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विश्वविद्यालय से पीएच.डी की पदवी प्राप्त की। आपने पीएच.डी. के महानिबन्ध द्वारा आनंदघन के व्यक्तित्व और कृतित्व का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया। सन् 1988 में आप रीडर बने और सन् 2000 में प्रोफेसर । नवम्बर 2001 में आप गुजराती विभाग के अध्यक्ष बने। 2003 के जनवरी में भाषा साहित्य भवन के अध्यक्ष और गुजरात विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी के डीन के रूप में भी सेवाएँ दीं। गुजरात सरकार द्वारा प्रायोजित अहिंसा यूनिवर्सिटी के एक्ट एवं प्रोजेक्ट समिति के चेयरमैन के रूप में भी आपने मूल्यवान सेवाएं प्रदान की । इसके साथ-साथ मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट, लाडनूं के प्रोफेसर एमेरिट्स तथा गूजरात विद्यापीठ के एडजन्कट प्रोफेसर के रूप में प्रत्यक्ष शिक्षण कार्य के साथ आप सक्रिय रूप से जुड़े रहे।
महान चिन्तक, लेखक और साहित्यकार 'जयभिक्खु' के पुत्र कुमारपाल देसाई ने छोटी उम्र से ही साहित्य- सर्जन का कार्य प्रारम्भ कर दिया था । ग्यारह वर्ष की आयु में आपने 'झगमग' नामक बाल सामयिक में देश के लिए जीवन का बलिदान देने वाले एक क्रान्तिकारी की काल्पनिक कथा से लेखन कार्य का श्रीगणेश किया। बचपन से ही आपमें त्याग एवं शौर्य की गाथाओं के प्रति आकर्षण था क्योंकि आपका जन्म स्थान वीरों की भूमि सौराष्ट्र है और 'कुरबानी की कथा' के रचयिता झवेरचंद मेघाणी, सागर-कथाओं के सर्जक गुणवंतराय आचार्य, प्रसिद्ध कहानीकार धूमकेतु, पद्मश्री कवि दुला काग जैसे समर्थ साहित्यकारों का सान्निध्य आपने शैशवकाल से प्राप्त कर लिया था। पिता की भाति ही जोश एवं स्वाभिमान कुमारपाल में भी संक्रान्त हुए । आपका प्रथम लेख पिताश्री के प्रभाव के कारण न छपे अतः आपने अपना प्रथम लेख कु. बा. देसाई के नाम से लिखा और वह अद्भुत सफल रहा।
कुमारपाल देसाई अनेक विषयों के रसिक एवं धनी हैं। लेखन प्रवृत्ति के साथ-साथ प्रारम्भ से ही आप 'खेल सामयिक' के रूप में नई दिशा
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