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लिए विश्व के अनेक क्षेत्रों में विदेश प्रवास करते रहे हैं। अमेरिका, इंग्लैण्ड, केनेडा, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, बेल्जियम, इण्डोनेशिया जैसे देशों में पर्युषण के निमित्त आपने कई वक्तव्य देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है । सन् 1983 में पिट्सबर्ग में आयोजित 'जैना' के अधिवेशन में Jainism : Past, Present and Future' विषय पर आपकी प्रस्तुति आज भी श्रोताओं केहृदयपटल पर अंकित है। वेटिकन में 'Pontificial Council for Inter Religious Dialogue' में 'Historical and Cultural Impect ofAhimsa and Jainism' पर व्याख्यान तथा न्यूयार्क केयुनाइटेड नेशन्स केचेपल में AJourney ofAhimsa : fromBhagwanMahavir to Mahatma Gandhi' के विषय में दिए जाने वाले प्रवचनों के उपरान्त अन्य सेमीनार, परिसंवाद अद्भुत प्रशंसनीय रहे हैं। आप सन् 1990 में बर्किंगहाम पैलेस में ड्यूक ऑफएडनबरो प्रिन्स फिलिप को 'जैन डेक्लेरेशन ऑन नेचर' अर्पित करने गए जिसमें विश्व के पाँच खण्डों के जैन प्रतिनिधि सम्मिलित थे। सन् 1993 में शिकागो एवं सन् 1999 में दक्षिण अफ्रीका के कैपटाउन शहर में आयोजित 'पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलिजियस' एवं सन् 1994 में पोप जॉन पोल (द्वितीय) की मुलाकात लेने वाले प्रतिनिधि मण्डल में आपने धर्मदर्शन के बारे में सक्रियतापूर्वक चर्चा की। इंस्टीट्यूट. ऑफ जैनोलॉजी' नामक विश्वव्यापी संस्था के आप भारत के ट्रस्टी हैं। गुजरात सरकार द्वारा भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक उत्सव के महान अवसर पर अहिंसा युनिवर्सिटी की स्थापना करने का निश्चय किया गया और उसके 'एक्ट एण्ड प्रोजेक्ट कमेटी' के चेयरमैन की जिम्मेदारी आपको सौंपी गई । जैन धर्म का यह विद्वान मात्र जैनत्व की सीमाओं में नहीं रहा, उसे सभी धर्मों एवं संस्कृति से जो भी उत्तम मिला, उसका सरलता से स्वीकार किया। यही कारण है कि आप सभी धर्मप्रेमियों में लोकप्रिय हुए।
जैन धर्म की गहन ज्ञान सम्पदा एवं परिभाषा को कथा स्वरूप में
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