Book Title: Aagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१६)
"सूर्यप्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:) प्राभृत [२०], -------------------- प्राभृतप्राभृत [-], -------------------- मूलं [१०५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [१६], उपांग सूत्र - [9] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१०५]
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दीप
ताजपा राह देवे आगच्छमाणे वा० चंदस्स या सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पासेणं बीतीवतति तता गं मणुस्सलोअंमि मणुस्सा वदंति-देण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिण्णा, ता जता णं राह देवे आगच्छमाणे |RI वा चंदस्स वा सूरस्स चा लेसं आवरेत्ता पचोसकति तता गं मणुस्सलोए मणुस्सा एवं वदंति-राहणा चंदे वा सूरे या वंते राहुणा० २, ता जता णं राह देवे आगच्छमाणे वा० चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता मझ मझेणं वीतिवतति तता णं मणुस्सलोयंसि मणुस्सा वदति-राहुणा चंदे वा सूरे बा बिइयरिए राहुणा०२४ ता जता णं राहू देवे आगच्छमाणे चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता णं अधे सपक्खिं सपडिदिसि | चिट्ठति तता गं मणुस्सलोअंसि मणुस्सा वदंति-राहुणा चंदे वाघधे राहणा०२॥ कतिविधे णं राह पं02.12 विहे पं० त०-ता धुवराष्टू य पचराह य, तत्थ णं जे से धुवराह से गं बहुलपक्खस्स पाडिवए पण्णरसइ-2 भागेणं भाग चंदस्स लेसं आवरेमाणे चिवति, तं०-पढमाए पढम भागं जाव पन्नरसम भाग, चरमे समए चंदे ।
रत्ते भवति अबसेसे समए चंदे र य विरत्ते य भवइ, तमेव मुक्तपक्खे उपदंसेमाणे २ चिट्ठति, तं०-पढ-1 Mमाए पदम भागं जाव चंदे विरते य भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते विरते य भवति, तस्थ णं जे ते पव
रात से जहण्णेणं छह मासाणं, उक्कोसेणं यायालीसाए मासाणं चंदस्स अडतालीसाए संवच्छराणं सूरस्स (सूत्रं १०५)॥ | 'ता कह ते'इत्यादि, ता इति पूर्ववत् , कध-केन प्रकारेण भगवान् ! त्वया राहुकर्म-राहुक्रिया आख्यातमिति |
अनुक्रम [१९५]
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