Book Title: Aapt Pariksha Patra Pariksha Cha
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Sanatan Jain Granthmala

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Page 2
________________ ग्रंथसूची पृष्ठ संख्या १ १ ग्रंथक परिचय आप्तपरीक्षा सटीका (संपूर्णा) है। पत्रपरीक्षा (संपूर्णा) नियमावली। इस ग्रंथमाला मूल संस्कृत प्राकृत तथा संस्कृतटीकासाहित दिगंबरजैनाचार्यकृत दर्शनसिद्धांत, न्याय, अध्यात्म, व्याकरण, काव्य, साहित्य, पुराण, गणित, ज्योतिष वैद्यक प्रभृति सर्वप्रकार के प्राचीन ग्रंथ छपते हैं। 37 इस अंथमालाका प्रलेक खंड (अंक) दश पतरनसे (८० पृष्ठ से) कम नहीं होगा और अत्येक खंड में एक दो या तीन से अधिक गंथ नहीं रहेगा। इस ग्रंथमाला का मूल्य १२ खंडों का सर्वसाधारणमा प्रथम ही ले लिया जायगाः और नैयायिक, वेदांतिक और संस्कृत पुस्तकालयोंकी सेवामें यह प्रथमाला बिना मूल्य भी भेजी जायगी। परंतु पोटज खर्च प्रत्येक अंक का) या क) वी. पी. से सबको देना होगा। जो महाशय एक साथ कारु, शेजगे ये यावज्जीव स्थायीबाहक समझे जावेंगे। परंतु जागे व्यय उनको भी जुदा देना होगा। जो महाशय पुस्तकालयों मंदिरों, विद्यार्थियों वा विद्वानोंको वितरण करनेकोलिये ग्राहक बनेंगे उनको १००) रु. पेशगी भेजनेसे १२ खंड तक पंद्रह र प्रति प्रत्येक खंडकी भेजी जायगी। मार्गमय पृथक देना होगा। मुल्य वा पत्र भेजनेका पत्ता पन्नालाल जैन मंत्री-श्रीजैनधर्मप्रचारिणीसभा काशी पोष्ट-बनारस सिटी। जैनी भाइयोंसे प्रार्थना। आह अंधमाला प्राचीन जैन ग्रंथोंके जीर्णोद्धारार्थ व जैनधर्मके प्रचारार्थ प्रकाशित की जाती है। इसमें जो कुछ द्रव्य लाभ होगा वह भी धर्मप्रचार व परोपकारमें ही लगाया जायगा। इसकारण प्रत्येक धर्मात्मा उदार महाशयोंको चाहिये कि प्रथम तो एकर था दो दो ग्रंथों को छपाकर जीर्णोद्धार करने के लिये दव्य प्रदान करें । दूसरे शोक मंदिर के शालभंडारमेंसे ग्राहक बनकर इन सब ग्रंथोंका संग्रह करके रक्षा करें अथवा स्वयं ग्राहक जनकर अपने यहाँक संस्कृत पढनेवाले विद्यार्थियोंको अथवा संस्कृत मन्यमती विद्वानोंको दान देकर सत्यार्थ पदार्थों का प्रचार करें। शास्त्रदानी महाशयोंकेलिये ही हमने पांचवां नियम बनाया है। प्राथी--पन्नालाल बाकलीवाल।

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