Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ १४/प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व ब्रिटिश अफ़सरों की पेंशन, रुपए की कृत्रिम विनिमय दर और इसका भारतीय उद्योग-धन्धों और व्यवसाय पर घातक प्रभाव, वकालत, डॉक्टरी और शुद्ध साहित्यिक शिक्षा को छोड़कर उद्योग-धन्धों-सम्बन्धी शिक्षा का अभाव, शिक्षित समुदाय में बेकारी की उत्तरोत्तर वृद्धि, सैनिक-व्यय, प्रान्तीय करों आदि कारणों से भारतीय निर्धनता और भी बढ़ी । इससे जनता के आर्थिक शोषण और दुरवस्था का अनुमान लगाया जा सकता है । इस दुरवस्था का देश के सांस्कृतिक जीवन पर जो प्रभाव पड़ा होगा, वह सोचने योग्य है । और प्रश्न केवल निर्धनता का ही नहीं था, वरन् साधारण-से-साधारण किसान और मज़दूर की शिक्षा भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी जिसकी ओर शासकों ने बिल्कुल ध्यान न दिया। यहीं से स्वदेशी आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समय में इस आन्दोलन के प्रारम्भिक रूप ने अच्छी प्रगति कर ली थी। अभी तक यातायात के साधन प्रायः नहीं के वराबर थे। पर शीघ्र ही रेल, तार, डाक और सड़कों की ओर भी डलहौजी ने ध्यान दिया। सैनिक दृष्टि से ही नहीं, वरन् व्यापारिक दृष्टि से यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य था। उनके समय में बम्बई, कलकत्ता और लाहौर को जोड़ते हुए रेलवे कम्पनियों ने रेलें बनाना शुरु कर दिया था। इन्हीं उद्देश्यों से प्रेरित होकर तारों की प्रबल शक्ति का भी प्रबंध किया गया । यातायात के इन साधनों का देश के साधारण जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ना अवश्यम्भावी था, पर कंपनी के शासन का अन्त हो जाने के पश्चात् ही नवीन वैज्ञानिक साधनों का वास्तविक प्रभाव दृष्टिगोचर हो सका। इन साधनों से भारतीय पत्रकार-कला और फलतः गद्य की उन्नति हुई । यातायात के अाधुनिक वैज्ञानिक साधनों के साथ-साथ अँगरेज़ी भाषा के माध्यम द्वारा भी एकता का सूत्रपात हुआ और भविष्य के लिए भारतीय प्रगति की अच्छी आशा बँघ गई। पाश्चात्य विज्ञान और साहित्य का ही भारतीय विचार-धारा पर प्रभाव नहीं पड़ा, वरन् रेल और समुद्र-यात्रा से हिन्दुओं के सामाजिक प्रतिबन्ध भी शिथिल होने लगे।

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