ २ ॥ अध्यात्मं नामादि चतुव्विधं चतुव्विधाश्च तद्वन्तः ॥ तत्रेमेऽर्थोज्झिता नाम्नाऽध्यात्मिका ज्ञेयाः ॥ २ ॥ अभ्यासं २ अनुसरति
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