________________
समयानुकूल सहज और सरल भाषा में प्रस्तुत कर जैन धर्म के सिद्धान्तों को लोकभोग्य बनाने में आप द्वारा किए गए कथाप्रयोग ने न केवल जैन धर्मियों में अपितु सामान्य जनसमूह में भी अप्रत्याशित लोकप्रियता प्राप्त की है। विविध विषयों पर आपके द्वारा प्रस्तुत की गई जैन धर्म की कथाएँ न केवल अहमदाबाद, धरमपुर और कच्छ तक सीमित रहीं बल्कि लन्दन (यू.के.) और लॉस एन्जल्स तक पहुँचकर दशों दिशाओं में एक नया इतिहास रचा है।
युगदिवाकर राष्ट्रसन्त पू. गुरुदेव श्री नम्रमुनि महाराज की पावन निश्रा में जैन धर्म का सर्वप्रथम विश्वकोश सम्पन्न होने जा रहा है। आठ भागों में प्रकाशित होने वाले विश्व के जैन धर्मप्रेमियों के लिए अभूतपूर्व धर्मज्ञान की सम्पदा बनने वाले इस विश्वकोश के सम्पादन में आपने श्री गुणवंतभाई बरवालिया के साथ मिलकर जैनधर्मी और समूचे समाज की अतीत, वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों का ज्ञानमार्ग प्रशस्त किया है।
गुजराती भाषा-साहित्य के साक्षर एवं अध्यापक कुमारपाल देसाई ने पीएच.डी. के संशोधन हेतु मध्यकाल के मार्मिक सन्तकवि आनंदघन के जीवन एवं कथन के बारे में गहराई से अध्ययन कर, आनंदघन के पद एवं स्तवनों की हस्तलिपियों का संशोधन कर उनका कवित्व रचा है। आपने गुजरात के विभिन्न हस्तलिखित भण्डारों में से 300 से अधिक हस्तलिपियों का अध्ययन कर उनका शास्त्रीय सम्पादन किया है। पं. बेचरदास दोशी, डॉ. भोगीलाल सांडेसरा एवं पं. दलसुखभाई मालवणिया जैसे प्रखर विद्वानों ने आपके संशोधन कार्य की प्रशंसा की है। मध्यकालीन साहित्य के संशोधन क्षेत्र में डॉ. कुमारपाल देसाई ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। आपने संशोधन द्वारा 'अप्रगट मध्यकालीन कृतिओ', 'ज्ञानविमलसूरिकृत स्तबक' और मेरुसुंदर उपाध्याय रचित 'अजितशांतिस्तवननो बालबोध' जैसे विशेष ग्रंथ प्रकाशित किए हैं। 'गत सैकानी जैन धर्मनी प्रवृत्तिओ', 'अब हम अमर भये' एवं 'अबोलनी आत्मवाणी' आपकी गवेषणामूलक
(10)