Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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वैराग्यशतम् गा. २ /3
परं - परम हिवसे पुरिसा परुषो अत्थ ધનની अंजलि - जोजामांथी
तोयं - पाएगीनी भेभ आउं - आयुष्यने छा.: अद्यः श्वः परस्मिन् पूर्वतरस्मिन् पुरुषाश्चिन्तयन्ति अर्थसंप्राप्तिम् । अञ्जलिगतमिव तोयं गलदायुर्न पश्यन्ति ॥ २॥
અર્થઃ આજે કાલે પરમદિવસે કે તે પછીના દિવસે ધનની प्राप्ति थशे (जेम) पुरुषो वियारे छे. (परंतु ) जोजामांथी ટપકતાં પાણીની જેમ ઓછા થઈ રહેલાં આયુષ્યને જોતાં नथी. ॥ २ ॥
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जं - ४
कायव्वं अजं 3707-2418 આજે
करेह - रो
जं कल्ले कायव्वं तं अज्जं चिय करेह तुरमाणा । बहुविग्घोहु मुहूत्तो, मा अवरहं पडिक्खेह ॥३॥
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કરવા યોગ્ય છે
परारिं ते पछीनां हिवसे चिंतंति - वियारे छे संपत्ति - प्राप्ति थशे (प्रेम)
गयं व - 24sai गलंतं - खोछ। थ रहेसां
न पिच्छंति - भेता नथी
बहु - घएगा हु - निश्चे
-
कल्ले - डाले
કાલે
तं - ते चिय
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જ
[ जी. प्र. ११५]
तुरमाणा५२तां मेवा तमे विग्घो विघ्नवाणुं मुहूत्तो - मुहूर्त छे तेथी)
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