Book Title: Aagam 04 SAMAVAY Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०४)
“समवाय” - अंगसूत्र-४ (मूलं+वृत्तिः ) समवाय [प्रकिर्णका:], -
------- मूलं [१२९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [४], अंग सूत्र - [४] “समवाय” मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचित वृत्ति:
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प्रत सूत्रांक [१२९]
दीप अनुक्रम
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यसहस्साई रायमज्झे वसिचा मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ॥ ६००००० सूत्र १२९ ॥ जम्बूदीवस्स णं दीवस्स पुरच्छिमिलाओ वेइयंताओ घायइखंडचक्वालस्स पञ्चच्छिमिल्ले चरमंते सत्त जोयणसयसहस्साई अवाहाए अंतरे प०॥ ७००००० सूत्र १३० ।। माहिंदे णं कप्पे अढ विमाणावाससयसहस्साई प०८०००००॥ सूत्रं १३१॥ अजियस्स णं अरहओ साइरेगाई नव ओहिनाणिसहस्साई होत्था ॥९००० सूत्रं १३२ ॥ पुरिससीहे णं वासुदेवे दस वाससयसहस्साई सच्याउयं पालइत्ता पक्षमाए पुढवीए नेरइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने ॥१०००००० सूत्रं १३३॥ समणे भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गहणाओ छद्वे पोट्टिलभवग्गहणे एगं वासकोडिं सामनपरियागं पाउणिता सहस्सारे कप्पे सबढविमाणे देवताए उववन्ने ॥ १००००००० सूत्र १३४ ॥ उसमसिरिस्स भगवओ चरिमस्स य महावीरवद्धमाणस्स एगा सागरोक्मकोडाकोडी बवाहाए अंतरे प०॥ १०००००००००००००० सूर्य १३५॥ 'सवेवि णं जमगे'त्यादि, उत्तरकुरुषु नीलवर्षधरस्य-उत्तरतः शीताया महानया उभयोः कूलयोडौं बमकाभिधानी पर्वती स्तः, ते च पञ्चखप्युत्तरकुरुपु द्वयोयोर्भावाद्दश, एवं 'चित्तविचित्तकूडाविति पञ्चसु देवकुरुषु यमकवत्तत्सद्भायात् पञ्च चित्रकूटाः पञ्च विचित्रकूटा इति, 'सवेषि णमित्यादि, सर्वेऽपि वृत्ता वैतात्या विंशतिःशब्दापात्यादयः, 'सधेवि णं हरी'सादि, हरिकूट विद्युत्भाभिधाने गजदन्ताकारवक्षस्कारपर्वते हरिसहकूटं तु माल्यववक्षस्कारे, तानि च पञ्चखपि मन्दरेषु भाषात् पञ्च पञ्च भवन्ति सहसोच्छूितानि च, 'वक्खारकूडपजत्ति शेषपक्षस्कारकूटेम्वेवमुषवं नास्त्येतेवेबास्त्रीत्यर्थः, एवं 'बलकूडाविति पञ्चसु मन्दरेषु पञ्च नन्दनवनानि तेषु प्रत्से
[२०८]
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