Book Title: Padmashree Dr KumarpalDesai
Author(s): Santosh Surana
Publisher: Anekant Bharti Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य तुलसी सम्मान से सम्मानित पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमस्कार महामंत्र आयरियाणं णमो को उवज्झायाणं ण पासणो मंगला लाणंच सव्वेसि । को सिद्धाणं णमो आ मत्व पावप्पणास जमो अरहताण णमोर एसो पंच णमुक्क पढुम हवई मंगलं मोलाए सव्व साहूणं. परस्परोपग्रहो जीवानाम् Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनदर्शन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभा मूल्यनिष्ठ पत्रकार एवं सत्वशील साहित्य-सर्जक पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई सम्पादक सन्तोषकुमार सुराणा अनेकान्त भारती प्रकाशन अहमदाबाद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनदर्शन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभा मूल्यनिष्ठ पत्रकार एवं सत्वशील साहित्य-सर्जक डॉ. कुमारपाल देसाई प्रथम संस्करण : 2017 प्रकाशक: अनेकान्त भारती प्रकाशन ई-2, चारुल फ्लैट्स, सहजानन्द कॉलेज के पास, आँबावाड़ी, अहमदाबाद-380015 मो. 9426087220 मुद्रक : . अवध प्रिन्टर्स, सी-74, साईंधाम टेनामेंट, वस्त्राल रोड, अहमदाबाद-382418 मो. 7048173612 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनदर्शन की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभा मूल्यनिष्ठ पत्रकार एवं सत्वशील साहित्य-सर्जक डॉ. कुमारपाल देसाई प्रेरक, मूल्यनिष्ठ और आध्यात्मिक साहित्य-सर्जक, चिन्तक और विचारक के रूप में श्री कुमारपाल देसाई का व्यक्तित्व मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक अभीप्साओं की सुगन्ध चहुँ ओर फैलाता जा रहा है। ऐसे व्यक्तित्व के धनी कुमारपाल देसाई का जन्म राणपुर में 30 अगस्त 1942 के दिन हुआ था। इनका मूल वतन सायला है। आपकी माता का नाम जयाबहन और पिता का नाम बालाभाई देसाई है। आपके पिता का उपनाम 'जयभिक्खु' था। 'जयभिक्खु' गुजराती साहित्य के लोकप्रिय लेखक रहे हैं। आपने लगभग 250 पुस्तकें लिखी हैं। आपके जीवन-निर्माण में माता-पिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा । साहित्य-सर्जन की सफलता में आपके पिता का विशिष्ट योगदान रहा, तो दूसरी ओर व्यक्तित्व-विकास में आपकी माता का अमूल्य योगदान रहा । जयाबहन आदर्श भारतीय नारी थीं । मातुश्री की सन् 1930 के असहयोग आन्दोलन की सहभागिता को भुलाया नहीं जा सकता। इकलौते पुत्र कुमारपाल ने बाल्यावस्था में गाँधी जी के विषय में अनेक कविताएँ माँ से सुनी एवं आपको हृदयंगम हो गईं। आपने अपने मुख्य विषय गुजराती के साथ अहमदाबाद से सन् 1963 में बी.ए., सन् 1965 में एम.ए. किया और गुजराती के अध्यापक बने । सन् 1983 में गुजरात विश्वविद्यालय के भाषा साहित्य भवन में गुजराती विभाग के व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुए । उससे पूर्व सन् 1980 में पद्मभूषण डॉ. धीरूभाई ठाकर के मार्गदर्शन में 'आनंदघन : एक अध्ययन' विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखकर आपने गुजरात (3) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्वविद्यालय से पीएच.डी की पदवी प्राप्त की। आपने पीएच.डी. के महानिबन्ध द्वारा आनंदघन के व्यक्तित्व और कृतित्व का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया। सन् 1988 में आप रीडर बने और सन् 2000 में प्रोफेसर । नवम्बर 2001 में आप गुजराती विभाग के अध्यक्ष बने। 2003 के जनवरी में भाषा साहित्य भवन के अध्यक्ष और गुजरात विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी के डीन के रूप में भी सेवाएँ दीं। गुजरात सरकार द्वारा प्रायोजित अहिंसा यूनिवर्सिटी के एक्ट एवं प्रोजेक्ट समिति के चेयरमैन के रूप में भी आपने मूल्यवान सेवाएं प्रदान की । इसके साथ-साथ मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट, लाडनूं के प्रोफेसर एमेरिट्स तथा गूजरात विद्यापीठ के एडजन्कट प्रोफेसर के रूप में प्रत्यक्ष शिक्षण कार्य के साथ आप सक्रिय रूप से जुड़े रहे। महान चिन्तक, लेखक और साहित्यकार 'जयभिक्खु' के पुत्र कुमारपाल देसाई ने छोटी उम्र से ही साहित्य- सर्जन का कार्य प्रारम्भ कर दिया था । ग्यारह वर्ष की आयु में आपने 'झगमग' नामक बाल सामयिक में देश के लिए जीवन का बलिदान देने वाले एक क्रान्तिकारी की काल्पनिक कथा से लेखन कार्य का श्रीगणेश किया। बचपन से ही आपमें त्याग एवं शौर्य की गाथाओं के प्रति आकर्षण था क्योंकि आपका जन्म स्थान वीरों की भूमि सौराष्ट्र है और 'कुरबानी की कथा' के रचयिता झवेरचंद मेघाणी, सागर-कथाओं के सर्जक गुणवंतराय आचार्य, प्रसिद्ध कहानीकार धूमकेतु, पद्मश्री कवि दुला काग जैसे समर्थ साहित्यकारों का सान्निध्य आपने शैशवकाल से प्राप्त कर लिया था। पिता की भाति ही जोश एवं स्वाभिमान कुमारपाल में भी संक्रान्त हुए । आपका प्रथम लेख पिताश्री के प्रभाव के कारण न छपे अतः आपने अपना प्रथम लेख कु. बा. देसाई के नाम से लिखा और वह अद्भुत सफल रहा। कुमारपाल देसाई अनेक विषयों के रसिक एवं धनी हैं। लेखन प्रवृत्ति के साथ-साथ प्रारम्भ से ही आप 'खेल सामयिक' के रूप में नई दिशा (4) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तुत की। आपकी प्रथम पुस्तक 'वतन, तारा रतन' कॉलेज के अभ्यासकाल के दौरान ही प्रकाशित हुई थी । इसी प्रकार अखबारों में लिखने का शुभारम्भ तो आपने कॉलेज की युवावस्था से ही शुरू कर दिया था । सन् 1962 से आपने 'गुजरात समाचार' में स्थायी स्तम्भ एवं सन् 1965 से ग्रंथ लेखन का प्रारम्भ किया था। सन् 1965 में एम.ए. के द्वितीय वर्ष के दौरान आपने लालबहादुर शास्त्री का जीवन-चरित्र 'लाल गुलाब' शीर्षक से लिखकर बाल साहित्य जगत में तहलका मचा दिया । लाल गुलाब की 60 हजार प्रतियों की बिक्री हुई और समग्र गुजरात में शिष्टवाचनपरीक्षा के लिए यह पुस्तक के रूप में चयनित हुई । गुजरात सरकार की उच्च स्तरीय बाल साहित्य की स्पर्धा में इस पुस्तक को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। 11 जनवरी, 1966 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का आकस्मिक निधन हो गया । कुमारपाल द्वारा लिखित शास्त्री जी के जीवन-दर्शन का लगभग तीन सौ पृष्ठ का 'महामानव शास्त्री' नामक विस्तृत आलेख प्रकाशित हुआ। 20 अप्रैल, 1966 सन् में अहमदाबाद के एच. के. कॉलेज हॉल में गुजरात की प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्था 'गुर्जर ग्रंथरत्न कार्यालय' ने प्रसिद्ध साहित्य - सर्जक 'धूमकेतु' के निधन के पश्चात् उनका अपूर्ण उपन्यास ‘ध्रुवदेवी' तथा नवोदित लेखक के रूप में आपकी पुस्तक 'महामानव शास्त्री' का भव्य प्रकाशन समारोह एक साथ ही आयोजित किया । 'लाल गुलाब' की सफलता के पश्चात् कुमारपाल देसाई ने बाल साहित्य सर्जन में सक्रियता दिखाई । स्वरचित पुस्तकों की संख्या में वृद्धि करना ही आपका एकमात्र लक्ष्य नहीं है, बल्कि प्रत्येक पुस्तक में एक विशिष्ट दृष्टिकोण रखते हुए आप लिखते हैं । बादशाह अकबर और बीरबल की चतुराई को सुनने वाले गुजरात को चतुर तथा विलक्षण गुजराती का परिचय कराना चाहिए, इस दृष्टिकोण से 'डाह्यो डमरो' जैसी कहावत (5) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के परिप्रेक्ष्य में दामोदर मेहता की कथा तथा चतुराई की बात का आलेखन किया। इसी प्रकार कच्छ की वीरता प्रदर्शित करती 'केडे कटारी, खभे ढाल' कोमी एकता विषयक 'बिरादरी', छोटे व्यक्तियों के साहस को प्रदर्शित करती 'हैयुं ना, हिंमत मोटी', 'नानी उमर, मोटुं काम', 'झबक दीवडी', 'मोतने हाथताली' जैसी अनेक पुस्तकें आपने लिखीं । चरित्र लेखन से प्रारम्भ करने वाले कुमारपाल देसाई ने 'वीर राममूर्ति', 'सी. के. नायडू', 'बालकोना बुद्धिसागर जी', 'भगवान ऋषभदेव', 'फिराक गोरखपुरी', 'भगवान मल्लीनाथ', 'आत्मज्ञानी श्रमण कहावे', 'भगवान महावीर', 'अंगूठे अमृत वसे', 'श्री महावीर जीवन दर्शन', 'मानवतानी महेक' (प्रेमचंद व्रजपाल शाह का जीवन-चरित्र), 'आफ्तोनी आधी वच्चे समृद्धिनुं शिखर' आदि अनेक गुजराती चरित्र-लेखन आपने लिखे हैं। इन चरित्र लेखों में आपने मुख्य रूप से चरित्र-नायकों के जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों को रसप्रद लेखन शैली से पात्रों की जीवन्त छवि प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। परिणामस्वरूप ये चरित्र रसपूर्ण एवं सुवाच्य बन गए। कुमारपाल ने अपने पिता जयभिक्खु की जीवनी लिखी। जिसने गुजराती साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान बनाया। इस जीवन चरित्र पर आधारित नाटक 'अक्षरदीपने अजवाले चाल्यो एकलवीर' का निर्माण हुआ है। जिसकी गुजरात एवं मुंबई में प्रस्तुति हुई और नाट्य-समीक्षकों एवं सर्जकों द्वारा इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की गई तथा यह नाटक लोकप्रिय बना। बाल-साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट और सत्वशील अर्पण करने के बाद आपने प्रौढ़ साहित्य क्षेत्र की दिशा में भी कलम चलाई है। वास्तव में बाल-साहित्य के साथ-साथ आपका प्रौढ़ साहित्य-सर्जन, विवेचन, संशोधन भी खूब लोकप्रिय रहा। चारित्रिक साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त हो, ऐसी एक प्रेरक पुस्तक 'अपंगना ओजस' आपकी विशिष्ट कृति है। यह एक विशिष्ट घटना है कि इस पुस्तक का हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद आपने स्वयं किया है। यह पुस्तक ब्रेल लिपि में 'अपाहिज तन, अडिग मन' और (6) Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग्रेजी में 'The Brave Heart' शीर्षक से अनूदित हुई और प्रकाशित हुई । इस पुस्तक की भूमिका गुजरात के समर्थ पू. मोटा तथा प्रसिद्ध क्रिकेटर विजय मर्चन्ट ने लिखी। ___ 'अपाहिज तन, अडिग मन' पुस्तक इलेक्ट्रोनिक मीडिया से बच नहीं सकी और इसका ध्वनि मुद्रण ऑडियो सी.डी. में रूपान्तरण अत्यन्त लोकप्रिय बना। विशेष रूप से प्रज्ञाचक्षुओं के लिए यह एक नई पहल के रूप में सराही गई। सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कहानी लेखक जयभिक्खु' के सुपुत्र कुमारपाल देसाई ने अनेक कथा-संग्रह समाज को समर्पित किए हैं। इन कथा-संग्रहों में 'एकान्ते कोलाहल' ग्रंथ की लोकप्रियता को शब्दों की सीमा में बाँधा नहीं जा सकता। रचनाधर्मी व्यक्तित्व की विशेषता आपकी सृजनशीलता है। आपके ही शब्दों में-"सम्पूर्ण आकाश को अपनी आँखों में समा लेने की क्षमता रही थी। मन में एक ही भावना समाहित थी कि उस आकाश की गहराई और विस्तार को जान सकूँ...माप सकूँ।" . ऐसे बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी जिनका साहित्य से जन्मजात सम्बन्ध रहा है। वर्तमान काल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राजनीति का प्रवेश हो चुका है। समाज, साहित्यकार सभी संकुचित दायरों में बँट गए हैं, ऐसे समय में भी कुमारपाल इन सबसे परे और सबके होकर कमलवत् रह सके, यह आपके व्यक्तित्व की विशेषता है। प्रायः सभी अधिकतर विभागों में निर्विरोध चयन होना आपका अजातशत्रु होने का परिचायक है। ___कुमारपाल देसाई भारतीय संस्कृति, जैनदर्शन और जैन साहित्य के मर्मज्ञ हैं। प्रकृति-प्रिय इस चिन्तनशील लेखक ने चिन्तन लेखों के अनेक संग्रह समाज को समर्पित किया है। 'झाकल भीनां मोती' के तीन अंश 'मोतीनी खेती', 'मानवतानी महेक', 'तृषा अने तृप्ति', 'क्षमापना', 'श्रद्धांजलि', 'जीवन- अमृत', 'दुःखनी पानखरमां वसंतनो एक टहुको', (7) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'झाकळ बन्युं मोती' आदि संग्रहों में निहित-संग्रहित लेख कुमारपाल की निबन्धकार की प्रतिभा को स्वतः स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं। इन संग्रहों में से कुछ संग्रहित लेख प्रवचन रूप लिखे गए हैं। जैन धर्म, जैनदर्शन एवं जैन संस्थाओं में डॉ. कुमारपाल देसाई ने विशिष्ट प्रतिष्ठा और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त किया है। जैन धर्म के बारें में दैनिक पत्रों के स्थायी स्तम्भ और शताधिक पुस्तकों द्वारा आपने अपनी मौलिक एवं सात्विक विचारधारा प्रकट की है जो जन-जन की हृदयस्पर्शी बनी है। जैन धर्म विषयक आपकी पुस्तकों में भगवान ऋषभदेव, भगवान मल्लीनाथ और भगवान महावीर का चरित्र-चित्रण देखा जा सकता है। साथ ही कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य की साहित्य - साधना एवं श्री महावीर जीवन-दर्शन जैसे विशिष्ट ग्रंथ भी पाए जाते हैं । महायोगी आनंदघन के बारे में आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। आपकी पुस्तक 'Stories from Jainism' यूरोप की स्कूलों में धर्मविषयक पाठ्यपुस्तक के रूप में समाहित है। गुजराती के समर्थ लेखक कुमारपाल देसाई ने हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में भी लेखन कार्य किया है। हिन्दी में आपने 'जिनशासन की कीर्तिगाथा', 'आनंदघन', 'त्रैलोक्य दीपक राणकपुर तीर्थ' जैसे विशेष ग्रंथ प्रस्तुत किए हैं। अंग्रेजी में तो आपने अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ‘Glory of Jainism', 'Stories from Jainism', 'Essence of Jainism', ‘Non-violence :A way of life' (Bhagwan Mahavir), 'APinnacle of Spirituality', 'The Timeless Message of Bhagwan Mahavir', ‘Vegetarianism’ विशेष हैं। आपकी हिन्दी और अंग्रेजी में रचित पुस्तकें विशेषत: जैन धर्म एवं उससे सम्बन्धित विषयों तक मर्यादित नहीं हैं, किन्तु इन ग्रंथों में आपने जैन धर्म के सिद्धान्त तथा जैन धर्म के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है। वर्तमान में भगवान महावीर के बारे में एन्साइक्लोपीडिया कहे जाने वाले ग्रंथ 'तीर्थंकर महावीर' की रचना की है। सन् 1984 के ब्रिटेन प्रवास के बाद आप प्रतिवर्ष व्याख्यान देने के (8) Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिए विश्व के अनेक क्षेत्रों में विदेश प्रवास करते रहे हैं। अमेरिका, इंग्लैण्ड, केनेडा, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, बेल्जियम, इण्डोनेशिया जैसे देशों में पर्युषण के निमित्त आपने कई वक्तव्य देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है । सन् 1983 में पिट्सबर्ग में आयोजित 'जैना' के अधिवेशन में Jainism : Past, Present and Future' विषय पर आपकी प्रस्तुति आज भी श्रोताओं केहृदयपटल पर अंकित है। वेटिकन में 'Pontificial Council for Inter Religious Dialogue' में 'Historical and Cultural Impect ofAhimsa and Jainism' पर व्याख्यान तथा न्यूयार्क केयुनाइटेड नेशन्स केचेपल में AJourney ofAhimsa : fromBhagwanMahavir to Mahatma Gandhi' के विषय में दिए जाने वाले प्रवचनों के उपरान्त अन्य सेमीनार, परिसंवाद अद्भुत प्रशंसनीय रहे हैं। आप सन् 1990 में बर्किंगहाम पैलेस में ड्यूक ऑफएडनबरो प्रिन्स फिलिप को 'जैन डेक्लेरेशन ऑन नेचर' अर्पित करने गए जिसमें विश्व के पाँच खण्डों के जैन प्रतिनिधि सम्मिलित थे। सन् 1993 में शिकागो एवं सन् 1999 में दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन शहर में आयोजित 'पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलिजियस' एवं सन् 1994 में पोप जॉन पोल (द्वितीय) की मुलाकात लेने वाले प्रतिनिधि मण्डल में आपने धर्मदर्शन के बारे में सक्रियतापूर्वक चर्चा की। इंस्टीट्यूट. ऑफ जैनोलॉजी' नामक विश्वव्यापी संस्था के आप भारत के ट्रस्टी हैं। गुजरात सरकार द्वारा भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक उत्सव के महान अवसर पर अहिंसा युनिवर्सिटी की स्थापना करने का निश्चय किया गया और उसके 'एक्ट एण्ड प्रोजेक्ट कमेटी' के चेयरमैन की जिम्मेदारी आपको सौंपी गई । जैन धर्म का यह विद्वान मात्र जैनत्व की सीमाओं में नहीं रहा, उसे सभी धर्मों एवं संस्कृति से जो भी उत्तम मिला, उसका सरलता से स्वीकार किया। यही कारण है कि आप सभी धर्मप्रेमियों में लोकप्रिय हुए। जैन धर्म की गहन ज्ञान सम्पदा एवं परिभाषा को कथा स्वरूप में (9) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयानुकूल सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत कर जैन धर्म के सिद्धान्तों को लोकभोग्य बनाने में आप द्वारा किए गए कथाप्रयोग ने न केवल जैन धर्मियों में अपितु सामान्य जनसमूह में भी अप्रत्याशित लोकप्रियता प्राप्त की है। विविध विषयों पर आपके द्वारा प्रस्तुत की गई जैन धर्म की कथाएँ न केवल अहमदाबाद, धरमपुर और कच्छ तक सीमित रहीं बल्कि लन्दन (यू.के.) और लॉस एन्जल्स तक पहुँचकर दशों दिशाओं में एक नया इतिहास रचा है। युगदिवाकर राष्ट्रसन्त पू. गुरुदेव श्री नम्रमुनि महाराज की पावन निश्रा में जैन धर्म का सर्वप्रथम विश्वकोश सम्पन्न होने जा रहा है। आठ भागों में प्रकाशित होने वाले विश्व के जैन धर्मप्रेमियों के लिए अभूतपूर्व धर्मज्ञान की सम्पदा बनने वाले इस विश्वकोश के सम्पादन में आपने श्री गुणवंतभाई बरवालिया के साथ मिलकर जैनधर्मी और समूचे समाज की अतीत, वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों का ज्ञानमार्ग प्रशस्त किया है। गुजराती भाषा-साहित्य के साक्षर एवं अध्यापक कुमारपाल देसाई ने पीएच.डी. के संशोधन हेतु मध्यकाल के मार्मिक सन्तकवि आनंदघन के जीवन एवं कथन के बारे में गहराई से अध्ययन कर, आनंदघन के पद एवं स्तवनों की हस्तलिपियों का संशोधन कर उनका कवित्व रचा है। आपने गुजरात के विभिन्न हस्तलिखित भण्डारों में से 300 से अधिक हस्तलिपियों का अध्ययन कर उनका शास्त्रीय सम्पादन किया है। पं. बेचरदास दोशी, डॉ. भोगीलाल सांडेसरा एवं पं. दलसुखभाई मालवणिया जैसे प्रखर विद्वानों ने आपके संशोधन कार्य की प्रशंसा की है। मध्यकालीन साहित्य के संशोधन क्षेत्र में डॉ. कुमारपाल देसाई ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। आपने संशोधन द्वारा 'अप्रगट मध्यकालीन कृतिओ', 'ज्ञानविमलसूरिकृत स्तबक' और मेरुसुंदर उपाध्याय रचित 'अजितशांतिस्तवननो बालबोध' जैसे विशेष ग्रंथ प्रकाशित किए हैं। 'गत सैकानी जैन धर्मनी प्रवृत्तिओ', 'अब हम अमर भये' एवं 'अबोलनी आत्मवाणी' आपकी गवेषणामूलक (10) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तकें हैं। आप अनेक संशोधन कार्यों से पुरस्कृत हुए हैं। राजस्थान के लोक संस्कृति शोध संस्थान की ओर से आनंदघनविषयक उत्कृष्ट संशोधन के लिए आपको 'हनुमानप्रसाद पोद्दार पारितोषक' से अलंकृत किया गया है। गुजरात विश्वविद्यालय की विनयन विद्याशाखा में सन् 1975 एवं सन् 1980 में संशोधन हेतु उत्कृष्ट कार्य करने हेतु डॉ. के. जी. नायक सुवर्णचंद्रक आपको ही प्रदान किया गया है। सन् 1985 में पुनः संशोधन विषयक उत्कृष्ट कार्य के लिए आपको यह चंद्रक प्राप्त हुआ। आपको गुजरात की सर्वप्रथम साहित्यिक संस्था गुजरात साहित्य सभा की ओर से श्री 'धनजी कानजी गाँधी सुवर्णचंद्रक' (2001) और रणजितराम सुवर्णचंद्रक (2015) से सम्मानित किया गया है। 2004 में राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के वरद हस्तों से डॉ. कुमारपाल देसाई पद्मश्री सम्मानित से सम्मानित हुए। __डॉ. कुमारपाल देसाई सर्जक होने के साथ-साथ विवेचक भी हैं। 'हेमचंद्राचार्यनी साहित्यसाधना', 'शब्दनिधि', 'भावन-विभावन' आदि आपकी विवेचनात्मक पुस्तकें हैं । मुख्यतः मध्यकालीन साहित्य के अध्ययनशील कुमारपाल अर्वाचीन साहित्य के मर्मज्ञ भी हैं। इसकी प्रतीति अर्वाचीन कृतिविषयक आपके विवेचनात्मकलेख करवाते हैं। मध्यकाल के गिने-चुने अध्ययनशील साहित्यकारों में आपकी गणना की जा सकती है। कुमारपाल दीर्घदृष्टा सम्पादक भी हैं । आपने अनेक सम्पादन कार्य भी किए हैं जिनमें से महत्वपूर्ण हैं : 'जयभिक्खु स्मृतिग्रंथ', 'शब्दश्री', 'कवि दुला काग स्मृतिग्रंथ', 'हेमस्तुति', 'जयभिक्खुनी जैन धर्मकथाओ' भाग 1-2, 'नर्मद : आजना संदर्भमां', 'श्री महावीर जैन विद्यालय शताब्दी ग्रंथ' (भाग 1-2), 'नवलिका अंक', (गुजरात टाइम्स), 'सामयिक सूत्र' (अर्थ के साथ), 'शंखेश्वर महातीर्थ', 'यशोभारती', 'धन्य छे धर्म तने', 'ओजस दीठां आत्मबलनां', 'रत्नत्रयीनां अजवाळां' (आचार्य विजयवल्लभसूरि के प्रवचनों का सम्पादन), 'आत्मवल्लभ स्मरणिका' (गुजराती विभाग- सम्पादन), 'बालसाहित्य संगोष्ठी', 'परिवर्तन- प्रभात', (11) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (गुजरात टाइम्स), 'इकवीसमी सदीनुं विश्व' (गुजरात टाइम्स), एकवीसमी सदी, बालसाहित्य', 'अदावत विनानी अदालत' (चं.ची. महेता के रूपकों का सम्पादन), 'एक दिवसनी महाराणी' (डेमोन रनियन की कहानियों का चं.ची. महेता द्वारा किया गया अनुवाद)। आप द्वारा सम्पादित पुस्तकों का व्याप देखा जाय तो सहज ही आपका रसक्षेत्र कितना विशाल है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। प्रत्येक सम्पादन में आपकी सूझ-बूझ, दूरदृष्टि एवं बारीकी दृष्टव्य है। ___ कुमारपाल देसाई ने आफ्रिकन लेखक ऑस्टिन बुकेन्या की कम लोकप्रियता वाली परन्तु साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान नाट्यकृति का अनुवाद गुजराती भाषा में 'नववधू' के नाम से किया है। प्रस्तावना में लिखे लेख द्वारा आपने लेखक और उसकी कृति का साहित्यिक परिचय करवाते हुए कृति का रसास्वादन कराया है। मूल सर्जक से सहवास कर आपने साम्प्रत आफ्रिकन नाटक की पश्चाद्भूमि को भी प्रस्तुत किया है। ___ ई. सन् 1969 में पिताश्री जयभिक्खु का निधन हुआ। उस समय कुमारपाल की आयु 27 वर्ष थी। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। उस समय जयभिक्खु गुजरात समाचार में 'ईंट अने इमारत' स्थायी स्तम्भ लिख रहे थे। उन्होंने इस स्थायी स्तम्भ की शुरुआत सन् 1958 से की और वह अत्यन्त लोकप्रिय हुई। अखबार के सम्पादक ने आपसे भेंट कर पिता द्वारा लिखे जा रहे स्थायी स्तम्भ को लिखते रहने का विशेष आग्रह किया। आपकी हिचकिचाहट सहज थी, परन्तु सम्पादक के विशेष आग्रह पर निःसंकोच अपनी स्वीकृति दे दी। प्रारम्भ के चार-पाच स्तम्भ बिना नाम के ही छपे। उन लेखों को अद्भुत प्रतिसाद मिला। तत्पश्चात् ही आपने अपना नाम प्रकट किया। तब से लेकर आज तक अखण्ड दीप की भाँति यह स्तम्भ नियमित लिख रहे हैं। पिता-पुत्र द्वारा अर्ध सदी से भी अधिक समय (60 वर्ष) तक नियमित रूप से कोई स्थायी.स्तम्भ लिखा गया हो, ऐसा गुजराती पत्रकारत्व क्षेत्र में कोई उदाहरण परिलक्षित नहीं (12) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है । गुजरात समाचार में आप के द्वारा उपर्युक्त कॉलम के साथ-साथ 'आकाशनी ओळख', 'झाकळ बन्युं मोती', 'पारिजातनो परिसंवाद' जैसे अनेक स्थायी स्तम्भ नियमित रूप से लिखे जा रहे हैं। गुजरात यूनिवर्सिटी के पत्रकारत्व विभाग में अध्यापन द्वारा आप वर्षों से अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं। गुजरात की अनेक यूनिवर्सिटियों में भी आप पत्रकारत्व के पाठ्यक्रम के साथ जुड़े हुए हैं। 'अखबारी लेखन' के बारे में आपने 'साहित्य अने पत्रकारत्व' पुस्तक का सम्पादन भी किया है। आपको पत्रकारत्व के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा के लिए नवचेतन मासिक द्वारा 'नवचेतन रौप्यचंद्रक', पत्रकारत्व में विशिष्ट प्रदान के लिए 'श्री यज्ञेश ह. शुक्ल पारितोषिक', खेल-जगत के लिए पत्रकारत्व में महत्वपूर्ण योगदान के लिए नानुभाई सुरती फाउण्डेशन द्वारा ‘संस्कृति गौरव पुरस्कार', गुजरात दैनिक अखबार संघ द्वारा पत्रकारत्व में सत्वशील लेखन के लिए 'हरिॐ आश्रम एवॉर्ड' तथा शिष्ट, सात्विक एवं मूल्यलक्षी लेखन के लिए श्रीमद् राजचंद्र आध्यात्मिक साधना केन्द्र की ओर से 'संस्कृति संवर्धन सम्मान' प्रदान किए गए हैं। ई. सन् 1984 से प्रतिवर्ष विदेशों में आयोजित व्याख्यानों की लोकप्रियता को नकारा नहीं जा सकता । इस क्षेत्र में आपकी प्रवृत्ति के अभिवादन स्वरूप इंग्लैण्ड की 14 भारतीय संस्थाओं ने मिलकर आपको 'हेमचंद्राचार्य एवॉर्ड' से सम्मानित किया था । तदुपरान्त आपके कैलोफोर्निया के जैन केन्द्र द्वारा ‘गौरव पुरस्कार', 'जैन ज्योतिर्धर एवॉर्ड', 'गुजरात रत्न एवॉर्ड' तथा सन् 1980 में जूनियर चैम्बर की तरफ से 'टेन आउटस्टैडिंग यंग पर्सनालिटी ऑफ इंडिया' पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अमेरिका तथा केनेडा के सभी केन्द्रों को समाहित करने वाले फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (जैना) द्वारा अमेरिका को छोड़कर अन्य देशों में जैन साहित्य में संशोधन एवं दर्शन के लिए महत्वपूर्ण कार्य करने वाले व्यक्तियों को दिया जाने वाला 'प्रेसीडेंट स्पेशल एवॉर्ड', (13) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केनेडा के टोरण्टो में सन् 1997 में जुलाई मास में आयोजित द्विवार्षिक अधिवेशन में कुमारपाल को प्रदान किया गया । मूल्यनिष्ठ साहित्य-सर्जन के लिए दिल्ली की अहिंसा इण्टरनेशनल संस्था ने 'दीप्तिमल आदीश्वरलाल लिटररी एवॉर्ड' तथा दिवालीबहन मोहनलाल मेहता ट्रस्ट ने विशिष्ट सम्मान प्रदान किए हैं । सन् 2001 में भगवान महावीर की सन् 2600 वीं जन्मकल्याणक समिति की ओर से जैनदर्शन और जैन कला-साहित्य प्रसार के लिए उत्तम योगदान देने वाले 26 व्यक्तियों को प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों दिए जाने वाले 'जैनरत्न' एवॉर्ड के लिए आपका चयन हुआ । समग्र जैन समाज की 112 वर्ष पुरानी अखिल भारतीय संस्था भारत जैन महामण्डल ने जैन समाज में यशस्वी प्रदान करने वाले और प्रेरणादायी तथा पथ-प्रदर्शक व्यक्तित्व के रूप में जैनत्व को गौरवान्वित करने वाले आप जैसे सम्मानित प्रतिभा को सर्वोत्कृष्ट अलंकरण प्रदान किया गया है। चैतन्य काश्यप फाउण्डेशन के सौजन्य से आचार्य महाप्रज्ञ जी की पावन उपस्थिति में भारत जैन महामण्डल द्वारा प्रदान किए जाने वाले इस सर्वप्रथम एवॉर्ड के लिए साहित्य, शिक्षण, पत्रकारत्व, धर्मदर्शन और समाज सेवा के बहुविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले डॉ. कुमारपाल देसाई का चयन किया गया। 23 मार्च, 2003 के दिन भव्य समारोह के अन्तर्गत जैन समाज का यह सर्वोत्कृष्ट अलंकरण मुंबई में प्रदान किया गया। पिछले 35 वर्षों से जैनदर्शन के प्रसार कार्य को इस आराधक ने प्रवचन, पत्रकारत्व, साहित्यसर्जन और धार्मिक प्रवृत्तियों से सभी क्षेत्रों में एक विशिष्ट प्रतिभा द्वारा नया प्रारूप प्रस्तुत किया है। खेल क्षेत्र में भी कुमारपाल देसाई कुशल समीक्षक रहे हैं। गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी एवं मराठी में प्रकाशित 'भारतीय क्रिकेट' एवं 'क्रिकेटना विश्वविक्रमो' तथा 'क्रिकेट रमतां शीखो' भाग 1-2 की लाखों प्रतियाँ छपी एवं खेल प्रेमियों ने खरीदीं। कई सालों तक 'रमतनुं मेदान' और (14) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्लेग्राउंड' नामक स्थायी स्तम्भ लिखते रहे हैं। ___ इंग्लैण्ड की प्रसिद्ध 'क्रिकेटर मैगजिन क्लब' की मानद् सदस्यता आपको प्राप्त हुई है। आपकी पुस्तक 'ध क्रिकेटर इंटरनेशनल सामयिक द्वारा आयोजित ज्युबिली लिटररी एवॉर्ड स्पर्धा में भी स्थान प्राप्त हुआ। सन् 1992 से अखबार, रेडियो एवं टेलीविजन पर आपकी प्रमाणभूत खेल समीक्षा ने काफी लोकप्रियता प्राप्त की। आपने विविध क्लबों और संस्थाओं में खेल-जगत के बारे में शताधिक वक्तव्य दिए। ___ डॉ. कुमारपाल देसाई के मार्गदर्शन में 20 विद्यार्थियों ने पीएच.डी. की पदवी प्राप्त की है, आप साहित्य, पत्रकारत्व और जैनदर्शन में पीएच.डी. के मार्गदर्शक के रूप में मान्यता प्राप्त अध्यापक हैं। आपके मार्गदर्शन में सिंगापुर की 50 वर्ष की परम्परा का निर्वाह करने वाली गुजराती स्कूल में गुजराती भाषा रखने के प्रयत्नों में सक्रिय सहयोग दिया है एवं ब्रिटेन की गुजराती साहित्य अकादमी और अमेरिका की गुजराती लिटररी एकेडमी की ओर से अनेक वक्तव्य भी हुए। कर्मवीर कुमारपाल साहित्य, संस्कृति और शिक्षण संस्थाओं के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। गुजरात साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष तथा गुजराती साहित्य परिषद में पूर्व मंत्री एवं अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्तमान में संस्था के कार्यवाहक सदस्य हैं। श्री यशोविजय जैन ग्रंथमाला में मंत्री के रूप में कार्यरत कुमारपाल देसाई पिछले तीस वर्षों से श्री जयभिक्खु साहित्य ट्रस्ट की अनेकविध प्रवृत्तियाँ कर रहे हैं। प्रा. अनंतराय रावल स्मारक समिति एवं चंद्रवदन महेता स्मारक समिति के आप प्रमुख हैं। गुजरात की अस्मिता का महापुरुषार्थ-स्वरूप गुजराती विश्वकोश के प्रारम्भ से ही वे गुजरात विश्वकोश ट्रस्ट के ट्रस्टी के रूप में सेवारत हैं। श्री महावीर मानव कल्याण केन्द्र, अनुकंपा ट्रस्ट, इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी (बोटाद शाखा), सुलभ हेल्थ एण्ड हार्ट केयर सेन्टर आदि संस्थाओं द्वारा आप आपत्तिग्रस्त पीड़ित व्यक्तियों को सहायता भी पहुँचाते (15) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं। साहित्य के साथ सेवा-सुश्रुषा में भी आप कभी पीछे नहीं हटते । सन् 2001 के 26 जनवरी के दिन गुजरात में आए भीषण भूकम्प के समय आपने भूकम्प पीड़ितों के लिए आर्थिक सहायता निधि विदेशों से प्राप्त कर अद्भुत सेवा की थी। जन्मघुट्टी से ही साहित्य, संस्कृति और सेवा का संस्कार प्राप्त करने वाले कुमारपाल देसाई के कार्यक्षेत्र का व्याप विशाल एवं वैविध्यसभर है। कुमारपाल लेखक पिता, वात्सल्यमयी माँ और प्रेमभाव से युक्त पत्नी की नींव की ईंट पर ही प्रतिष्ठा व साहित्य-सृजन की ‘इमारत' का निर्माण होना अपने आपमें गरिमामय इतिहास है। आचार्य महाप्रज्ञ के ध्यान-योग के शताधिक ग्रंथ प्रकाशित करती संस्था अनेकान्त भारती प्रकाशन के आप मार्गदर्शक हैं। अध्ययन-अध्यापन आदि अनेकविध प्रवृत्तियों में लीन रहने के बावजूद भी कुमारपाल नौजवानों की तरह उत्साह से नित नई योजनाएं बनाने तथा उनको साकार करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आपसे जब पूछा गया कि, "दिन के तो चौबीस घण्टे ही हैं, तो उसमें नींद एवं आराम के कितने घण्टे?" "नींद तो पूरी करनी ही चाहिए, जागरण करना कभी नहीं सीखा। हाँ...दिन की शुरुआत हो जाय तब उसके बाद निरन्तर काम चलता रहता है।" हँसते-हँसते आप कहा करते हैं। "पुनः जन्म लेना पड़े, तब आप क्या बनना पसन्द करेंगे?" ऐसे प्रश्न के उत्तर में आपने कहा, "समाज के लिए उपयोगी ऐसा आध्यात्मिक जीवन जी सकूँ, वैसी मानव देह फिर मिले ऐसी मेरी ईश्वर से प्रार्थना है।" अनेक एवॉर्ड, चन्द्रक, पुरस्कार से सम्मानित होने के बावजूद भी कुमारपाल देसाई को अभिमान अंश मात्र भी नहीं है। चेहरे पर हमेशा स्नेहिल स्मित एवं छोटे से छोटे व्यक्ति के साथ भी प्रेमपूर्वक ऊष्मापूर्ण व्यवहार आपको विशिष्ट मानव की श्रेणी में प्रस्तुत करता है। * * * (16) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य तल लसी-महाप्रज्ञ विचा विचार मंच 'आचार्य तुलसी सम्मान' आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आदर्शों के अनुरूप जिस सर्वांगीण विकास को प्रस्तुति दी उसके श्रेयोभागी को सम्मानित करना हमारा पुनीत कर्तव्य है, तदनुसार प्रख्यात साहित्यकार, लेखक, पत्रकार पद्मश्री कुमारपाल देसाई को 'आचार्य तुलसी सम्मान' महामहिम राज्यपाल श्री ओ. पी. कोहली के करकमलों से प्रदान कर हम स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं । लेखन व पत्रकारिता के प्रति आपकी प्रतिबद्धता, निर्भीकता, मूल्य आधारित चिंतनशीलता और मानव मूल्यों के प्रति आपकी आस्था की हम अन्तर्मन से सराहना करते हैं। आपका सम्मान करके हम सकारात्मक, निर्भीक पत्रकारिता एवं मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर किए गए लेखन को रेखांकित करना चाहते हैं। दिनांक 4-2-2018 पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम - अहमदाबाद (गुजरात) राजकुमार पुगलिया - अध्यक्ष आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ विचार मंच Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के वरद हस्तों से पद्मश्री सम्मान प्राप्त करते हुए डॉ. कुमारपाल देसाई।