Book Title: Acharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
आचाराङ्गसूत्र स्वरूप एवं विषयवस्तु जैन आगम साहित्य : ____ हिन्दू धर्म में वेद का, बौद्ध धर्म में त्रिपिटक का, ईसाई धर्म में बाइबिल का, इस्लाम धर्म में कुरान का तथा पारसी धर्म में अवेस्ता का जो स्थान है, वही जैनधर्म में अंग आगम ( गणिपिटक ) का है। अंग आगम बारह ग्रन्थों में विभक्त होने से इसे द्वादशांग आगम भी कहते हैं। इन द्वादश अंगों में आचारांग सर्वप्रथम है। वह भगवान् महावीर की वाणी एवं विचारों का प्रतिनिधि ग्रन्थ है।
सम्पूर्ण जैनवाङ्मय चार अनुयोगों में वर्गीकृत है। चार अनुयोग इस प्रकार हैं
(१) द्रव्यानुयोग-इस अनुयोग में तात्त्विक, दार्शनिक और कर्मसिद्धान्त विषयक ग्रन्थ आते हैं।
(२) गणितानुयोग-इस अनुयोग में भूगोल, गणित, ज्योतिष आदि विषयक ग्रन्थ आते हैं।
(३) धर्मकथानुयोग-इस अनुयोग में आख्यानात्मक अर्थात् कलासाहित्य आता है । इसे प्रथमानुयोग भी कहते हैं।
(४) चरणकरणानुयोग-इस अनुयोग में गृहस्थ और मुनियों के आचार सम्बन्धी अर्थात् श्रमणाचार, श्रावकाचार विषयक ग्रन्थ आते हैं।
आगम साहित्य में अध्यात्म के साथ-साथ विविध विषयों का प्रतिपादन हुआ है, यथा-जीवविज्ञान, ज्योतिष-गणित, आयुर्वेद, भूगोल-खगोल, शिल्प-संगीत, स्वप्न-विज्ञान आदि । इस प्रकार जैनागम श्रुतज्ञान की एक विशाल एवं अपूर्व निधि है ।
आप्त वचन को आगम कहा गया है। जैन परम्परा में राग-द्वेष के विजेता को जिन कहा गया है ( राग-द्वेषान्शन जयतीति जिनः) । जैनागम जिन या सर्वज्ञ की वाणी के प्रतिनिधि हैं।
प्रश्न उठता है कि क्या जैनागम जिन (तीर्थकर ) के साक्षात् उपदेश हैं ? अथवा उन्होंने ही इन्हें शब्दबद्ध किया है ? तीर्थंकर अर्थ के प्रणेता हैं । वे केवल भूलभूत सिद्धान्तों का उपदेश करते हैं। गणधर उनके उपदेशों को सुनकर ग्रन्थ बद्ध करते हैं। इस प्रकार शब्द रूप से आगमों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 314