Book Title: Adhidwipna Nakshani Hakikat
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 204
________________ 172 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. यावत् तेरमे प्रतरे बे सागरोपम जाजेरा कहेवा. अने जघन्य तो सौधर्म देवलोकना तेरे प्रतरे एक पल्योपम पूर्ण श्रायु जाणवू. अने ईशान देवलोके जघन्यथी एक पल्यो पम उपर पढ्योपमनो असंख्यातमो नाग अधिक एटली स्थिति प्रतरे प्रतरे कहेवी. हवे इंजना लोकपालोनुं श्रायु कहे . सघला इंजना लोकपाल पोतपोताना देव लोकना बेहला प्रतरे इंजना विमाननी फरता चारे दिशाये चार लोकपाल रहे, ते लोकपाल पोतपोताना विमानना धणी , तथापि तेमनुं श्रायु या प्रमाणे बे. सौधर्मे ना सोम अने यम ए बे लोकपाल, उत्कृष्टायु एक पख्योपमनी उपर एक पटयोपमना त्रण नाग मांहेलो एक नाग जाणवू. अने वरुणर्नु देशे जणां बे पट्योप मायु जाणवू तथा वैश्रमण- उत्कृष्टायु बे पत्योपम पूर्ण जाणवू. ईशानेज्ना सोम तथा यमर्नु उत्कृष्टायु एक पक्ष्योपमनी उपर एक पट्योपमना त्रण नाग करीये, तेवा बे जाग जाणवा. तथा वरुण- आयु बे पढ्योपम पूर्ण जाणवू. अने कुबेरनुं बे पट्योपमनी उपर एक पक्ष्योपमना त्रण नाग करीये तेवू एक नाग जाणवू, तथा सौधर्मेजना पुत्र सरखा अपत्य देवो, आयु एक पक्ष्योपम जाणवू. हवे सनत्कुमारादि देवलोके प्रतरे प्रतरे उत्कृष्ट जघन्य स्थिति जाणवा नणी उपाय कहे . जेम के सौधर्मदेवलोके उत्कृष्टी स्थिति बे सागरोपम ने अने सनत्कुमार देवलोके उ त्कृष्टी स्थिति सात सागरोपम डे, तेमांथी बे सागरोपम काहाढीये, बाकी पांच साग रोपम रहे, तेने सनत्कुमारना बार प्रतर जे. तेनो नाग पहोंचे नही, माटे एकेक साग रना बार बार नाग करीये, तेवारे पांच सागरना शाप नाग थाय, तेने बार नागे वहें चतां एकेक प्रतरे पांच पांच जाग आवे, तिहां पहेले प्रतरे एक आंक बे, माटे पांच एकां पांच नाग श्रावे. तेनी साथे सौधर्म देवलोकनी उत्कृष्ठी स्थिति बेसागरोपमबे,ते नेलीये,तेवारे पहेले प्रतरे बे सागरोपमनी उपर बारश्या पांच जाग आयु जाणवू. बीजे प्रतरे बे श्रांक बे तो पांच 5 दश नाग बारश्या आवे,तेवारे बे सागरोपम उपर दशना गायु जाणवू, त्रीजे प्रतरे त्रण आंक , तो पांच त्रिक पन्नर जाग आवे, तेमां बार जागर्नु एक सागरोपम थाय. उपर त्रण नाग वधे, तेनी साथे बे सागरोपम नेलतांत्रण सागरने बारश्या त्रण नागायु जे. एम यावत् बारमे प्रतरे सात सागरोपम उत्कृष्टा यु थाय. अने जघन्य स्थिति तो बारे प्रतरे सनत्कुमार देवलोकनी बे सागरोपमनी जा णवी. तेमज चोथा माहेंज देवलोके प्रतरे प्रतरे सनत्कुमार देवलोकथी साधिक स्थि ति कहेवी. ए प्रमाणे पांचमा ब्रह्म श्रादिक देवलोके पण प्रतरे प्रतरे आयुः जाणवा, माटे एज उपाय करवो, ए सर्वना यंत्रोनी स्थापना आगल करी , ते जोवू.

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