Book Title: $JES 941 Pratikraman Sutra Book in English
Author(s): JAINA Education Committee
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 128
________________ 47. लघु-शान्ति स्तव - LAGHU-SHANTI STAVA ............. यस्येति नाम-मन्त्र-प्रधान-वाक्योपयोग-कृत-तोषा. विजया कुरुते जन-हित-मिति च नुता नमत तं शान्तिम्. ..........6 भवतु नमस्ते भगवति!, विजये! सुजये! परा-परैरजिते!. अपराजिते! जगत्यां, जयतीति जयावहे! भवति. सर्वस्यापि च संघस्य, भद्र-कल्याण-मंगल-प्रददे!. साधूनां च सदा शिव-सुतुष्टि-पुष्टि-प्रदे! जीयाः.. ............... भव्यानां कृत-सिद्ध!, निवृति-निर्वाण-जननि! सत्त्वानाम्. अभय-प्रदान-निरते!, नमोस्तु स्वस्ति-प्रदे! तुभ्यम्....... ............. भक्तानां जन्तूनां, शुभावहे! नित्यमुद्यते! देवि!. सम्यग्-दृष्टीनां धृति-रति-मति-बुद्धि-प्रदानाय.. ..............10. जिन-शासन-निरताना, शान्ति-नतानां च जगति जनतानाम्. श्री-संपत्कीर्ति-यशो-वर्द्धनि!, जय देवि! विजयस्व........ ................11. सलिला-नल-विष-विषधर-दुष्ट-ग्रह-राज-रोग-रण-भयतः. राक्षस-रिपु-गण-मारि-चौरेति-श्वापदा-दिभ्यः. .............12. अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शान्तिं च कुरु कुरु सदेति. तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं, कुरु कुरु स्वस्तिं च कुरु कुरु त्वम्...........13. भगवति! गुणवति! शिव-शान्ति-तुष्टि-पुष्टि-स्वस्तीह कुरु कुरु जनानाम्. ओमिति नमो नमो हाँ ह्रीं हूँ ह्रः,यः क्षः ह्रीं फट् फट् स्वाहा.........14. एवं-यन्नामाक्षर-पुरस्सरं, संस्तुता जया-देवी. 128 PRATIKRAMAN SUTRA BOOK

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