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पुस्तकें हैं। आप अनेक संशोधन कार्यों से पुरस्कृत हुए हैं। राजस्थान के लोक संस्कृति शोध संस्थान की ओर से आनंदघनविषयक उत्कृष्ट संशोधन के लिए आपको 'हनुमानप्रसाद पोद्दार पारितोषक' से अलंकृत किया गया है। गुजरात विश्वविद्यालय की विनयन विद्याशाखा में सन् 1975 एवं सन् 1980 में संशोधन हेतु उत्कृष्ट कार्य करने हेतु डॉ. के. जी. नायक सुवर्णचंद्रक आपको ही प्रदान किया गया है। सन् 1985 में पुनः संशोधन विषयक उत्कृष्ट कार्य के लिए आपको यह चंद्रक प्राप्त हुआ। आपको गुजरात की सर्वप्रथम साहित्यिक संस्था गुजरात साहित्य सभा की ओर से श्री 'धनजी कानजी गाँधी सुवर्णचंद्रक' (2001) और रणजितराम सुवर्णचंद्रक (2015) से सम्मानित किया गया है। 2004 में राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के वरद हस्तों से डॉ. कुमारपाल देसाई पद्मश्री सम्मानित से सम्मानित हुए। __डॉ. कुमारपाल देसाई सर्जक होने के साथ-साथ विवेचक भी हैं। 'हेमचंद्राचार्यनी साहित्यसाधना', 'शब्दनिधि', 'भावन-विभावन' आदि आपकी विवेचनात्मक पुस्तकें हैं । मुख्यतः मध्यकालीन साहित्य के अध्ययनशील कुमारपाल अर्वाचीन साहित्य के मर्मज्ञ भी हैं। इसकी प्रतीति अर्वाचीन कृतिविषयक आपके विवेचनात्मकलेख करवाते हैं। मध्यकाल के गिने-चुने अध्ययनशील साहित्यकारों में आपकी गणना की जा सकती है।
कुमारपाल दीर्घदृष्टा सम्पादक भी हैं । आपने अनेक सम्पादन कार्य भी किए हैं जिनमें से महत्वपूर्ण हैं : 'जयभिक्खु स्मृतिग्रंथ', 'शब्दश्री', 'कवि दुला काग स्मृतिग्रंथ', 'हेमस्तुति', 'जयभिक्खुनी जैन धर्मकथाओ' भाग 1-2, 'नर्मद : आजना संदर्भमां', 'श्री महावीर जैन विद्यालय शताब्दी ग्रंथ' (भाग 1-2), 'नवलिका अंक', (गुजरात टाइम्स), 'सामयिक सूत्र' (अर्थ के साथ), 'शंखेश्वर महातीर्थ', 'यशोभारती', 'धन्य छे धर्म तने', 'ओजस दीठां आत्मबलनां', 'रत्नत्रयीनां अजवाळां' (आचार्य विजयवल्लभसूरि के प्रवचनों का सम्पादन), 'आत्मवल्लभ स्मरणिका' (गुजराती विभाग- सम्पादन), 'बालसाहित्य संगोष्ठी', 'परिवर्तन- प्रभात',
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