Book Title: Aagam 12 AUPAPAATIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम (१२) “औपपातिक” - उपांगसूत्र-१ (मूलं+वृत्ति:) ---------- मूलं [३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१२], उपांग सूत्र - [१] "औपपातिक" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: औपपा- प्रत सूत्रांक दीप अनुक्रम जन्यो वस्तुविशेषः । 'घणकडियकडिच्छाए'त्ति अन्योऽन्य शाखानुप्रवेशाद् वहलनिरन्तरच्छाय इत्यर्थः । 'महामेहणिकुर- वनपण्डा |वभूए'त्ति महामेघवृन्दकल्पः। सू०३ ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंभमंतो तयामतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमतो फलमंतो बीयमंतो अणुपुब्बसुजायरुइलबद्दभावपरिणया एक्कखंधा अणेगसाला अणेगसाहप्पसाहविडिमा अणेगनरवाममुप्पसारिअअग्गेज्मघणविउलवडखंधा अच्छिदपत्ता अविरलपत्ता अवाईणपत्ता अणईअपत्ता निभू| यजरढपंदुपत्ता णवहरियभिसंतपत्तभारंधकारगंभीरदरिसणिजा उवणिग्गयणवतरुणपत्सपल्लवकोमलउज्जलचलंतकिसलयसुकुमालपवालसोहियवरंकुरग्गसिहरा णिचं कुसुमिया णिचं माइया णिचं लवइया णिचं थवइया णिचं गुलइया णिचं गोच्छिया णिचं जमलिया णिचं जुबलिया णिचं विणमिया णिचं पणमिया |णिचं कुसुमियमाइयलवइयथवइयगुलइयगोच्छियजमलियजुवलियविणमियपणमियमुविभत्तपिंडमंजरिवर्डिसयघरा सुयबरहिणमयणसालकोइलकोहंगकभिंगारककोंडलकजीवंजीवकणंदीमुहकविलपिंगलक्खकारंडचकवायकलहंससारसअणेगसउणगणमिणविरइयसहुण्णइयमहरसरणाइए सुरम्मे संपिडियदरियभमरमहुकरिपहकरपरिलिन्तमत्तछप्पयकुसुमासवलोलमहुरगुमगुमंतगुंजतदेसभागे अभंतरपुप्फफले बाहिरपसोच्छण्णे पत्तेहि य पुप्फेहि य उच्छपणपडिवलिच्छपणे साउफले निरोयए अकंटए जाणाविहगुच्छगुम्ममंडवगरम्मसोहिए विचित्तसुहकेउभूए वावीपुक्खरिणीदीहियासु य मुनिवेसिय रम्मजालहरए । वनखंडस्य वर्णनं, ~ 15~

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