Book Title: $JES 941 Pratikraman Sutra Book in English
Author(s): JAINA Education Committee
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 142
________________ 51. सकल तीर्थ वन्दना - SAKALA TIRTHA VANDANA 51. सकल तीर्थ वन्दना - Sakala Tirtha Vandana 51. Introduction To pay obeisance to all the eternal (shäsvata) and non-eternal (ashäsvata) temples, images of Tirthankars, and to prominent heavenly gods and seers. 51. सकल तीर्थ वन्दना सकल तीर्थ वंदु कर जोड, जिनवर नामे मंगल क्रोड. पहेले स्वर्गे लाख बत्रीश, जिनवर चैत्य नमुं निश-दिश......... बीजे लाख अठ्ठावीश कयां, त्रीजे बार लाख सद्दयां. चोथे स्वर्गे अड लख धार, पांचमे वंदुं लाख ज चार. ............. छढे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीस सहस प्रासाद. आठमे स्वर्गे छ हजार, नव दशमे वंदु शत चार....... ...........3. अगियार बारमे त्रणसें सार, नव ग्रैवेयके त्रणसें अढार. पांच अनुत्तर सर्वे मळी, लाख चोराशी अधिकां वळी. ............. सहस सत्ताणुं त्रेवीस सार, जिनवर भवन तणो अधिकार. लांबां सो जोजन विस्तार, पचास ऊंचां बहोंतेर धार.... एक सो एंशी बिंब प्रमाण, सभा सहित एक चैत्ये जाण. सो क्रोड बावन क्रोड संभाल, लाख चोराणुं सहस चौआल............ सातसें उपर साठ विशाल, सवि बिंब प्रणमंत्रण काल. सात क्रोड ने बहोंतेर लाख, भवनपतिमा देवळ भाख. एक सो एंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण. 142 PRATIKRAMAN SUTRA BOOK

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