Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas

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Page 12
________________ ო मा - ન अवरण्हं- सां४नी पाए।) વૈરાગ્યશતકમ્ ગા.૪ पडिक्खेह - प्रतीक्षा रो छा.: यत्कल्ये कर्त्तव्यं तत् अद्यैव कुरुध्वं त्वरमाणाः । बहुविघ्नस्तु मुहूर्ती मा अपराह्णे प्रतीक्षध्वम् ॥ ३ ॥ अर्थ: (हे वो !) हे असे अरवा योग्य (धर्मार्यो) छे. તે જડપ કરતાં એવા તમે આજે જ કરો. (કારણકે) નીશ્ચે घएगा विघ्नवाणुं मुहूर्त छे (तेथी) सां४नी (पा) राह न दुखो ॥ ३ ॥ ही ! संसारसहावंचरियं नेहाणुरायरत्ता वि । जे पुव्वण्हे दिट्ठा, ते अवरण्हे न दीसंति ॥ ४ ॥ ही विषाह सूय - છે संसार - संसारना चरियं - आयरए। (भेने) अणुराय - अनुरागथी सहावं - स्वभावनुं नेह स्नेहनां रत्तावि - आशस्त थयेला पाए। (स्व४नो) जे - वा पुव्वण्हे - सवारे ते तेवा - दिठ्ठा - भेवाया छे अवरण्हे - सां नदीसंति - द्वेषातां नथी छा.: ही !! संसारस्वभावचरित्रं स्नेहानुरागरक्ता अपि । ये पूर्वाह्णे दृष्टास्ते अपराह्णे न दृश्यन्ते ॥ ४ ॥ અર્થઃ સંસારનાં સ્વભાવનું આચરણ (જોઈને) વિષાદ छे... ! (3) स्नेहनां अनुरागथी साशस्त थयेला पा

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