Book Title: Aagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(१६)
ཎྜཉྩནྡྲིཡཱ ཟླ + བྷུལླཱཡྻ
-१९२]
प्राभृत [१९], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..
सूर्यप्रज्ञतिवृत्तिः
( मल० )
॥२६९ ॥
“सूर्यप्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र- ५ ( मूलं + वृत्तिः)
प्राभृतप्राभृत [-]
मूलं [ १००] + गाथा: . आगमसूत्र [१६], उपांग सूत्र [५] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्तिः
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संठाणसंठिते, ता कालोयणे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्वं भेणं केवतिथं परिक्खेवेणं आहितेति बदेखा ?, ता कालोयणे णं समुद्दे अट्ट जोयणसतसहस्साई चक्रवालविक्वं भेणं पत्नत्ते एकाणउर्ति जोपणसयसहरसाई सत्तारं च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाधिए परिक्लेवेणं आहितेति वदेजा, ता कालोयणे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासु वा ३ पुच्छा, ता कालोयणे समुद्दे बातालीसं चंदा पभासेंसु वा ३ बायालीसं सूरिया तवेंसु वा ३ एक्कारस बावन्तरा णक्खत्तसता जोपं जोईसु वा ३, तिनि सहस्सा छच्च छनउया महगहसया चारं चरिंसु वा ३ अट्ठावीसं च सहस्साई बारस सयसहस्साई नव य सवाई | पण्णासा तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोसु वा सोहंति वा सोभिस्संति वा "एकाणउई सतराई सहस्साई परिरतो तस्स । अहियाई छच्च पंचुतराई कालोदधिवरस्स ॥ १ ॥ वातालीसं चंदा बातालीसं च दिणकरा दित्ता । कालोदधिमि एते चरंति संबद्धलेसागा ॥ २ ॥ णक्खत्तसहस्सं एगमेव छावन्तरं च सतमण्णं । छच्च सया छण्णउया महग्गहा तिष्णि य सहस्सा ॥ ३ ॥ अट्ठावीसं कालोदहिंमि बारस य सहरसाई । णव य सया पण्णासा तारागणकोडिकोडीणं ॥ ४ ॥” ता कालोयं णं समुद्दे पुक्खरवरे णामं दीवे | बट्टे वलयाकारठाणसंठिते सबतो समता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति, ता पुक्खरबरे णं दीवे किं समचक्कबालसंठिए विसमचक्रवालसंठिए ?, ता समचक्कवालसंठिए नो विसमचकवालसंठिए, ता पुकखरबरे णं दीवे केवइयं समचकचालविक्खंभेणं ?, केवहअं परिकखेवेणं ?, ता सोलस जोयणसयसहस्साइं
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~ 543~
१९ प्राभूते चन्द्रसूर्यादिपरिमाणं
सू १००
॥२६९||
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