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भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० ८. वळे असी मसी में कसी तणों, ए तीनूंइ सीखाया छे काम जी।
लोकां ने करवा चलू कीया, तिणसूं करवा लागा ठाम ठाम जी।।
९. तिण रिखभ राजा रे दोय रांणीयां, सुनंदा सुमंगला जांण जी।
ते रूप में अपछरा सारिखी, डाही घणी चुतर सुजांण जी।।
१०. ते लावण जोवन करे सोभती, चोसठ कला तणी जांण जी।
अस्त्रीना सर्व गुणां सहीत ,, त्यांरा जिणवर कीया बखांण जी।।
११. छ लाख पूर्व वरसां तणा, ऋक्षभ जिणंद हवा ताहि जी।
जद सुमंगला रांणी री कूख में, भरत चक्रवत उपना आय जी।।
१२. सवा नवमास पूरा हूआं, भरतजी जन्मीया ताहि जी।
वाहमी जन्मी त्यारे जोडलें, वनीता राजध्यांनी रे माहि जी।।
१३. त्यांरा जन्म महोछव कीया घणा, अनुक्रमें दीयों त्यांरो नाम जी।
सुखे समाधे मोटा हुआ, चंपक वेल ज्यूं गिरी गुफा ताम जी।।
१४. अनुक्रमें अठाणू पुत्र जन्मीया, रांणी सुमंगला ताम जी।
ते सहोदर भाइ भरतजी तणा, त्यांरों पिण जूआ-जूआ नाम जी।।
१५. एक जोडलो सुनंदा राण जन्मीयों, बाहुबल में सुंदरी तांय जी।
पछे सुनंदा राणी तणी, कूख खुली नहीं काय जी।।
१६. एक सो पुत्र में दोय पुत्रीयां, रिषभ देव जी रे हुआ ताम जी।
ते सगलाइ उत्तम जीव छे, ते रूप में , अभिराम जी।।
१७. मोक्षगामी सारा इण भवे, साल रूंख रे साल पिरवार जी।
आठुइ कर्म खपाय नें, सगला जासी मोख मझार जी।