Book Title: Aatmbodhak Granthtrai
Author(s): Yogtilaksuri
Publisher: Sanyam Suvas
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વૈરાગ્યશતકમ્ ગા.૮
काया- झाया
खज्जंती - जवाती
काल કાળ રૂપી
सप्पेण - सर्प वडे
छा.: सा नास्ति कला तन्नास्ति औषधं तन्नास्ति किमपि
विज्ञानम् ।
येन ध्रियते कायः खाद्यमानः कालसर्पेण ॥ ७ ॥
અર્થઃ તેવી કોઈ કળા નથી. તેવું કોઈ ઔષધ નથી. તેવું કોઈ વિજ્ઞાન નથી. જેના વડે કાળરૂપી સર્પવડે ખવાતી अया धारा (रक्षा) री शाय ॥ ७ ॥
दीहरफणिंदनाले, महियरकेसरदिसामहदलिल्ले । ओ ! पीयइ कालभमरो, जणमयरंदं पुहविपउमे ॥ ८ ॥ दीहर - दीर्घ
फणिंद - सर्प३पी महियर - पर्वत३पी
ना
નાળ જેમાં છે
केसर - पराग २४ भेमां छे दिसा छिशा३पी
महदलिल्ले - भोटा पांडावानाओ
पीयड़ - पीछे छे भमरो - लभरो
मयरंदं रसने
पउमे - ऽभणमांथी
छा.: दीर्घ-फणीन्द्रनाले महीधरकेसरदिशमहद्दले । ओ पिबति कालभ्रमरो जनमकरन्दं पृथिवीपद्मे ॥ ८ ॥
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૬
पश्चात्ताप सूय छे
काल - अणपी
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जण માણસરૂપ
पुहवि - पृथ्वी३पी

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