Book Title: Aagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ आगम “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) (०४) समवाय [१००], --....................------------...- मूलं [१००] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१००] पार्श्वनाथस्त्रिंशद्वर्षाणि कुमारत्वं सप्ततिं चानगारत्वमित्येवं शतमायुः पालयित्वा सिद्धः, एवं 'थेरेवि अजसुहमे'त्ति आर्यसुधर्मो-महावीरस्य पञ्चमो गणधरः सोऽपि वर्षशतं सर्वायुः पालयित्वा सिद्धस्तथा च तस्यागारवासः पञ्चाशद्वर्षाणि छद्मस्थपर्यायो द्विचत्वारिंशत्केवलिपर्यायोऽष्टी, भवति चैतद्राशित्रयमीलने वर्षशतमिति । वैताठ्यादिपूचत्वचतुर्थीशः उद्वेधः, काञ्चनका उत्तरकुरुषु देवकुरुषु क्रमव्यवस्थितानां पञ्चानां महाहदानामुभयतो दश दश व्यवस्थितास्ते च जम्बूद्वीपे शतद्वयसंख्याः समवसेया इति ॥१०॥ चंदप्पमे णं अरहा दिवड्डे धणुसयं उड्डे उच्चत्तेणं होत्था, आरणे कप्पे दिवट्ट विमाणावाससयं प०, एवं अन्चुएवि १५० सूत्र १.१॥ सुपासे णं अरहा दो घणुसया उड्डु उचत्तेणं होत्या, सब्वेवि ण महाहिमवतरुप्पीवासहरपब्वया दो दो जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं प०, दो दो गाउयसयाई उन्हेणं प०, जम्बुद्दीवे णं दीवे दो कंचणपच्चयसया प० ॥२०० सूत्र १०२॥ अथैकोत्तरस्थानवृद्ध्या सूत्ररचनां परित्यज्य पञ्चाशच्छतादिवृद्ध्या तां कुर्वन्नाह-'चंदप्पहे'त्यादि, सुगम सर्वमाद्वादशाङ्कगणिपिटकसूत्रात् ॥२०॥ पउमप्पभे णं अरहा अड्डाइजाई धणुसयाई उड्डे उच्चत्तेणं होत्या, असुरकुमाराणं देवाणं पासायवर्डिसमा अड्डाइजाई जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं प० ॥२५० सूत्रं ॥ १०३॥ नवरं 'पासायवसिय'त्ति अवतंसकाः-शेखरकाः कर्णपूरांणि वा अवतंसका इव अवतंसकाः प्रधाना इत्यर्थः प्रासादाश्च ते अवतंसकाः प्रासादानां वा मध्ये अवतंसकाः प्रासादावतंसकाः ॥ २५० ।। दीप 5*555ARSHA अनुक्रम [१७९] AGERS MEnama Palmurary.au अत्र शत-समवाय: परिसमाप्त:, अथ प्रकिर्णक: समवाय: आरभ्यते ~ 205~

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324