Book Title: Aadhunik Kahani ka Pariparshva
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ १२/आधुनिक कहानी का परपार्श्व यह तो मूल बातें हुई । कथा-साहित्य के अविर्भाव के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं जातीय पृष्ठभूमि को विस्तार से समझ लेना इसलिए भी आवश्यक है कि जीवन के व्यापक परिवेश की यथार्थता से सम्बद्ध होकर ही आधुनिक कहानी की आत्म-चेतना विकसित हुई है और पूरे ५०-६० वर्षों में उन मुख्य तत्त्वों का विस्तार ही आधुनिक कहानी की मूल पृष्ठभूमि है। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के अन्तिम पच्चीस-तीस वर्षों में, जब ब्रिटिश साम्राज्यवादी नीति खूब फूली-फली, किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने का कोई प्रयत्न न हुआ; केवल ईस्ट इंडिया कंपनी और सम्राज्ञी के शासन , काल के पिछले वर्षों से चले आ रहे सिद्धान्तों और कायदे-कानूनों का ही थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ व्यवहार होता रहा । सरकारी नीति के फलस्वरूप जनता का लगान के निश्चित सिद्धान्त से भी कहीं अधिक आर्थिक शोषण होने लगा; जनता की निर्धनता दिन-पर-दिन बढ़ती ही गई। निर्धनता के बढ़ने से जनता के सामान्य सांस्कृतिक जीवन पर घातक प्रभाव पड़े बिना न रह सका । वास्तव में सरकार की कर-निर्धारण नीति की अनिश्चितता और ज़मीन का ठीक-ठीक मूल्य-निधरिण न होने के कारण जनता आर्थिक अत्याचार से पिसती रहती थी। प्रायः अमीरों की तरह शानशौकत से रहने वाले ज़मींदारों को ही सरकार ने अपने राजनीतिक पुनर्निर्माण की आधार-शिला बनाया। विभिन्न व्यवस्थाओं और ऐक्टों के फलस्वरूप कुलीनवंशीय जमींदारों और किसानों के बीच की प्राचीन सौहार्द-भावना लुप्त हो गई और अनेक पारस्परिक झगड़े खड़े हो गए जिनसे किसान का धन कचहरियों में भी खर्च होने लगा । सरकारी नीति से न तो कृषि की उन्नति हुई और न किसानों के धन की वृद्धि हुई। किसान ज़मीन को अपनी न समझकर विदेशी शासकों की समझने लगा और महाजनों के चगुल में फंस गया । संसार के समस्त सभ्य देशों में से भारतीय किसान की सबसे अधिक निर्धनता आज

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