Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand
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श्रीसम्यकद्वार.
निथयव्यवहारनोवणियसिहसासणंजीणीदांणंए।गय रपरीवाश्रमीथसंकादउजेयया॥३॥ जईजीणमईयंपव जहंतो॥माववहारनयमयंमुयहाविवहारपरीवाए|तित्छू छेप्रोजउवसं॥४॥हवेचारगाथानोअर्थकाहएछियछउम थसमयंके० छदमस्थनोकाल॥चपुन्यजाके जिहांसुधीछे एटलेजिहांसुधि छदमस्थपणुंछे केवलज्ञांनउपन्यूनथि त्यांसूधि।व्यवहारनिया'सारणीसूवाके०॥सरवेकिरीया जेव्यवहारनयनंसारणीकहिछे श्रीतीर्थंकरदेवे ततहस मीयरंतोके०॥तेआचरतोथको अंगीकारकरतोथको जि वसिझिहके०॥सिधिथाए कर्मरहितथाए सवोविके०॥स वनव्यजीव विसूधमणोके ॥जेभव्यजिवकपटपणेरहित व्यवहारनयनिकिरीयाकरतोथकोकर्मरहितथाएएप्रथम गाथानोअर्थ॥१॥ एगाथामांहेविसूधमणोंएपदेकरीनेनि श्वेपणकयो हवेबिजीगाथामांहेनिश्चेथकिव्यवहारबलि ष्टछेतेदेखाडेछ।संव्यवहारोबीबलिके०॥समेक्यविवहार तेजेउनोउक्तं सूधव्यवहारछेतेबलिष्टछे तेसामाटेजे सम सुधंग्रीगहिअंसूपवहिएज्यंके०॥ एतएशुधश्राधाकर्मादि दोष दूष्टाहारामिदकगहियंके०॥पहवोसूरावहीयंके०॥
धिकरीने एटलेछदमस्थे पोतानाजांणपणा थि सूधमांनजाणिनेवोहरे अनेनिश्चेथकितोकेवलप्राधा कर्मादिकसहितत्राहारछे तोहिपणकांई नसपणोके०॥

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