Book Title: Aagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 536
________________ आगम (१६) "सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [१८], --------------------- प्राभृतप्राभृत [-], ---------- ---- मूलं [९६-९९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति” मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत सूत्रांक [९६-९९]] वी सू ॥२६॥ सूर्यप्रज्ञ-18 देवीसाहस्सी परियारो पण्णत्तो, पभू णं तातो एगमेगा देवी अण्णाई चत्तारि २ देवीसहस्साई परिवार १८ प्राभृते सिंवृत्तिः विउवित्तए ?, एवामेव सपुबावरेणं सोलस देवीसहस्सा, सेत्तं तुडिए, ता पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया- तारान्तरं (मल) चंदवडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सहिं दिवाई भोगभोमाई भुंजमाणे बिहरित्तए, णो इणढे | समढे, ता कहं ते णो पभू जोतिर्सिदे जोतिसराया चंद्वडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए तुडिएणं सद्धिं 21 ९६-९७ |दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?, ता चंदस्स थे जोतिसिंदस्स जोतिसरपणो चंदवडिसए विमाणे सभाए सुधम्माएमाणवएस चेतियखंभेसु बहरामएसु गोलबद्दसमुग्गएसु यहवे जिणसकपा संणिक्खित्ता चिट्ठति, ताओ णं चंदस्स जोतिर्सिदस्स जोइसरपणो अपणेसिं च यहूणं जोतिसियाणं देवाण प देवीण यी & अचणिज्जाओ बंदणिज्जाओ पूपणिज्जाओ सफारणिजाओ सम्माणणिज्जाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेतियं पजुवासणिज्जाओ एवं खलु णो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवसिए विमाणे सभाए सुहम्माए तुडिए-11 णं सहिं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विह रित्तए । पभू णं चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडिसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदसि सीहासणंसि चउहि सामाणियसाहस्सीहिं चउहि अग्गमहिसीहि सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवतीहि सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अपणेहि ॥२६॥ प्रय पहिं जोतिसिएहि देवेहिं देवीहि प सद्धिं संपरिबुडे महताहतणहगीयवाइयततीतलतालतुडियषणमुई गपटुप्पचाइतरवेणं दिवाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए केवलं परियारणिडीए णो चेव ण मेहुणवत्तियाए।[81 KACC62 दीप अनुक्रम [१२५-१२८] ~535~

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