Book Title: Aaptpariksha Author(s): Vidyanandswami Publisher: Jain Sahitya Prasarak Karyalay View full book textPage 3
________________ मेरा निवेदन। बैन-सिद्धांत-प्रकाशिनी संस्था द्वारा प्रकाशित आवृत्तिपरसे हमने इसे प्रकाशित किया है। साहित्यरत्न पं. दरबारीलालजी न्यायतीर्थने इसके पहलेके ६४ पृष्ठोंके और न्यायवाचस्पति पं० हजारीलालजी न्यायतीर्थने अंतके ७५ पृष्ठोंके प्रूफोंका संशोधन किया है। पं. श्रीनिवासजी शास्त्री और पं० दरबारीलालजी न्यायतीर्थने अपने अभ्यास करते समयकी संशोधित मुद्रित प्रतियां हमें देनेकी उदारता दिखलाई थी। तथा एक हस्तलिखित प्रति बम्बईके श्रीचन्द्रप्रभ दि. जैन मंदिरसे प्राप्त हुई थी। इन तीनों प्रतियों परसे इसका संशोधन किया गया है। उपर्युक्त सहायक विद्वानों तथा संस्थाओंके हम हदयसे आभारी हैं। प्रफ ध्यानसे देखने पर भी कुछ अशुद्धियां रह गई है। तथा प्रेसमें छपते समय भी कुछ अशुद्धियां होगई हैं। उनका शुद्धिपत्र नीचे दिया जाता है । पाठक उसके अनुसार अशुद्धियोंको शुद्ध करके पुस्तकका पढ़ना-पढ़ाना प्रारंभ करें। -प्रकाशक।Page Navigation
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