Book Title: Adhyatma Prakaran
Author(s): Hukammuni, Hirachand Vajechand
Publisher: Hirachand Vajechand
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श्रीवास्तुकपुजा.
तजो ॥ मन०॥ तजो ब्रह्मनोज मुल ॥ मन०॥ बीजे श्रंगे नाखीयुं ॥ मन० ॥ सातमी नरकनुं सुल|| मन०८ ॥ वास्तु करो तुमे ज्ञानमां ॥मन ॥ स्व स्वभाव धार ॥ मन० ॥ जन्म मरण जेहथी टले ॥ मन० ॥ पामे सुख उदार ॥ म न० ९ ॥ श्री शांती बींब पधरावी ॥ मन० ॥ वास्तुक करो उदार ||मन०|| मुनी हुकम ए वास्तुथी ॥ मन० ॥ होवे मंग लमाल||मन ० ॥ पुजा त्रीजी संपूर्ण काव्य प्रथम प्रमाणे
पुजा चोथी ॥ दुहा ॥ एम जव जव हुं जम्यो ॥ श्र शुध वास्तुक कीध ॥ हवे सुध वास्तुक श्रादरुं ॥ सदगु रु वचनथी ली ॥१॥ ढाल ४ थी ॥ ए गिरीवर दर सन जेह ॥ ए देशी || सदगुरु मलीयारे ज्यारे ॥ पा म्यो वंछीत हूं व्यारे ॥ उपदेश सुण्यो जब जास ॥ पा म्यो हुं ज्ञान उलास ॥ सदगुरु मलीयारे ज्यारे ॥ पा म्यो वंछीत हूं त्यारे॥१॥ ए क ॥ जाण्यो जब शत्रु जेह ॥ राग द्वेष मोह तेह | अंतरमांथी ते खसीयुं ॥ तव वेरागे मन ते वसीयुं ॥सद ० २ ॥ समकीत तव तें पाम्यो ॥ मिथ्यात्व ते दुरे वाम्यो || गुणठाणुं चोथुं ते सार ॥ बीज चंद्रसम उदार ॥ सद० ३|| सुमती तव घ रमां श्रावी ॥ कुमती तव दुरेरे जावी ॥ तव दीपक थयो घरमांही ॥ दीठी वस्तु पोतानी त्यांही ॥ सद० ४ ॥ ज्ञा नादीक गुण ते दीठा ॥ मुज मन लागे ते मीठा ॥ श्र

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