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________________ हैं। साहित्य के साथ सेवा-सुश्रुषा में भी आप कभी पीछे नहीं हटते । सन् 2001 के 26 जनवरी के दिन गुजरात में आए भीषण भूकम्प के समय आपने भूकम्प पीड़ितों के लिए आर्थिक सहायता निधि विदेशों से प्राप्त कर अद्भुत सेवा की थी। जन्मघुट्टी से ही साहित्य, संस्कृति और सेवा का संस्कार प्राप्त करने वाले कुमारपाल देसाई के कार्यक्षेत्र का व्याप विशाल एवं वैविध्यसभर है। कुमारपाल लेखक पिता, वात्सल्यमयी माँ और प्रेमभाव से युक्त पत्नी की नींव की ईंट पर ही प्रतिष्ठा व साहित्य-सृजन की ‘इमारत' का निर्माण होना अपने आपमें गरिमामय इतिहास है। आचार्य महाप्रज्ञ के ध्यान-योग के शताधिक ग्रंथ प्रकाशित करती संस्था अनेकान्त भारती प्रकाशन के आप मार्गदर्शक हैं। अध्ययन-अध्यापन आदि अनेकविध प्रवृत्तियों में लीन रहने के बावजूद भी कुमारपाल नौजवानों की तरह उत्साह से नित नई योजनाएं बनाने तथा उनको साकार करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। आपसे जब पूछा गया कि, "दिन के तो चौबीस घण्टे ही हैं, तो उसमें नींद एवं आराम के कितने घण्टे?" "नींद तो पूरी करनी ही चाहिए, जागरण करना कभी नहीं सीखा। हाँ...दिन की शुरुआत हो जाय तब उसके बाद निरन्तर काम चलता रहता है।" हँसते-हँसते आप कहा करते हैं। "पुनः जन्म लेना पड़े, तब आप क्या बनना पसन्द करेंगे?" ऐसे प्रश्न के उत्तर में आपने कहा, "समाज के लिए उपयोगी ऐसा आध्यात्मिक जीवन जी सकूँ, वैसी मानव देह फिर मिले ऐसी मेरी ईश्वर से प्रार्थना है।" अनेक एवॉर्ड, चन्द्रक, पुरस्कार से सम्मानित होने के बावजूद भी कुमारपाल देसाई को अभिमान अंश मात्र भी नहीं है। चेहरे पर हमेशा स्नेहिल स्मित एवं छोटे से छोटे व्यक्ति के साथ भी प्रेमपूर्वक ऊष्मापूर्ण व्यवहार आपको विशिष्ट मानव की श्रेणी में प्रस्तुत करता है। * * * (16)
SR No.032288
Book TitlePadmashree Dr KumarpalDesai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantosh Surana
PublisherAnekant Bharti Prakashan
Publication Year2017
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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