Book Title: Adhyatma Ratnamala
Author(s): Korshibhai Vijpal Jain
Publisher: Korshibhai Vijpal Jain
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(५२७) वितरतु दधती पविं क्षतोद्य
तततिमिरं मदभासुराऽजिता शम् ॥४॥ श्रीसंभवनाथजिनेन्द्र-स्तुतिः । (३)
(आर्यागोति-वृत्तम् ) निभिन्नशत्रुभवभय !, शं भवकान्तारतार तार ! ममाऽरम् । वितर जातजगत्रय !, शंभव ! कान्तारतारताऽरममारम् ॥१॥ आश्रयतु तव प्रणतं, विभया परमा रमाऽरमानमदमरैः। स्तुत रहित जिनकदम्बक !, विभयाऽपरमारमारमानमदमरैः।२। जिनराज्या रचितं स्ता-दसमाननयानया नयायतमानम् । शिवशर्मणे मतं दध-दसमाननयानयानया यतमानम् ॥३॥ शृङ्खलभृत् कनकनिभा, या तामसमानमानमानवमहिताम् । श्रीवजशृङ्खलां कज-यातामसमानमानमाऽनवमहिताम् ॥४॥ श्रोअभिनन्दनजिनेन्द्र-स्तुतिः। [४]
(द्रुतविलम्बित-वृत्तम् ) त्वमशुभान्यभिनन्दन नन्दिता
सुरवधूनयनः परमोदरः । स्मरकरीन्द्रविदारणकेसरिन् !,
सुख धूनय नः परमोऽदरः .. ॥ १ ॥ जिनवराः प्रयतध्वमितामया,
मम तमोहरणाय महारिणः ।.......

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