Book Title: Aagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 223
________________ आगम (०४) “समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्तिः ) समवाय [प्रकिर्णका:], - --------- मूलं [१३६] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [०४], अंग सूत्र - [०४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति: श्रीसमवा- १३७ सू कृताङ्ग. योगे प्रत सूत्रांक [१३६]] श्रीअभय वृत्तिः ॥१०॥ दीप विज्ञाता एवं विज्ञाता भवति-तत्रान्तरीयज्ञाता भवति, तत्रान्तरीयज्ञातृभ्यः प्रधानतर इत्यर्थः, "एवं मित्यादि नि- गमनवाक्यं, एवं-अनेन प्रकारेणाचारगोचरविनयादभिधानरूपेण 'चरणकरणप्ररूपणता आख्यायत' इति चरण- व्रतश्रमणधर्मसंयमाद्यनेकविधं करणं-पिण्डविशुद्धिसमित्याद्यनेकविधं तयोः प्ररूपणता-प्ररूपणैव आख्यायते इ. त्यादि पूर्ववदिति, 'सेत्तं आयारे'त्ति तदिदमाचारवस्तु अथवा सोऽयमाचारो यः पूर्व दृष्ट इति ॥१॥ से किं तं सूअगडे ?, सुअगडे णं ससमया सूइजंति परसमया सूइति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइज्जति अजीवा सूइजति जीवाजीवा सूइजंति लोगो सूइजति अलोगो सूइजति लोगालोगो सुइजति, सूअगडे गं जीवाजीवपुण्णपावासवसंवरनिन्जरणबंधमोक्खावसाणा पयत्या सुइअंति, समणाणं अचिरकालपब्वइयाणं कुसमयमोहमोहमइमोहियाणं संदेहजायसहजबुद्धिपरिणामससइयाणं पावकरमलिनमइगुणविसोहणत्यं असीअस्स किरियावाइयसयस्स चउरासीए अकिरियवाईणं सत्तडीए अण्णाणियवाईणं बत्तीसाए वेणइयवाईणं तिण्डं तेवट्ठीणं अण्णदिट्ठियसयाणं बूई किचा ससमए ठाविअति णाणदिटुंतवयणणिस्सारं सुहुदरिसयंता विविहवित्थराणुगमपरमसब्भावगुणविसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूा सोवाणा चेव सिद्धिसुगइगिहुत्तमस्स णिक्खोभनिप्पकंपा सुत्तत्था, सुयगडस्स णं परित्ता वायणा संखेजा अणुभोगदारा संखेआमओ पढिवसीओ संखेना वेम संखेबा सिलोगा संखेजाओ निज्जुत्तीओ, से णं अशयाए दोचे अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तेत्तीसं उदेसणकाला तेत्तीसं समुदेसणकाला छत्तीसं पदसहस्साई पयग्गेणं प० संखेजा अक्खरा अणंता गमा अर्णता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति पण्णविजंति परूविजंति निद अनुक्रम [२१५] % ॥१०९|| -ROGRE5%95% REairat na murary.org आचार अगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, सूत्रकृत अंगसूत्रस्य शाश्त्रीयपरिचय:, ~ 222~

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