Book Title: Aagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 272
________________ आगम (०४) प्रत सूत्रांक [१४९] + गाथा: दीप अनुक्रम [२३४ -२३७] “समवाय” - अंगसूत्र-४ ( मूलं + वृत्तिः ) समवाय [प्रकिर्णका: ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०४] अंग सूत्र [०४] Education t य से किं तं अरूची अजीवरासी १, अरूविअजीवरासी दसविहा पन्नत्ता, तंजा-धम्मत्थिकाए जाव अद्धासमर, रूवीअजीवरासी अणेगविहा० प० जाव से किं तं अणुत्तरोववाइआ ?, अत्तणुरोववाइआ पंचविद्या पन्नत्ता, तंजहा - विजयवेजयंतजयंतअपराजितसव्वसिद्धि, सेसं अणुत्तरोववाइआ, सेत्तं पंचिदियसंसारसमावण्णजीवरासी, दुविहा णेरड्या पन्नता, तंजहा -पलता य अपजता य, एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वैमाणियत्ति, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए केवइयं खेत्तं ओगाहेत्ता केवइया णिरयावासा पण्णत्ता १, गोयमा ! इमीसे णं स्यणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एवं जोयणसहस्सं ओगाहेता हेद्वा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेता मज्झे असत्तरि जोयणसयसहस्से एत्थ णं रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयाणं तीसं णिरयावास सयसहस्सा भवतीतिमुक्खाया, ते णं णिरयावासा अंतो वट्टा चाहिं चउरंसा जाव असुभा णिरया असुभाओ णिरएसु वेयणाओ, एवं सत्तवि भाणियव्वाओ जं जासुं जुजइ- 'आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं च । अट्ठारस सोलसगं अद्भुत्तरमेव चाहलं ॥ १ ॥ तीसा य पण्णवीसा पनरस दसेव सरसहस्साइं । तिष्णेगं पंचूणं पंचैव अणुत्तरा नरगा ॥ २ ॥ चउसकी असुराणं चउरासीइं च होइ नागाणं । यावत्तरि सुवन्नाण वाउकुमाराण छण्णउ ॥ ३ ॥ दीवदिसाउदहीणं विजकुमारिंदथणियमग्गीणं । पि जुवलयाणं पावत्तरिमो य सबसहसा ॥ ४ ॥ बत्तीसद्वाबीसा वारस अड चउरो य समसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे || ५ || आणयपाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणहुए तिन्नि । सत विमाणसयाई चउसुवि एएसु कप्पेसु ॥ ६ ॥ एकारसुत्तरं हेमेिसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचैव अणुत्तरविमाणा ॥ ७ ॥ दोषाए णं पुढवीए तचाए णं पुढवीए चउत्थीए पुढवी पंचमी पुढवीए छट्टीए पुढवीए सत्तमीए पुढवीए गाहाहिं भाणियन्वा, सत्तमाए पुढवीए पुच्छा, गोयमा ! सत्तमाए For Penal Use Only मूलं [ १४९ ] + गाथा: “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्तिः ~ 271~ yor

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