Book Title: Acharanga Stram Part 04
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ६०९॥ www.kobatirth.org ॥ श्रीजिनाय नमः ॥ ॥श्रीआचाराङ्गसूत्रम्॥ ( मुळ अने शिलाङ्काचायें रचेली टीकानुं भाषांतर) भाग चोथो छपावी प्रसिद्ध करनार - पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराज (जामनगरवाळा) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांचो उद्देशो कहे छे. पांचमा उद्देशानो चोथा साथे आ प्रमाणे संबन्ध छे के, चोथामां क केः - अगीतार्थ अपाकव वयनो साधु एकलो विचरतां दुःख पामे छे, तेथी ते दुःखो दूर करवा इच्छता साधुए हमेशां आचार्यनी सेवामां रहे तथा, ते आचार्ये पण हृदनी उपमावाळा धनुं; अने तेमनी साथे बीजा साधुए रही तप-संयमथी युक्त बनीने निःसंगपणे विचर. [ए पांचमां उद्देशामां छे,] आवा संबन्धे आवेला उद्देशानुं आ प्रथम सूत्र छे, For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ ६०९ ॥

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