Book Title: Aavashyaksutram Part 04 Author(s): Haribhadrasuri, Publisher: Agamoday Samiti View full book textPage 8
________________ आवश्यक हारिभ द्रीया ||७६६ ।। Jain Education १४२९ ॥ १४३० ॥ काए उस्सग्गंमिय निक्खेवे हुंति दुन्नि उ विगप्पा । एएसिं दुण्हंपी पत्तेय परूवणं वुच्छं ॥ २२८ ॥ ( भा० ) ॥ 'काए उस्सगंमि य' काये कायविषयः उत्सर्गे च - उत्सर्गविषयश्च एवं निक्षेपे - निक्षेपविषयौ भवतः द्वौ एव विकल्पौद्वावेव भेदौ, अनयोर्द्वयोरपि कायोत्सर्गविकल्पयोः प्रत्येकं प्ररूपणां वक्ष्य इति गाथार्थः ॥ २२८ ॥ कायस्स उ निक्खेवो बारसओ छक्कओ अ उस्सग्गे । एएसिं तु पयाणं पत्तेय परूवणं वुच्छं ॥ नीमं ठवर्णसरीरे गई निकायत्थिकार्यं दविएँ य । माउय संगेह पज्जर्व भारे तह भावकीए य ॥ काओ कस्स नाम कीरह देहोवि बुच्चई काओ । कायमणिओवि वुच्चइ बद्धमवि निकायमाहंसु ॥ १४३१ ॥ अक्खे वराड वा कट्टे पुत्थे य चित्तकम्मे य । सम्भावमसम्भावं ठेवणाकायं वियाणाहि ॥ १४३२ ॥ लिप्पगहत्थी हथित्ति एस सम्भाविया भवे ठेवणा । होइ असम्भावे पुण हत्थित्ति निरागिई अक्खो ॥१४३३॥ ओरालियवेउब्वियआहारगतेयकम्मए चेव । एसो पंचविहो खलु सरीरकाओ मुणेव्व ॥ १४३४ ॥ चउसुवि गईसु देहो नेरइयाईण जो स गइकाओ । एसो सरीरकाओ विसेसणा होइ गइकाओ || १ || ( प्र० ) || जेणुवगहिओ वच्च भवंतरं जच्चिरेण कालेण । एसो खलु गइकाओ सतेयगं कम्मगसरीरं ॥ १४३५ ॥ निययमहिओ व काओ जीवनिकाओ निकायकाओ य । अस्थित्तिबहुपएसा तेणं पंचत्थिकाया उ ॥ १४३६ ॥ जंतु पुरक्खडभावं द्वियं पच्छाकडं व भावाओ । तं होइ दव्वद्वियं जह भविओ दव्वदेवाई ॥ २२९॥ ( भा० ) जइ अस्थिकाय भावो अपएसो हुन अत्थिकायाणं । पच्छाकडुव्य तो ते हविज्ज दव्वत्थिकाया व ॥ २३०॥ (भा० ) ॥ For Personal & Private Use Only ५ कायोत्सर्गाध्यय नं कायनिक्षेपः ॥७६६॥ ainelibrary.orgPage Navigation
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