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में नैतिकता की पूर्व मान्यताएं-२३, भारतीय दर्शन में नैतिक मान्यताएं-२३, जैन दर्शन में नैतिकता की पूर्व मान्यताएं--३, आचारांग में नैतिकता की पूर्व मान्य ताएं-२३, आत्मा का स्वरूप-२४, आत्मा का कर्तृत्वभोक्तृत्व-२६, मुक्तात्मा का भावात्मक स्वरूप-२७, निषेध मुखेन आत्मा का स्वरूप-२७, अनिर्वचनोय स्वरूप-२८, आत्मा की अमरता-२८, पुनर्जन्म सिद्धांत२९, आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म-३०, आत्मस्वातन्त्र्य एवं पुरुषार्थवाद-३२, कर्म बन्धन और दुःख का हेतु-६५, कर्म का स्वरूप-३७, आस्रव-३८, बन्ध-३८, बन्धन से मुक्ति के उपाय-३९, बन्धन से मुक्ति की प्रक्रिया-४०,. संवर-४०, निर्जरा-४१,
मोक्ष-सन्दर्भ-४१, सूची-४२ ।। तृतीय अध्याय : नैतिकता को मौलिक समस्याएं और आचारांग
४७-७९ सापेक्ष और निरपेक्ष नैतिकता-४७, नीति की सापेक्षता का प्रश्न और आचारांग-४७, निरपेक्ष नैतिकता और आचारांग-५०, आचारांग में उत्सर्ग और अपवाद मार्ग-५२, महावतों के अपवादः आचारांग के सन्दर्भ में-५२, कर्तव्याकर्तव्य के निर्णय का आधार-५६, नैतिकता के दो रूप-आन्तर और बाह्य-५८, आचारांग में नैश्चयिक नैतिकता-६०, आचारांग में व्यावहारिक नैतिकता-६४, निश्चय और व्यवहार धर्मः कौन अधिक मूल्यवान-६७, वैयक्तिक और सामाजिक नैतिकता-७१, वैयक्तिक नैतिकता और आचारांग-७१, सामाजिक नैतिकता और आचारांग-७३, सन्दर्भ
सूची-७४। चतुर्थ अध्याय : नैतिक प्रमापक और आचारांग ८०-१२०
नैतिक प्रमापक-सिद्धांत-बाह्य नियम-८०, आन्तरिक नियम-८०, साध्य या उद्देश्यमूलक नियम-८०, विधानवाद और आचारांग-८१, विधानवादी सिद्धांत के प्रकार-८२, जातीय विधानवाद-८२, सामाजिक
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