Book Title: Adhidwipna Nakshani Hakikat
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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________________ 170 देवादिक संबंधि आयु प्रमुखना यंत्रो. " 4 माहेंडें उत्कृष्टधी पथ्योपमना असंख्यातमे जागे अधिक सात सागरोपम अने जघन्यथी बे सागरोपम जाजेलं जाणवं. 5 ब्रह्मदेवलोके उत्कृष्ट दश सागरोपम अने जघन्यथी सात सागरोपम. 6 लांतक देवलोके उत्कृष्ट चौद सागरोपम, अने जघन्यथी दश सागरोपम. 7 शुक्रदेवलोके उत्कृष्ट सत्तर सागरोपम. अने जघन्यथी चौद सागरोपम. सहस्रारे उत्कृष्ट अढार सागरोपम अने जघन्य सत्तर सागरोपम. ए आनत देवलोके उत्कृष्ट उंगणीश सागरोपम अने जघन्यथी अढार सागरोपम. 10 प्राणत देवलोके उत्कृष्ट वीश सागरोपम अने जघन्यथी उंगणीश सागरोपम. 11 श्रारण देवलोके उत्कृष्ट एकवीश सागरोपम अने जघन्यश्री वीश सागरोपम. 12 अच्युत देवलोके उत्कृष्ट बावीश सागरोपम अने जघन्यथी एकवीश सागरोपम. 13 पली नवग्रैवेयके प्रत्येक एकका ग्रैवेयके जघन्य उत्कृष्ट बेहुमां अच्युतदेवलो कथी एकेक सागरोपमनी वृद्धि करीये, तेवारे नवमा ग्रैवेयके उत्कृष्टा एकवीश सागर अने जघन्यथी त्रीश सागरोपमायु थाय. 14 पांच अनुत्तर विमानमांदेला पहेला विजयादि चार विमाने उत्कृष्ट तेत्रीश सा गर अने जघन्य एकत्रीश सागरायु कयुबे, अने पांचमा सर्वार्थसिक विमाने तो अजघन्योत्कृष्ट तेत्रीश सागरोपमायु , एमां वध घट नश्री. हवे वैमानिक देवीयोनुं जघन्य उत्कृष्ट श्रायु कहे जे. वैमानिक देवीयोनी उत्पत्ति मात्र प्रथमना सौधर्म अने ईशान ए वे देवलोकमांज बे, ते देवीयो बे प्रकारनी ने एक तो परिग्रहीता ते परणेली कुलांगना सरखी जाणवी श्रने बीजी अपरिग्रहीता ते वेश्या सरखी जाणवी, ए देववेश्या कहेवाय. 1 तिहां सौधर्मदेवलोके परिग्रहीता अपरिग्रहीता ए बेहुनु जघन्यायु एक पट्यो पम बे, अने ईशान देवलोके बेहुनुं जघन्यायु एक पक्ष्योपम जाजेलं जाणवू. 2 सौधर्म देवलोके परिग्रहीता देवीयो, उत्कृष्टायु सात पक्ष्योपम , तथा अपरि ग्रहीतानुं उत्कृष्टायु पच्चास पस्योपम , तेमज ईशानदेवलोके परिग्रहीतानुं उ स्कृष्टायु नव पट्योपम डे अने अपरिग्रहीतानुं पञ्चावन पर्दयोपम बे. हवे चारे निकायना देवो संबंधि इंसोनी सर्व अंतेउरमा प्रधान मुख्य पट्टराणी स रखी जे देवीयो, तेने अग्रमहीषी कहीये, ते कया कया इंजने केटली केटली होय ? 1 जवनपतिनी पहेली निकायना चमरेंड तथा बलीउने प्रत्येके पांच पांच होय.

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