Book Title: Adhyatma Prakaran Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand Publisher: Hirachand Vajechand View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. हाल थोडा वरसथी जिन धर्मनां पुस्तको उपाववा संबंधी तजवीज थवालागी जोवामां आवे. प्रथमतो ज्यारे तिर्थकर विचरता हता ने केवली समुदाय साधुना विहार चालु हता,त्यारे तमाम प्रकारनी देशना माहोमेथी देवामां आवती हती;छेवट बेला तिर्थकर श्री महाविर स्वामीना निर्वाण पछी केटलाक वरस सधी पुस्तको थयां जणातां नथी. ज्यारे माणसनी बुद्धिमंद थती चाली, अने ते समयना श्राचार्योना विचारमा श्राव्यु के पुस्तको वगर पागल उपर धर्मनी वातनो आधार रहेशे नहीं, ते उपरथी पुस्तको लखवानं चाल्यु. अने ते ताड पत्र त्रादि वस्तु उपर घणी ज महेनतथी लखवामां आवतां;तेम टकवामां पण ते पुस्तको घणा कालसुधी चालतां;तेमांना कोई पुस्तको अद्यापिसुधी पण हशे. हाल केटलाक वरसोथी गपवानी कला प्रसिद्ध थएली,पण तेनों लाभ लेवामां जिन धर्मवाला एकदम पागल पडेला जोवामां आवता नथी. तेन कारण के तेन धर्म पुस्तको अत्यंत मानमां गणे,अने ते पुस्तको ज्यांहां त्यांहां जेवी तेवी जगा मां अथडाय तथा बीजी केटलीक पाशातना लागे तेथी ज्ञाननी विराधना थाय अने ज्ञानावर्णी कर्म बंधाय एवा हेतथी पुस्तको छपावता नोहोता.पण घणा लाभमांPage Navigation
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