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श्रीसरस्वतीमहापूजन
विधि
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સગર
: संकलन : प.पू. आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी म. सा.
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श्रीसरस्वतीमहापूजन
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संकलन प.पू. आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी म.सा.
प्रकाशक श्री जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति
खंभात सं. २०५६ ई.स. २०००
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श्रीसरस्वतीमहापूजन संकलन प.पू. आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वरजी म.सा. ©सर्वाधिकार सुरक्षित
मूल्य : रु.२५ प्रति : ५००
प्रकाशक : श्री जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति शनुभाई के. शाह, सुमनभाई पी. कापडीया जीराळापाडो, खंभात - ३८८ ६२० सं. २०५६ ई.स. २०००
प्राप्तिस्थान : जैन प्रकाशन मंदिर दोशीवाडानी पोळ अमदावाद -३८० ००१
मुद्रक : सचीन एन्टरप्राईझ फोन : ७४९७०४७, मोबाइल : ९८२५० ११४१४
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प्रकाशकीय
प.पू. शासन सम्राट तपागच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीविजय- नेमिसूरीश्वरजी म. सा. ना समुदायना प.पू. आचार्य श्रीविजय- सूर्योदयसूरीश्वरजी म. सा., प.पू. आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म. सा., प.पू. आ. श्रीविजयभद्रसेनसूरिजी म. सा. आदिए वि.सं. २०५६नुं चातुर्मास भावनगर शहेरमां कयें . आ चातुर्मास दरम्यान प.पू. आ. श्रीविजयसूर्योदयसूरिजी म.सा.नी भावना अनुसार समग्र भावनगर शहेरना जैन श्वे. मू. पू. तपा संघना बालक-बालिकाओ धार्मिक तेमज व्यावहारिक शिक्षणमां रस लेता थाय तथा तेओना ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थाय तो माटे वि. सं. २०५६, आसो सुद - ८, ९ (प्रथम) तथा ९ (बीजी) गुरुवार, शुक्रवार अने शनिवारे त्रण एकासणा तथा जाप सहित श्रीसरस्वतीमाता(श्रीश्रुतदेवता)नी आराधना कराववामां आवी हती अने तेना उद्यापन आसो सुद - १०, रविवारे प. पू. आ.श्रीविजय सूर्योदयसूरिजी म.सा.ए तैयार करेल श्रीसरस्वतीमहापूजन सौ प्रथमवार ज विधिपूर्वक भारे हर्षोल्लाससहित भणाववामां आव्युं.
आ श्रीसरस्वतीमहापूजनी पुस्तिका प्रकाशित करवानी भाविको तरफथी मागणी थतां तेने पुस्तक स्वरूपे प्रकाशित करतां अमो हर्षनी लागणी अनुभवीए छीए.
प्रान्ते आ श्रीसरस्वतीमहापूजन सौना ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशमनुं निमित्त बने एवी शुभभावना सह विरमीए छीए.
वि. सं. २०५६ आसो वद - ८, शुक्रवार ता. २० - १० - २०००
श्री जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति
खंभात वती शनुभाई के. शाह, सुमनभाई पी. कापडीया
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: सौजन्य :
ललिताबहेन अनोपचंद मानचंद शाह जसपरावाळा परिवार ह. प्रवीणचंद्र गिरघरलाल शाह
तथा पुष्पाबहेन जयंतिलाल लालचंद शाह तळाजावाळा परिवार
ह. नरेन्द्रकुमार जयंतिलाल शाह
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श्री सरस्वतीमहापूजन
(पूर्वतैयारी) १. आ पूजन मुख्यत्वे विद्याप्राप्ति / ज्ञानप्राप्ति अने ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशम माटे करवामां / कराववामां आवे छे. २, आ पूजन एकवीश दिवसना श्रीसरस्वतीदेवी-श्रीश्रुतदेवतानी आराधना/जाप वगेरे अनुष्ठानोनी पूर्णाहुति प्रसंगे खास करवू जोइए. ३. आ पूजन करवा माटे १५ फूट पहोळा अने २० फूट लांबा हवा उजाशवाळा स्थाननी जरूर रहे छे. ४. ज्यां खुल्ली भूमि पर मंडप बांधी पूजन करवानुं होय त्यां कोइ मृत प्राणीनुं कलेवर, हाडकां के लोखंड वगेरेनो भंगार होवानी शंका होय तो, ए भूमिने एक फूट खोदीने शुद्ध करी लेवी. जो लींपणवाळा स्थानमां पूजन करवानुं होय तो तेने छाणथी लीपी, पछी तेने वाळी उपयोगमा लेवू. ५. फरसबंधीवाला स्थानने प्रथम वाळी, पछी पाणीथी धोइ, छेवटे गुलाबजलनो छंटकाव करी, तेने शुद्धवस्त्रथी साफ करी पछी उपयोगमां लेबु. ६. पूजनना स्थानने आसोपालवनां तोरणोथी शणगारवू तथा मुख्य द्वारे मंगलतोरण बांधवू.
. वस्तुओनी यादी १. श्री महावीरस्वामी भगवान, श्री गौतमस्वामीजी तथा श्री सरस्वतीदेवीनी सुंदर प्रतिमा अथवा छबी २. त्रिगडु, चंदरवो, पूठियुं वगेरे, बाजोठ, बे-त्रण पाट ३. पीठो उपर पाथरवा माटे लाल मादरपाटनुं मोटा पनानुं कपडु - ९ मीटर तेमांथी जरूरियात प्रमाणे पांच टूकडा करवा ४. बे-त्रण नानी शेतरंजीओ के चटाइ ५. २ धोएली चादर ६. २ नेप्किन २ डस्टर ७. चप्पु, कातर, लोखंडनो नानो सळियो
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श्री सरस्वतीमहापूजन
८. रक्तचंदननो टूकडो तथा ओरसियो ९. नाडाछडी, कपूर, कंकु, सोपारी १०. १५० कमलकाकडी अथवा बदाम. (मंत्र गणवा) ११. थाल-६, थालीओ-१२, वाडका-६, मोटा वाडका-४, चांदीनो कलश-१, लोटो-१, प्यालो-१, पंचपात्र-१, तरभाj-१, त्रांबांनी चमची-१, बीजी चमची-२, तपेली नानी ढांकणां साथे-१, तपेलु मोटुं-१, पाणीनी डोल-१, पूजानी नानी वाटकी-२, पंचमुखी आरतिमंगल दीवो-१-१, दिवासलीनी पेटी-२ १२. पंचामृत पूजाना दिवसे सवारे तैयार करी चांदीना कलशमां के लोटामां भरी लेवू अने तेने नाडाछडी बांधवी, तेमां जे दहीं नाखवानुं होय ते आगला दिवसे जुदी वाटकीमां मेलवq. १३. गंधपूजा माटे उंचो वासक्षेप १०० ग्राम, अष्टगंध २ ग्राम, केशर १ ग्राम, अत्तर. १४. अक्षतपूजामाटे उंची जातना चोखा २५० ग्राम, लविंग तोलो-१, कोपरानुं छीण-३ तोला, १५. पुष्पपूजा माटे छूटां सफेद पुष्पो पांच जातनां, जाइ, जूइ, मोगरो, चंपो, सफेद गुलाब वगेरे १५०-१५०, बे फूलना हार १६. नैवेद्यपूजा माटे खडी साकर गांगडा-१०८, आठ प्रकारनी मीठाइ कुल-१.५ किलो, तथा अबोट नीचेनी चार वस्तु बनाववी. (१) खीर (२) कंसार (३) वाटी दालनां वडां (४)अदडनां बाकला १०० ग्राम. १७. पूजनना आरंभथी अंत सुधी दीपक राखवो तथा दीपपूजामां दीवाने थालीमां मूकी १०८ वार मंत्र बोलवापूर्वक सामे धरवो.. ते माटे गायनुं घी २०० ग्राम, रू, दीवी, फानस १८. धूपपूजा माटे धूप उंची जातनो १०० ग्राम, धूपधाणां मोटां, सगडी, कोलसा, केरोसीन, मसोतुं, पूर्छ, चीपियो, १९. फलपूजा माटे बीजोरूं-१, श्रीफल-१, तेमज बीजां आठ जातिनां ताजां फलो तथा आखी बदाम १०८.
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२०. वस्त्रपूजा माटे सफेद रेशमी-भरेली किनारीवाळी साडी साथे रूपानुं छत्र तथा रू. २५। - २५ | रोकडा मूकवा. २१. आभरणपूजामां नीचे प्रमाणे सोल शणगारनी वस्तुओ मूकवी. (१) नथडी, (२) मुद्रिका (वीटी), (३) दामणी, (४) कंकण जोडी-१, (५) केयूर (बाजुबंध) (६) माथानो मुगट, (७) काननां कुंडल जोडी१, (८) मुक्ताहार (मोतीनो हार), (९) कटिमेखला, (१०) नूपुर (झांझर), (११) रेशमी सफेद साडी, (१२) सिंदुरियुं. (१३) कंकु, (१४) हाथीदांत के सुखडनी कांसकी, (१५) अत्तरनी शीशी, (१६) पुष्पमाला
रचना
१. विद्याप्राप्तिनी इच्छावाळाए शक्य होय तो पूर्वाभिमुख बेसबुं. २. प्रथम त्रण नवकार गणी त्रिगडुं, पाट वगेरे स्थापन करवू पछी त्रण नवकार गणी श्रीमहावीरस्वामी भगवान, श्रीगौतमस्वामी तथा श्रीसरस्वती देवीनी प्रतिमा पधराववी.
आराधनविधि त्रण दिवसमां आयंबिलना तपपूर्वक ऐं नमः मन्त्रनी १२५ माळा (१२५००) जाप करवाथी विद्या-ज्ञान प्राप्त थाय छे.
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श्री बप्पभट्टिसूरिकृतः अनुभूतसिद्धसारस्वतस्तवः ( सरस शांति सुधारस - द्रुतविलम्बितछंद )
।।३।।
कलमरालविहङ्गमवाहना सितदुकूल - विभूषणलेपना । प्रणतभूमिरुहामृतसारिणी प्रवरदेह - विभाभरधारिणी अमृतपूर्णकमण्डलुधारिणी त्रिदशदानवमानवसेविता । भगवती परमैव सरस्वती मम पुनातु सदा नयनाम्बुजम् जिनपतिप्रथिताखिलवाङ्मयी गणधराननमण्डपनर्तकी । गुरुमुखाम्बुजखेलनहंसिका विजयते जगति श्रुतदेवता अमृतदीधितिबिम्बसमाननां त्रिजगति जननिर्मितमाननाम् । नवरसामृतवीचिसरस्वतीं प्रमुदितः प्रणमामि सरस्वतीम् विततकेतकपत्रविलोचने विहितसंसृतिदुष्कृतमोचने । धवलपक्षविहङ्गमलाञ्छिते जय सरस्वति ! पूरितवाञ्छिते ।।५।। भवदनुग्रहलेशतरङ्गितास्तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः । नृपसभासु यतः कमलाबला-कुचकलाललनानि वितन्वते गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात् कलितकोमलवाक्यसुधोर्मयः । चकितबालकुरङ्गविलोचना जनमनांसि हरन्तितरां नराः ।।७।। करसरोरुहखेलनचञ्चला तव विभाति वरा जपमालिका । श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरोज्ज्वल-तरङ्गकलाग्रहसाग्रहा द्विरदकेसरिमारिभुजङ्गमासहनतस्करराजरुजां भयम् । तव गुणावलिगानतरङ्गिणां न भविनां भवति श्रुतदेवते ।।९।। ॐ ह्रीं क्लीं ब्लू ततः श्रीं तदनु हस कल ह्रीं अथो ऐं नमोऽन्ते, लक्षं साक्षाज्जपेद् यः करसमविधिना सत्तपा ब्रह्मचारी । निर्यान्तीं चन्द्रबिम्बात् कलयति मनसा त्वां जगच्चन्द्रिकाभां, सोऽत्यर्थं वह्निकुण्डे विहितघृतहुतिः स्याद्दशांशेन विद्वान् ||१०|| (शार्दूलविक्रीडितम्)
।।६।।
रे रे लक्षण-काव्य-नाटक- कथा - चम्पूसमालोकने,
क्वायासं वितनोषि बालिश मुधा किं नम्रवक्त्राम्बुजः ।
।।१।।
।।२।।
।।४।।
||८||
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श्री सरस्वतीमहापूजन
भक्त्याराधय मन्त्रराजमहसाऽनेनानिशं भारती, येन त्वं कवितावितानसविताद्वैतप्रबुद्धायसे ।।११।। चञ्चच्चन्द्रमुखी प्रसिद्धमहिमा स्वाच्छन्द्यराज्यप्रदाऽनायासेन सुरासुरेश्वगणैरभ्यर्चिता भक्तितः । देवी संस्तुतवैभवा मलयजालेपाङरङ्गद्युतिः, सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्यसञ्जीवनी ।।१२।। स्तवनमेतदनेकगुणान्वितं पठति यो भविकः प्रमनाः प्रगे । स सहसा मधुरैर्वचनाऽमृतैर्नृपगणानपि रञ्जयति स्फुटम् ।।१३।।
। इति श्री सरस्वतीस्तवः संपूर्णः । || ॐ ह्रीं क्लीं ब्लू श्री हस कल ह्रीं ऐं नमः ।।
चिरंतनाचार्यविरचितं श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्
(सरस शांति सुधारस - द्रुतविलम्बितछंद) सकल-मङ्गल-वृद्धिविधायिनी, सकल-सद्गुणसन्ततिदायिनी । सकलमजुलसौख्यविकाशिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती।।१।। अमर-दानव-मानवसेविता, जगति जाड्यहरा श्रुतदेवता । विशद-पक्ष-विहङ्गविहारिणी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।२।। प्रवर-पण्डितपुरुषसेविता, प्रवर-कान्तिविभूषणराजिता । प्रवर-देहविभाभरमण्डिता, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।३।। सकल-शीतमरीचिसमानना, विहितसेवक-बुद्धिविकाशना । धृत-कमण्डलु-पुस्तकमालिका, हरतु मे दुरितानि सरस्वती।।४।। सकल-मानससंशयहारिणी, भवभवोर्जित-पापनिवारिणी । सकल-सद्गुणसन्ततिधारिणी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती।।५।। प्रबल-वैरिसमूहविमर्दिनी, नृपसभादिषु मानविवर्धिनी । नतजनोदत-संकटभेदिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।६।। सकल-सद्गुणभूषितविग्रहा, निजतनु-द्युतितर्जितविग्रहा । विशद-वस्त्रधरा विशदद्युति, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।७।। भवदवानलशान्ति-तनूनपाद्धितकरैकृतिमन्त्रकृतकृपा ।
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श्री सरस्वतीमहापूजन भविकचित्तविशुद्धविधायिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।८।। तनुभृतां जडतामपहृत्य या, विबुधतां ददते मुदिताऽर्चया । मतिमतां जननीति मताऽत्रसा, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।९।। सकल-शास्त्रपयोनिधिनौःपरा, विशदकीर्तिधराङ्गितमोहरा । जिनवरानन-पद्मनिवासिनी, हरतु मे दुरितानि सरस्वती ।।१०।। इत्थं श्रीश्रुतदेवता-भगवती विद्वद्जनानां प्रसूः,
सम्यग्ज्ञानवरप्रदा घनतमो निर्नाशिनी देहिनाम् । श्रेयः श्रीवरदायिनी सुविधिना संपूजिता संस्तुता,
दुष्कर्माण्यपहृत्य मे विदधतां सम्यक्श्रुतं सर्वदा ।।११।।
||१||
||२||
श्रीमुनिसुंदरसूरिविरचितं श्रीसरस्वतीस्तोत्रम्
(अनुष्टुप छंद) आराद्धा श्रद्धया सम्यग्ज्ञानादिकजयश्रियम् ।
ददती जगतां मातर्जय भारति देवते ! चतुर्वरदवीणाक्ष-सूत्रपुस्तकभृद्भुजे ।
मरालवाहने शक्र-क्रियमाणाश्रयस्तवे आद्ये श्रीसूरिमन्त्रस्य विद्यापीठे पदे स्थिते ।
श्रीमद्गौतमपादाब्जपरिचर्यामरालिके ।।३।। श्रीजिनेन्द्रमुखाम्भोज-विलासं वसते सदा ।
जिनागमसुधाम्भोधिमध्यासिनि विधुद्युते ।।४ ||कलापकम् ।। कविहृत्कमला क्रीडप्रबोधतरणिप्रभे ।
प्रसीद भगवत्याशु देहि भारति मेऽर्थितम् ।।५।। ऐं नमः प्रमुखैमन्त्रैराराध्ये विश्वदेवते ।
अरुन्मणिलताजैत्र-प्रभावसुभगे जय ।।६।। आराध्या दर्शनैः सर्वैः सकलाभीष्टदायिनी ।।
रातु बोधिं विशुद्धां मे वाग्देवी जिनभक्तिभृत् ।।७।। स्तूयमाने महानेकमुनिसुंदरसंस्तवैः ।
स्तुते मयापि मे देहि प्रार्थितं श्रीसरस्वती ।।८।।
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श्री सरस्वतीमहापूजन श्रीसरस्वतीदेवीनी स्तुति रचयिता - आचार्य श्रीविजयहेमचन्द्रसूरिजी महाराज
(झूलणा छंद - रात रहे जाहरे पाछली खटघडी....) मात हे भगवति ! आव मुज मनमहिं,
ज्योति जिम झगमगे तमस जाये टळी, कुमतिमतिवारिणी कवि मनोहारिणी,
जय सदा शारदा सारमतिदायिनी.......१ श्वेतपद्मासना श्वेतवस्त्रावृता,
कुन्द-शशि-हिम समा गौरदेहा, स्फटिकमाळा वीणा कर विशे सोहता,
कमळ-पुस्तकधरा सर्वजनमोहता.........२ अबुध पण कैंक तुज महेंरने पामीने, ____ पामता पार श्रुतसिन्धुनो ते, अम पर आज तिम देवि ! करुणा करो,
जेम लहीए मति विभव सारो............३ हंस तुज संगना रंगथी भारति !
जिम थयो क्षीर-नीरनो विवेकी, तिम लही सार-निःसारना भेदने,
आत्महितसाधु कर मुज पर म्हेंरने.....४ देवि तुज चरणमां शिर नमावी करी,
एटलुं याचीए विनय भावे करी, याद करीए तने भक्तिथी जे समे,
जीभ पर वास करजे सदा ते समे.....५ मात हे भगवति !
( 90)
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१२
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श्री सरस्वतीमहापूजन
श्री सरस्वती मातानी प्रार्थना (सोळ नाम गर्भित) (राग-प्रभातियो-जागने जादवा कृष्ण गोवाळीया)
सरस्वती मातने ऊठी प्रभातमां,
तन-मन एक करी नित्य नवीए, सरस्वती मातना पुण्य पसायथी,
ज्ञान संपत्ति सौभाग्य वरीए.........१ भारती मातना सुभग उच्चारथी,
मनुजनी मति अतिशय वाधे, सरस्वती मातनुं नाम जे जन जपे,
बुद्धिना आठ गुण तेहने लाधे......२ फूल-अगरु ने कस्तूरी चंदनथकी,
पूजीए शारदा देवी भावे, हंसवाहिनी नाम सुखदायिनी,
समरतां लील विलास थावे.........३ जगत विख्याता देवी त्रिपुरा भली,
भक्ति करतां भवभीड भांगे, मात वागीश्वरी गुणथी गरीयसी, ___आपजो ज्ञाननुं दान रागे... देवी कुमारीने नित्य हुं समरूं छु,
___ भक्तिभावे मुदा ध्यान योगे, हस्तवीणा तथा पुस्तकधारिणी,
देवी श्रीने जपो शुभ योगे...........५ ब्रह्मचारिणी देवीने हुं विनवू,
दासनी विनति दिल लेजो, देवी श्री वाणीनी ब्राह्ममुहूर्तमां,
मन-वच-कायथी सेव करजो........६ देवी श्री भाषानी आशा मुजने घणी,
........४
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श्री सरस्वतीमहापूजन
.....८
आपशे विद्या भव तारनारी, देवी ब्रह्माणी श्री जगतनी मात तुं,
पाप सकलथी वारनारी............७ मंगलकारी देवी ब्रह्मवादिनी,
समरतां सन्मति पास आवे, देवी ब्रह्माणीसुता दिल समरतां,
दुर्मति-दुर्जन-दुःख जावे... देवी श्रुतदेवता मुजने आपजो,
आशिष कोटी मंगलदायी, ज्ञानना रागी नेमि गुरु मातने,
नमन करतां सदा सिद्धि पायी....९ सूरि सूर्योदय गुरु सूर्योदये, ___भद्र भावे नमी रिद्धि पावे, षोडश नामनी प्रार्थना जे करे,
ते भवि भव तरे सहज भावे.....१०
सरस्वती-मंत्र-प्रदान-विधि श्रीसरस्वतीदेवीनी छबी सामे स्तुति करी, इरिया. करी खमा. दई इच्छा. संदिसह भगवन् श्रुतदेवता आराधनार्थं काउ. करूं ? इच्छं, श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउ. अन्नत्थ. १ नवकारनो काउ. पारी नीचेनी थोय बोलवी. सुयदेवया भगवई नाणावरणीयकम्मसंघायं । तेसिं खवेउ सययं जेसिं सुयसायरे भत्ती ।। पछी खमा. देवं. पछी प्राणायामनी विधि आ रीते करवी. (१) स्वस्थ बनी जमणी नासिका दबावी डाबेथी श्वास धीरे धीरे काढतां 'रागात्मकं रक्तवायुं विसर्जयामि' बोलवू. (२) स्वस्थ बनी डाबी नासिका दबावी जमणेथी श्वास धीरे धीरे काढतां 'द्वेषात्मकं रक्तवायुं विसर्जयामि' बोलवू. (३) ते पछी स्वस्थ बनी जमणी नासिका दबावी डाबेथी श्वास धीरे धीरे लेतां 'सत्त्वात्मकं शुक्लवायुं आगृह्णामि आधारयामि' बोलवू अने श्वास स्थिर करतां इष्ट मंत्र देवो. मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं ब्लूँ श्री हसं कल ह्रीं ऐं नमः || पछी त्रण वार मोटेथी उच्चार करी मंत्र बोलवो अने रोज एक माळा गणवी.
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१४
स
श्री सरस्वतीमहापूजन
चिरंतनाचार्यविरचिता श्रीसरस्वतीस्तुतिः ॐ ह्रीं अहँ मुखाम्भोजवासिनी पापनाशिनीम् । सरस्वतीमहं स्तौमि श्रुतसागरपारदाम् ।।१।। लक्ष्मीबीजाक्षरमयीं मायाबीजसमन्विताम् । त्वां नमामि जगन्मात-स्त्रैलोक्यैश्वर्यदायिनीम् ।।२।। सरस्वति ! वद वद वाग्वादिनि मिताक्षरैः । येनाहं वाङ्मयं सर्वं जानामि निजनामवत् ।।३।। भगवति सरस्वति ! ह्रीं नमोऽह्रिद्वयप्रगे । ये कुर्वन्ति न ते हि स्युर्जाड्यांध-विधुराशयः ।।४।। त्वत्पादसेवी हंसोऽपि विवेकीति जनश्रुतिः । ब्रवीमि किं पुनस्तेषां यैषां त्वतच्चरणौ हृदि ।।५।। तावकीना गुणाः मातः सरस्वति ! वदामि किम् । यैः स्मृतैरपि जीवानां स्युः सौख्यानि पदे पदे ।।६।। त्वदीय-चरणाम्भोजे मच्चित्तं राजहंसवत् ।। भविष्यति कदा मातः सरस्वति ! वद स्फूटम् ।।७।। श्वेताब्ज-मध्य-चन्द्राश्म-प्रासादस्थां चतुर्भुजाम । हंसस्कंधस्थितां चन्द्रमूर्त्यतनूप्रभाम् ।।८।। वामदक्षिणहस्ताभ्यां बिभ्रतीं पद्मपुस्तिकाम् । तथेतराभ्यां वीणाक्षमालिकां श्वेतवाससाम् ।।९।। उद्गिरन्तीं मुखाम्भोजादेनामक्षरमालिकाम् । ध्यायेद् योगस्थितां देवीं स जडोऽपि कविर्भवेत् ।१०।। यथेच्छया सुरसंदोहसंस्तुता मयका स्तुता । तत्तां पूरयतु देवि ! प्रसीद परमेश्वरि ! ।।११।। इति शारदास्तुतिमिमां हृदये निधाय,
ये सुप्रभातसमये मनुजाः स्मरन्ति । तेषां परिस्फुरति विश्वविकासहेतुः,
सद्ज्ञानकेवलमहो महिमानिधानम् ।।१२।।
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।। णमुत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स ।। || 5 | नमो भगवओ गुरु गोयमस्स ।।
|| ऐं नमः ।।
|| अथ श्री सरस्वतीमहापूजनविधि ||
१. नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं | नमो आयरियाणं । नमो उवज्झायाणं। नमो लोए सव्वसाहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम् । २. ॐ नमो अरिहंताणं । नमो सिद्धाणं । ४ नमो आयरियाणं । 3 नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम् । ३. ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ४ नमो आयरियाणं । _ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलम्।
(स्तुतिओ) अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः ।
आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः ।। श्रीसिद्धान्तसुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधकाः ।
पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ।।१।। मङ्गलं भगवाम् वीरो, मङ्गलं गौतमप्रभुः ।
मङ्गलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोऽस्तु मङ्गलम् ।।२।। कल्याणपादपाराम, श्रुतगङ्गाहिमाचलम् ।
विश्वाम्भोजरविं देवं, वन्दे श्रीज्ञातनन्दनम् ।।३।। वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमहितो, वीरं बुधाः संश्रिताः ।
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श्री सरस्वतीमहापूजन
वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयो, वीराय नित्यं नमः ।। वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपो । वीरे श्रीधृतिकीर्त्तिकान्तिनिचयः, श्रीवीर ! भद्रं दिश ।।४।।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या श्वेतपद्मासना ।
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या वीणावरदण्डमण्डितकरा या शुभ्रवस्त्रावृता ।। या ब्रह्माऽच्युतशङ्करप्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।५।। कुंदिंदुगोक्खीरतुसारवन्ना, सरोजहत्था कमले निसन्ना । वाएसिरि पुत्थयवग्गहत्था, सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ।।६।। यो लेखशालां प्रहितः पितृभ्यां, बिडौजसे व्याकरणं जगौ च । गतं यदिन्द्राभिधया प्रसिद्धिं ज्ञानश्रिये सोऽस्तु जिनेन्द्रवीरः । । ७ । । ( सर्व प्रथम पूजन माटे लावेली साधनसामग्री उपर त्रण वखत वासक्षेप करवो)
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जलमन्त्रः
च आपोऽप्काया एकेन्द्रियां जीवा निरवद्यश्रीमहावीरस्वामिमहापूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तु सद्गतयः सन्तु न मेऽस्तु सङ्घट्टनहिंसापापं पूजार्चने स्वाहा ।।
[ इति जलाभिमन्त्रणम् ]
( आ मन्त्र बोली जल उपर त्रण वखत वासक्षेप करवो ) (२७डंका वगाडवा) पत्रपुष्पफलचंदनादिमन्त्रः
च वनस्पतयो वनस्पतिकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यश्रीमहावीरस्वामिमहापूजायां निर्व्यथाः सन्तु निरपायाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु, न मेऽस्तु सङ्घट्टनहिंसापापं पूजार्चने स्वाहा ।।
[ इति पत्रपुष्पफलचंदनाभिमन्त्रणम् ]
( पत्र - पुष्प-फल- चंदन आदि उपर त्रण वखत वासक्षेप करवो ) (२७ डंका वगाडवा)
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धूपवह्निदीपाभिमन्त्रणम् ॐ अग्नयोऽग्निकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यश्रीमहावीरस्वामि- महापूजायां निर्व्यथाः सन्तु, निरपायाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु, न मेऽस्तु सङ्घट्टनहिंसापापं पूजार्चने स्वाहा ।।
[ इति धूपवह्निदीपाद्यभिमन्त्रणम् ] (धूप-दीप आदि उपर त्रण वखत वासक्षेप करवो)(२७ डंका वगाडवा)
आत्मरक्षा ॐ परमेष्ठिनमस्कार, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ।।१।। ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ।।२।। ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षाऽतिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ।।३।। ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे । एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ।।४।। सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका ।।५।। स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलम् । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ।।६।। महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ।।७।। यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ।।८।।
शोधनमंत्र (पूजा करनारे नाही धोईने बेसवानुं छे, छतां मांत्रिकदृष्टिए शरीर-मननुं विशिष्टशोधन करवानी जरूर छे. ते माटे नीचेनो मंत्र त्रणवार अथवा सातवार
बोलवो)
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अरजे
विरजे अशुद्धविशोधिनि मां शोधय शोधय स्वाहा ।।
(आ मंत्र बोलती वखते एम चितववुं के मारा शरीर अने मननी विशिष्ट शुद्धि थई
रही छे.)
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अमृताभिषेक
( ते पछी नीचेनो मंत्र त्रणवार अथवा सातवार बोलवो)
अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय स्वाहा || ( आ मंत्र बोलती वखते एम चिंतववुं के मारा मस्तक उपर अमृतनी वर्षा थई रही छे अने हुं मांत्रिकस्नान करी रह्यो छु, आ मंत्र बोलती वखते थोडा थोडा समयना अंतरे बने हाथो वडे अमृतवर्षानी मुद्रा करता रहेवु )
कल्मषदहन
(कल्मष एटले पाप, तेनुं दहन करवाने लगती क्रिया ते कल्मषदहन. ते माटे नीचेनो मंत्र बोली बने भुजाओने स्पर्श करवो. आ क्रिया त्रणवार करवी) विद्युत्स्फूलिङ्गे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा हृदयशुद्धि
(हृदयशुद्धि माटे डाबा हाथथी हृदयने स्पर्श करतां नीचेनो मंत्र त्रणवार बोलवो)
ॐ विमलाय विमलचित्ताय ज्वीं क्ष्वीं स्वाहा ।।
पंचबीजनी धारणा
( डाबा हाथवडे स्पर्श करता नीचे प्रमाणे पंचबीजनी धारणा करवी) हृदये- ह्राँ, कण्ठे- ह्रीँ, तालव्ये - हूँ, ललाटे - ह्रौं, शिखायां - ह्रः ।
दिग्बन्धन
( जमणा हाथमां पाणी लई नीचेना मंत्रो बोलवापूर्वक ते ते दिशामां छांटतां दिग्बन्धननी क्रिया थाय छे.)
पूर्व दिशामां- क्षाँ, दक्षिण दिशामां र्क्षी, पश्चिम दिशामां - क्षू, उत्तर दिशामां - क्ष, उर्ध्व दिशामां
क्षः ।
अंगुलीन्यास
( ते पछी नीचे मुजब बीजाक्षरो ऋण त्रणवार बोली डाबा हाथनी अनामिका आंगलीवडे जमणा हाथनी आंगलीओ उपर मंत्राक्षरो स्थापन करवा. पहेलो बीजाक्षर कनिष्ठिका आंगली उपर अने ते पछी अनुक्रमे अंगूठा सुधी आ क्रिया करवी)
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हाँ, ह्रीं, हूँ, ह्रौं, ह्रः । (आ न्यासथी आंगलीओ दैवी शक्तिथी विभूषित थई रही छे एम समजवू)
अंगन्यास
( ते पछी नीचे प्रमाणे अंगन्यास करवो) शिखास्थाने हाथ मूकतां- नमो अरिहंताणं हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा ।। मुख उपर हाथ राखता- नमो सिद्धाणं ह्रीं वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा ।। हृदय पर हाथ राखता- ॐ नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा ।। नाभि पर हाथ राखता- ॐ नमो उवज्झायाणं ह्रौं नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा।। बंने साथल पर हाथ राखतां- ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं ह्रः पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा ।।
रक्षाबंधन (पूजनमां बेसनार दरेकना हाथे नाडाछडी बांधवी, तेमां पूजन करावनार तथा उत्तरसाधकना हाथे पहेली बांधवी)
दिक्कुमारिकाओने तिलक (रक्तचंदन घसीने एक वाटकीमां उतारेखें होय ते जमणा हाथनी तर्जनी आंगली उपर लई नीचे प्रमाणे दिशाओनी सामे धरवाथी दिक्कुमारिकाओने तिलक थाय छे. प्रथम पूर्व-दक्षिण-पश्चिम-उत्तर पछी ईशान-अग्नि-नैऋत्य-वायव्य पछी अधो अने उर्ध्व. आ वखते हु ६ नमः ए मंत्र बोलवो.)
तिलकविधि श्री महावीरस्वामी भगवान तथा श्री सरस्वती देवीने दर्पण बतावी तेमां तेमनां दर्शन करी नमः बोलवापूर्वक पोताना कपालमां रक्तचंदननु तिलक करवू. पछी उत्तरसाधक तथा पूजनमां बेसनाराओने पण रक्तचंदननां तिलक करवा.
वायुकुमारने आह्वान Pा वातकुमाराय विघ्नविनाशकाय महीं पूतां कुरु कुरु स्वाहा ।। (आ मंत्र बोली दर्भना घासथी अथवा मोरनी पींछीथी भूमिर्नु प्रमार्जन करवू.)
(राग - बहाल, ताल - त्रिताल) आवो पधारो वायुदेवता, पवनदेवता आवो......
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आंगणुं अमारुं पावन करवा, तनना मनना संतापने हरवा..... भक्तोतणा विघ्नोने हरवा, वायुदेवता आवो.....
मेघकुमारने आह्वान मी मेघकुमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय हूँ फूट् स्वाहा ।। ( आ मंत्र बोली दर्भ अथवा फूलथी पाणी भूमि उपर छांटवू.)
(राग - मल्हार, ताल - त्रिताल) वरसो रे.....वरसो रे.... मेघकुमार वरसो.... गड गड गड गड वादल गरजे, वीज करे चमकार..... मेघकुमार आवी रह्या छे, हरखे नरने नार......
. भूमिने सुवासित करवानो मंत्र ॐ भूरसि भूतधात्री सर्वभूतहिते भूमिशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।।
( आ मंत्र बोली भूमि उपर चंदननां छांटणां करवां.) चंदननां छांटणां छंटावो, भक्तिकेरा नवला रंगे.... रंगे रे केशरियो रेलावो...
शरीरशुद्धिकरण(स्नान)मंत्र ॐ नमो विमलनिर्मलाय सर्वतीर्थजलाय पां पां वां वां ज्वी क्ष्वी अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा।। ( आ मंत्र बोली चेष्टापूर्वक स्नान करवू.)
(राग - अब सौंप दीया) हुं नाही रह्यो छु मंत्रोथी, तन-मनने पवित्र करवाथी, पूजन भणावें भावथी, मुक्ति मेलववाना लोभथी.... संसारनां कार्यो करवाथी, कर्मों में बांध्यां रागथी, जिनेशनी भक्ति करवाथी, राग-द्वेष जाय मारा आत्माथी...१ अनादिकालथी हुँ भटकी रह्यो, तारी सेवा वगर हुं अथडी रह्यो, तने पामीने आजे धन्य बन्यो, पूजन करीने पुण्यशाली बन्यो...२
श्री क्षेत्रपालपूजनम् ॐ शाँ ी क्षौँ क्षः श्री क्षेत्रपाल सायुध सवाहन सपरिकर इह श्री
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श्री सरस्वती महापूजन
सरस्वतीदेवीपूजनविधिमहोत्सवे अत्र आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।। (थालीनो एक डंको वगाडवो) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।। (थालीनो एक डंको वगाडवो) अत्र पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ।। ( आखी थाली वगाडवी) विधि - यंत्रमां कुसुमांजलि तथा मांडलामां एक नालियेर स्थापन करवुं अने तेना उपर चमेलीना तेलना छांटणां करवां अने चमेलीनुं फूल चडाववुं. क्षेत्रपाल ! क्षेत्रपाल ! आवो पधारो क्षेत्रपाल ...
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श्रीफल चमेलीनुं फूल चढावुं, माथे जासुदनुं फूल चढावुं ... विनंति करे तारा बाल.... क्षेत्रपाल ०
सेवा अमारी आप स्वीकारजो, विघ्नो आवे तो एने निवारजो.... दूर करी सवि जंजाल .... क्षेत्रपाल ० सेवकनी विनंति दिलमां धारजो, भक्तोने भवथी पार उतारजो... भक्तोनी लेजो संभाल..... क्षेत्रपाल ० श्री महावीरस्वामीपूजन
अर्हं श्रीमहावीरस्वामिने नमः ।।
ए मंत्र बोलवापूर्वक श्री महावीरस्वामी भगवाननी वासक्षेपथी त्रणवार पूजा करवी. ते पछी एज मंत्र बोलवापूर्वक तेमने पांच वर्णनां उत्तम जातिनां पुष्पो चढाववां. ते पछी तेमने सुंदर पुष्पहार चडाववो.
अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामीने तथा श्री सरस्वती देवीने पण आ ज वखते हार चडाववानो संप्रदाय छे.
ते पछी अग्रपूजाना अधिकारे नंद्यावर्तनी अथवा सामान्य स्वस्तिकनी
अक्षतवडे रचना करी तेना उपर रूपानाणुं अथवा सोनानाणुं तथा फूल अने नैवेद्य
चडाववा.
त्यार पछी स्तवनना अधिकारे श्रीमहावीरस्वामी भगवाननुं सुंदर स्तवन तथा अनंतलब्धिनिधान श्रीगौतमस्वामीनुं अष्टक बोलवुं,
।। श्रीगौतमाष्टकम् ।। श्रीइन्द्रभूतिं वसुभूतिपुत्रं, पृथ्वीभवं गौतमगोत्ररत्नम् ।
स्तुवन्ति देवासुरमानवेन्द्राः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||१|| श्रीवर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य, मुहूर्त्तमात्रेण कृतानि येन ।
अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशाऽपि स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ।।२।।
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श्री सरस्वतीमहापूजन
श्रीवीरनाथेन पुरा प्रणीतं मन्त्रं महानन्दसुखाय यस्य । ध्यायन्त्यमी सूरिवराः समग्राः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||३|| यस्याभिधानं मुनयोऽपि सर्वे, गृह्णन्ति भिक्षाभ्रमणस्य काले । मिष्टान्नपानाम्बरपूर्णकामाः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ।। ४।। अष्टापदाद्रौ गगने स्वशक्त्या ययौ जिनानां पदवन्दनाय ।
,
निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||५|| त्रिपञ्चसङ्ख्याशततापसानां तपःकृशानामपुनर्भवाय ।
,
1
अक्षीणलब्ध्या परमान्नदाता, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||६|| सदक्षिणं भोजनमेव देयं, साधर्मिकं संघसपर्ययेति ।
,
कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ||७|| शिवं गते भर्तरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैव मत्वा ।
पट्टाभिषेको विदधे सुरेन्द्रैः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ।।८।। त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, सज्ञानबीजं जिनराजबीजं ।
1
यन्नाम चोक्तं विदधाति सिद्धिं स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ।। ९ ।। श्रीगोतमास्याष्टकमादरेण प्रबोधकाले मुनिपुङ्वा ये ।
पठन्ति ते सूरिपदं सदैवा - नन्दं लभन्ते सुतरां क्रमेण ||१०||
आह्वान
1
आँ क्रौं श्रीं विद्यापीठप्रतिष्ठिता गौतमपदभक्ता देवी सरस्वती अत्र आगच्छ आगच्छ संवौषट् स्वाहा ।।
स्थापन
२२
न आँ क्रौं नी श्र विद्यापीठप्रतिष्ठिता गौतमपदभक्ता देवी सरस्वती अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ||
संनिधान
आँ क्रौं ह्रीं श्रीं विद्यापीठप्रतिष्ठिता गौतमपदभक्ता देवी सरस्वती मम
सन्निहिता भव भव वषट् ।।
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संनिरोध आँ क्रौं मा श्री विद्यापीठप्रतिष्ठिता गौतमपदभक्ता देवी सरस्वती पूजान्तं यावद् अत्रैव स्थातव्यम् ।।
अवगुंठन ॐ आँ क्रौं का श्री विद्यापीठप्रतिष्ठिता गौतमपदभक्ता देवी सरस्वती परेषां अदृश्या भव भव ।।
यंत्रपीठिका स्थापना ॐ का अहँ श्री सरस्वतीदेवि ! अत्र मेरुनिश्चले वेदिकापीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ।।
(यंत्रने हस्तस्पर्श करवो) ॐ भी अहँ श्री सरस्वतीदेवि महापूजनयन्त्राय नमः ।।
यंत्रसंस्कार जो पूजनमां यंत्र पधराव्यो होय तो तेनो संस्कार नीचे मुजब करवो, (१) प्रथम दूधवडे प्रक्षाल करवो. (२) पछी पाणीवडे प्रक्षाल करवो. (३) पछी त्रण अंगलुंछणांथी लूंछी साफ करवो. (४) पछी तेने थालीमां पधरावी तेना उपर पूजाना द्रव्यो चडावता ज.
श्रीश्रुतज्ञानपूजन अर्हद्वक्त्रप्रसूतं गणधररचितं द्वादशाङ्गं विशालं, चित्रं बह्वर्थयुक्तं मुनिगणवृषभैर्धारितं बुद्धिमद्भिः । मोक्षाग्रद्वारभूतं व्रतचरणफलं ज्ञेयभावप्रदीपं, भक्त्या नित्यं प्रपद्ये श्रुतमहमखिलं सर्वलोकैकसारम् ।।
दुहो श्री श्रुतदेवी भगवती जे ब्राह्मी लिपिरूप । प्रणमे जेहने गोयमा, हुं वंदु सुखरूप ।। मंत्र - अहँ उत्पत्तिस्थितिसंहृतीति त्रिपथगरूपाय मिथ्यात्ववैताढ्यभेदकाय श्रीश्रुतज्ञानाय गन्धं यजामहे स्वाहा ।।
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श्री सरस्वतीमहापूजन
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अष्टप्रकारी पूजा आ पूजनमा प्रथम अष्टप्रकारी पूजन पछी वस्त्र के आभरणपूजन अने पछी भावपूजनना अधिकारे ध्यान, स्तोत्रश्रवण आदि क्रियाओ करवानी होय छे.
जलपूजा गौतमपदभक्तायै, विद्यापीठप्रतिष्ठितायै च । श्रीभारत्यै देव्यै, समर्पयामो जलं स्वाहा ।।१।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने अभिषेक करवो. श्री सरस्वत्यै जलं समर्पयामि स्वाहा ।
गन्धपूजा नवपुव्वीणं नम इत्येतन्मन्त्रपदप्रतिष्ठाप्ताम् । सुमधुरसुगन्धिचूर्णैर्भक्त्या सम्पूजयामोऽद्य ।।२।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने वासक्षेप करवो. मा श्री सरस्वत्यै गन्धं समर्पयामि स्वाहा ।
अक्षतपूजा दसपुवीणं नम / पदजापवरप्रदां सदा सुभगाम् । अक्षयबोधावाप्त्यै, समर्चयामोऽक्षतैर्देवीम् ।।३।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने अक्षत चडाववा. भु श्री सरस्वत्यै अक्षतान् समर्पयामि स्वाहा ।
पुष्पपूजा कमलगतां कमलनिभां, ४ नम इक्कारसंगधारीणं । एतत्पदवाच्यां वाग्-देवीं पुष्पैर्यजामोऽत्र ।।४।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने पुष्प चडाववां.
हा श्री सरस्वत्यै पुष्पं समर्पयामि स्वाहा ।
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नैवेद्यपूजा प्रणव-नमस्कारान्वित-चउद्दसपुवीणमिति पदाभिहिताम् । विविधैः पक्वान्नैः खलु, यजामहे भारती देवीम् ।।५।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने नैवेद्य चडाव. ॐ श्री सरस्वत्यै नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा ।
दीपपूजा ॐ नम उज्जुमईणं, पदवाच्यां श्रीसरस्वती देवीम् । बोधप्रकाशजननी, दीपेन यजामहे नित्यम् ।।६।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने दीपक दर्शाववो. श्री श्री सरस्वत्यै दीपं दर्शयामि स्वाहा ।
धूपपूजा विउलमईणं नम -पदाभिधेयां सुरासुरैर्वन्द्याम् । श्रुतदेवतां भगवतीं, सुगन्धधूपैर्यजामि मुदा ।।७।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने १०८ वखत धूप उखेववो. ४ा श्री सरस्वत्यै धूपं आघ्रापयामि स्वाहा ।
फलपूजा प्रणवाद्यं प्रणमामः पदाणुसारीणमिति पदाख्याताम् । श्रुतफलदात्री सुफलैः, सुपूजयामो मुदा देवीम् ।।८।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र १०८ वखत बोलवापूर्वक १०८ वखत श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमा तथा यंत्रने फल चडाववां. ॐ श्री सरस्वत्यै फलं समर्पयामि स्वाहा ।
वस्त्रपूजा धवलवसनवृतदेहां, शरदिन्दुसमानधवलवर्णाढ्याम् । धवलैर्महार्घवस्त्रैः, सम्पूज्य नमामि वाग्देवीम् ।।९।।
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त्यार बाद नीचेनो मंत्र बोलवापूर्वक श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमाने श्वेत चूंदडी चडाववी. में ही श्री सरस्वत्यै वस्त्रं परिधापयामि स्वाहा ।
आभरणपूजा रजत-सुवर्णविनिर्मित-मणिमण्डितभूषणैश्च षोडशभिः | मातर्भारति ! तुभ्यं, समलंकुर्मो वयं भक्त्या ।।१०।। त्यार बाद नीचेनो मंत्र बोलवापूर्वक श्रीसरस्वतीदेवीनी प्रतिमाने षोडश आभरण चडाववां. ॐ मा श्री सरस्वत्यै षोडश आभरणानि परिधापयामि स्वाहा ।
ध्यानम् अर्हन्मुखकजवासिनि ! मोहविनाशिनि ! गुणौघलासिनि ! हे ! श्रीशारदे ! सदा त्वां, ध्यायाम्यज्ञाननाशार्थम् ।।११।। भानूदये तिमिरमेति यथा विनाशं,
क्ष्वेडं विनश्यति यथा गरुडागमेन । तद्वत् समस्तदुरितं चिरसंचितं मे,
देवि ! त्वदीयमुखदर्पणदर्शनेन ।।१२।। (अरिहंतपरमात्माना मुखरूपी कमलमां वसनारी, मोहनो नाश करनारी, गुणोना समूहथी प्रसन्न हे शारदा ! हे सरस्वती देवी ! अज्ञानना नाश माटे हमेशां हुं तारु ध्यान करूं छु. जेम सूर्यनो उदय थतां अंधकारनो नाश थाय छे तथा गरुडनु आगमन थतां सर्पनुं झेर दूर थइ जाय छे तेम हे सरस्वती देवी ! तारा मुखरूपी दर्पणनां दर्शन थतां ज मारा घणा कालनां एकत्र थयेलां सघलां पापकर्मो दूर थइ जाय छे.) अहीं दरेकनी पासे ऐं नमः मन्त्रनी एक माला गणाववी.
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श्री सरस्वतीमहापूजन
त्यारपछी सरस्वती देवीना बार नामवालुं अथवा सोल नामवालुं अथवा एकसो
आठ नामवालुं स्तोत्र बोल.
श्रीसरस्वतीद्वादशनामस्तोत्रम् मातरं भारतीं दृष्ट्वा, वीणापुस्तकधारिणीम् । हंसवाहनसंयुक्तां, प्रणमामि महेश्वरीम् ।।१।। प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती । तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थं हंसवाहिनी ।।२।। पञ्चमं विश्वविख्याता, षष्ठं वागीश्वरी तथा । कौमारी सप्तमं प्रोक्ता, अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।३।। नवमं बुद्धिदात्री च, दशमं वरदायिनी ।। एकादशं चन्द्रघण्टा, द्वादशं भुवनेश्वरी ।।४।। द्वादशैतानि नामानि, त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः । सर्वसिद्धिं प्रदेास्तु, प्रसन्ना परमेश्वरी ।।५।। जीवाग्रे वसति नित्यं, ब्रह्मरूपा सरस्वती । सरस्वति ! महाभागे ! वरदे कामरूपिणी ।।६।।
श्रीसरस्वतीस्तोत्रम् नमस्ते शारदादेवी, काश्मीरपुरवासिनी । त्वामहं प्राथये मातर्विद्यादानं प्रदेहि मे ।।१।। सरस्वती मया दृष्टा, देवी कमललोचना । हंसयानसमारूढा, वीणापुस्तकधारिणी ।।२।। सरस्वतीप्रसादेन, काव्यं कुर्वन्ति मानवाः । तस्मान्निश्चलभावेन, पूजनीया सरस्वती ।।३।। प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती । तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थं हंसवाहिनी ।।४।। पञ्चमं विदुषां माता, षष्ठं वागीश्वरी तथा । कौमारी सप्तमं प्रोक्ता, अष्टमं ब्रह्मचारिणी ।।५।। नवमं त्रिपुरादेवी, दशमं ब्रह्मणी तथा ।
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श्री सरस्वतीमहापूजन एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं ब्राह्मवादिनी ।।६।। वाणी त्रयोदशं नाम, भाषा चैव चतुर्दशम् । पञ्चदशं श्रुतदेवी, षोडशं गौरी निगद्यते ।।७।। एतानि शुद्धनामानि, प्रातरुत्थाय यः पठेत् । तस्य संतुष्यते देवी, शारदा वरदायिनी ।।८।। या देवी श्रूयते नित्यं, विबुधैः वेदपारगैः । सा मे भवतु जिह्वाग्रे, ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।९।। वस्तुपालमंत्रीकृत अष्टोत्तरशत (१०८)श्रीनामयुक्त
श्रीसरस्वतीस्तोत्र
अनुष्टुप् छंद धिषणा धीर्मतिर्मेधा, वाग् विभवा सरस्वती । गीर्वाणी भारती भाषा, ब्रह्माणी मागधप्रिया ।।१।। सर्वेश्वरी महागौरी, शङ्करी भक्तवत्सला । रौद्री चाण्डालिनी चण्डी, भैरवी वैष्णवी जया ।।२।। गायत्री च चतुर्बाहुः, कौमारी परमेश्वरी । देवमाताऽक्षया चैव, नित्या त्रिपुरभैरवी ।।३।। त्रैलोक्यस्वामिनी देवी, माङ्का कारुण्यसूत्रिणी । शूलिनी पद्मिनी रुद्री, लक्ष्मी पङ्कजवासिनी ।।४।। चामुण्डा खेचरी शान्ता, हुङ्कारा चन्द्रशेखरी । वाराहि विजयाऽन्तर्धा, की ही सुरेश्वरी ।।५।। चन्द्रानना जगद्धात्री, वीणाम्बुजकरद्वया । सुभगा सर्वगा स्वाहा, जम्भिनी स्तम्भिनी स्वरा ||६|| काली कापालिनी कौली, विज्ञा रात्री त्रिलोचना । पुस्तकव्यग्रहस्ता च, योगिन्यमितविक्रमा ।।७।। सर्वसिद्धिकरी सन्ध्या, खड्गिनी कामरूपिणी । सर्वसत्त्वहिता प्रज्ञा, शिवा शुक्ला मनोरमा ।।८।। माङ्गल्यरुचिराकारा, धन्या काननवासिनी । अज्ञाननाशिनी जैनी, अज्ञाननिशिभास्करी ।।९।।
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अज्ञानजनमाता त्व-मज्ञानोदधिशोषिणी ।
ज्ञानदा नर्मदा गङ्गा, सीता वागीश्वरी धृतिः ||१०||
ऐ कारा मस्तका प्रीतिः कारवदनाहुतिः । क्लींकारहृदयाशक्तिरष्टबीजानिराकृतिः ||११|| निरामया जगत्संस्था, निष्प्रपञ्चा चलाऽचला । निरुत्पन्ना समुत्पन्ना, अनन्ता गगनोपमा ।। १२ ।। पठत्यमूनि नामानि अष्टोत्तरशतानि यः ।
वत्सं धेनुरिवायाति, तस्मिन् देवी सरस्वती ||१३||
त्रिकालं च शुचिर्भूत्वा अष्टमासान् निरंतरम् । पृथिव्यां तस्य बंभ्रम्य तन्वन्ति कवयो यशः ।। १४ ।। द्रुहिणवदनपद्मे राजहंसीव शुभ्रा,
सकलकलुषवल्ली कन्दकुद्दालकल्पा ।
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अमरशतनताऽङ्घ्रिकामधेनुः कवीनां,
श्री सरस्वतीमहापूजन
दहतु कमलहस्ता भारती कल्मषं नः ।।१५।।
( परमात्मानी १०८ दीवानी आरति तथा मंगलदीवो उतारवो पछी सरस्वती मातानी आरति कपूरनी उतारवी.)
माता सरस्वतीनी आरति जय वागीश्वरी माता, जय जगजननी माता, पद्मासनी ! भवतारिणी ! (२) अनुपम रसदाता. जय. हंसवाहिनी जलविहारिणी ! अलिप्त कमलसमी,
मा ! अलिप्त कमलसमी
इन्द्रादि किन्नरने (२) सदा हृदे तुं गमी. जय......... तुजथी पंडित पाम्या, कंठ शुद्धि सहसा,
मा ! कंठ शुद्धि सहसा.
यशस्वी शिशुने करतां (२) सदा हसित मुखा. जय....... ज्ञान ध्यान दायिनी, शुद्ध ब्रह्मरूपा,
मा ! शुद्ध ब्रह्मरूपा.
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श्री सरस्वतीमहापूजन अगणितगुणदायिनी (२) विश्वे छो अनुपमा. जय....... उर्ध्वगामिनी मा ! तुं उर्चे लइ लेजे,
___ मा ! उर्चे लइ लेजे. जन्ममरणने टाली (२) आत्मिक सुख देजे. जय...... रत्नमयी ऐ रूपा, सदा य ब्रह्म प्रिया,
मा ! सद य ब्रह्म प्रिया. करकमले वीणाथी (२) शोभो ज्ञान प्रिया. जय....... दोषो सहुनां दहतां, अक्षय सुख अर्पो,
मा ! अक्षय सुख अर्पो. साधक इच्छित अी (२) शिशु उरने तर्पो. जय......
क्षमाप्रार्थना आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मन्त्रहीनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं कृपया देवि ! क्षमस्व परमेश्वरि ! ।।१।। आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वरि ! ।।२।।
विसर्जन नीचेनो मंत्र त्रणवार बोली विसर्जन करवं. ॐ नमोऽस्तु भगवति ! सरस्वति ! स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः ||
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