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________________ बाईसवां प्रवचन पिया का गांव For Private Personal Use Only
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________________ थापा प्रश्न-सार न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे चली रे, चली रे, मेरी नाव चली रे कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली मैंने कहा पिया के गांव चली रे momsungwwse Me जैन दर्शन कहता है कि इस आरे में मोक्ष संभव नहीं है। तो फिर मोक्ष यहीं और अभी है, इस धारणा को पकड़ लेना क्या आत्मवंचना नहीं है? m STATER N MPAN ACC ANCHO कार REER C. . . / 2010_03 www jainelibrary.org
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________________ हला प्रश्न: मैं जब प्रथम-प्रथम आपको मिली थी है, बेहोशी और होश के बीच में लटका है। आदमी त्रिशंक की तब कुछ भी तो पता नहीं था। न मालूम आपने स्थिति में है। और आदमी की स्थिति में से पार होने के दो ही कहां से कहां चला दिया! एकांत अब प्रीतिकर | उपाय हैं—या तो गिर जाओ वापस बेहोशी में, जो कि असंभव लगता है। अब तो न कहीं जाना है, न आना। न कुछ होना है है। हो जाओ पश-पक्षी पुनः, जो कि असंभव है। क्योंकि और न कुछ जानना है। बहुत कुछ पाया, जिसके योग्य न थी। विकास की किसी भी स्थिति से वापस नहीं लौटा जा सकता है। बस, अब तो अलविदा और प्रणाम। जो जान लिया, जान लिया। उसे फिर अनजाना नहीं किया जा न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे सकता। जहां तक आ गए हैं, यह तो हो सकता है आगे न जाएं, चली रे चली रे मेरी नाव चली रे लेकिन पीछे नहीं जा सकते। अटके रह जा सकते हैं। और वही कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली अटकाव बेचैनी और अशांति बनता है। मैंने कहा पिया के गांव चली रे और दो ही उपाय हैं: या तो पूरी बेहोशी हो, कि यह भी न पता चले कि मैं कौन हूं? कि मुझे पता नहीं कि मैं कौन हूं। पता का साधारणतः किसी को भी पता नहीं है कि कहां जा रहे हैं। जा | भी पता न चले। बेहोशी की भी याद न आए। थोड़ी-सी भी रहे हैं जरूर। गति से जा रहे हैं, शक्ति से जा रहे हैं, लेकिन होश की किरण न हो। स्पष्ट नहीं है कि कहां जा रहे हैं। कहां से आ रहे हैं, इसका भी ऐसी आदमी चेष्टा करता है। शराब पीकर कभी चेष्टा करता कुछ पता नहीं है। | है कि भूल जाएं सब। वह चेष्टा फिर से पशु हो जाने की चेष्टा कहां से आना, कहां से जाना तो दूर की बातें हैं, यह भी ठीक है। कभी धन की दौड़ में, कभी पद की दौड़ में वे भी शराबें पता नहीं है कि कौन हैं। कौन है यह जो तुम्हारे भीतर चल रहा, हैं; उनमें कभी आदमी अपने को भुला लेना चाहता है, लेकिन जी रहा, सुख भोग रहा, दुख भोग रहा, चिंतित होता है, ध्यान | भूल नहीं पाता। शराब कितनी देर साथ देगी? सुबह फिर करता है-कौन छिपा है तुम्हारे भीतर? स्मरण वापस लौट आता है—और भी प्रगाढ़ होकर, और भी मनुष्य की स्थिति बड़ी विक्षिप्त है। पशु-पक्षियों की स्थिति भी चुभता हुआ, और भी धार लेकर। बेहतर है। उन्हें भी पता नहीं कि कौन हैं, कहां जा रहे हैं। मनुष्य | पद की दौड़, धन की दौड़, यश की दौड़ एक न एक दिन टूटती की विडंबना यह है कि उसे इतना पता है कि पता नहीं कौन है! है। वह नशा भी एक दिन उखड़ता है। एक दिन पद पर पहुंचकर इतना पता है कि पता नहीं कहां जा रहे हैं। पता चलता है, कहां पहुंचे? चले बहुत, पहुंचे कहीं भी नहीं। पश-पक्षी ऐसे चल रहे हैं, जैसे बेहोश। आदमी होश में नहीं धन जोड़कर एक दिन पता चलता है कि जो जोड़ लिया, वह 2010_03
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________________ - जिन सूत्र भाग : 2 - बाहर का बाहर पड़ा रह जाएगा। और हम भीतर तो खाली के किसलिए आए हो। तम्हें भी साफ नहीं होता. क्या घटेगा? खाली रह गए। यह जोड़ कुछ जोड़ न हुआ। यह धन अपना न | तुम्हें भी साफ नहीं होता कि तुम्हें मैं कहां ले चलूंगा? हो भी नहीं हो सका तो 'धन' कैसे हो सकेगा? मौत छीन लेगी, जो छिन | सकता साफ। क्योंकि पता तो हमें उसी का होता है. जो हो जाएगा उसे धन क्या कहना? जो छिन जाएगा वह विपत्ति हो | चुका। जो नहीं हुआ है उसका तुम्हें पता नहीं होता। सकती है, संपत्ति नहीं। सदगुरु का इतना ही अर्थ है कि जो तुम्हारा भविष्य है वह एक विकल्प है कि आदमी लौट जाए, जो कि हो नहीं सकता। उसका अतीत है। जो तुम्हें अभी होना है, उसके लिए हो चुका। झूठा विकल्प है। भ्रामक विकल्प है। रास्ता वहां से जाता नहीं, इसे समझ लेना। सदगुरु का बस इतना ही अर्थ है कि जो सिर्फ दिखाई पड़ता है। दिखाई पड़ता है क्योंकि हम वहां से तुम्हारा भविष्य है, वह उसका अतीत है। वह स्वयं तो अपने होकर आए हैं। | अतीत में नहीं जा सकता, लेकिन तुम्हें तुम्हारे भविष्य की झलक तुम्हें पता है जो बीत गया कल, उसका। जो बीत गया परसों, दे सकता है। वह उस रास्ते से गुजर चुका, जिससे तुम्हें अभी उसका। यद्यपि लौट नहीं सकते वहां। जिसका पता है वहां लौट गुजरना है। वह हो चुका फूल, तुम अभी बीज हो। बीज को पता नहीं सकते। जाना तो पड़ेगा उस कल में, जिसका अभी पता नहीं भी कैसे हो सकता है? है। जाना पड़ेगा भविष्य में, अनजान में। जो जाना-माना है | ठीक पूछा है कि 'मैं जब प्रथम-प्रथम आपको मिली थी तब अतीत, वहां लौटा नहीं जा सकता। समय को पीछे की तरफ | कुछ भी तो पता नहीं था।' लौटाया नहीं जा सकता। घड़ी के कांटे पीछे की तरफ चलाए | अगर कुछ पता होता तो पहली तो बात, मुझसे मिलना नहीं जा सकते। घड़ी के चला लो, जीवन के नहीं चलाए जा मुश्किल हो जाता। क्योंकि जिनको पता है, वे यहां आते नहीं। सकते। मगर परिचय उससे है, जो बीत गया। परिचय उससे है, जिनको पता है, उनका दंभ उन्हें यहां न आने देगा। उनका ज्ञान जो अब कभी न होगा। और उससे कोई परिचय नहीं है, जो होने | ही बाधा है। पता ही होता, तब तो ठीक था। पता भी नहीं है, जा रहा है। | सिर्फ भ्रांति है कि पता है। गीता पढ़ ली है, करान पढ़ लिया है, पशता मनुष्यता का अतीत है, परिचित है। इसलिए तो आदमी | धम्मपद पढ़ लिया है, महावीर के वचन कंठस्थ कर लिए हैं। शराब पी लेता है। इसलिए तो पद, धन की दौड़ में लग जाता | पता बिलकुल नहीं है। महावीर को पता रहा होगा, महावीर के है। भलाने के हजार उपाय खोज लेता। फिर शराब हो, कि | वचन याद कर लेने से तुम्हें पता नहीं हो जाएगा। कृष्ण को / संभोग हो, कि संगीत हो, कहीं भी भुलाने का उपाय आदमी जब मालूम रहा होगा, लेकिन गीता कंठस्थ होने से तुम्हें मालूम नहीं खोजता है कि अपने होश की छोटी-सी किरण को डुबा दूं; यह हो जाएगा। छोटा-सा दीया भी बझ जाए, गहन अंधकार हो जाए, तो कम से तम्हारा जीवंत अनुभव होगा तो ही कम द्वंद्व तो मिटे! अंधेरा ही बचे। अंधेरे का ही अद्वैत सही, इसलिए शास्त्र ज्ञान दे सकता है। और ज्ञान बाधा बन सकता लेकिन अद्वैत तो हो जाए। एक तो बचे! दो की दुविधा तो न है। बोध तो केवल शास्ता से मिलता है, शास्त्र से नहीं। शास्ता रहे। पर यह हो नहीं पाता। लाख बुझाओ इस किरण को, यह का अर्थ है, जीवित शास्त्र। जिसको हुआ है ऐसे किसी आदमी बुझेगी नहीं। | को खोज लेना। उसके माध्यम से ही शास्त्रों का अर्थ और तो दूसरा उपाय है और दूसरा ही केवल उपाय है कि पूरे | अभिप्राय तुम्हारे लिए खुलेगा। जागरूक हो जाओ। जैसे पूरी बेहोशी में एक सुख है क्योंकि | और ऐसा आदमी खोजना हो तो पहली शर्त है कि अपने ज्ञान अखंड रूप से अद्वैत है, अंधेरे का है। वैसे ही पूरे होश में | की भ्रांति छोड़ देना। गुरु से मिलना हो ही नहीं सकता, अगर महाआनंद है, महासुख है; वह भी अखंड एकता का है। कोई शिष्य को थोड़ा भी खयाल हो कि मुझे मालूम है। जितना मालूम अंधेरा न बचा। भीतर सारा अंधकार समाप्त हो गया। है उतनी ही दीवाल रहेगी। उतनी ही ओट रहेगी। शिष्य का अर्थ तो जब तुम मेरे पास आते हो तो तुम्हें भी साफ नहीं होता ही है इस बात की घोषणा, कि मुझे मालूम नहीं। इस बात की 438 2010_03
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________________ - पिया का गांव पिया का गांव घोषणा, कि मैं अज्ञानी हूं। है, थोड़ा सुधारकर मांग लोगे। जो सुख तुम्हें पहले मिले हैं, जब तुम अज्ञानी किसी के समक्ष अपने को स्वीकार कर लेते | थोड़ी तरमीम, संशोधन करके मांग लोगे। हो तो क्रांति के लिए तत्पर हो गए, तैयार हो गए। अहंकार तुमने अभिनव को कैसे मांगोगे? जो तुमने जाना ही नहीं, जीया ही हटाकर रख दिया। नहीं, उसे कैसे मांगोगे? प्रश्न पूछा है तरु ने। खतरा था; क्योंकि पंडितों का सत्संग इसलिए जो जानता है, थोड़ा-सा भी जानता है, थोड़ा-सा भी उसने किया है मुझसे पहले। साधु-संन्यासियों के पास गई है। समझता है, वह अड़चन में पड़ जाता है। उसकी प्रार्थना कलुषित स्वामियों के प्रवचन सुने हैं। खतरा था। ज्ञान उसके पास था। हो जाती है। उसकी पूजा में उसके ज्ञान की छाया पड़ जाती है। लेकिन उसने हिम्मत की और अज्ञानी होने के लिए राजी हुई। | उसकी पूजा की शुभ्रता उसके ज्ञान की कालिमा से दब जाती है। उसी हिम्मत से घटना घटी। __ तो जब तुम मंदिर जाओ, पूजा करो, प्रार्थना करो तो कुछ डर था कि वह अपने ज्ञान को पकड़ लेती। जो सुना-समझा मांगना मत। क्योंकि तुम जो मांगोगे, वह गलत होगा। तुम जो था उसे पकड़ लेती तो मुझसे मिलना न हो पाता।। मांगोगे वह गलत ही हो सकता है। काश! तुम्हें ठीक का ही पता मेरे पास भी रहकर बहुत हैं, जो मुझसे वंचित रह जाएंगे। होता तो मंदिर जाने की जरूरत ही न होती। अगर ज्ञान की जरा भी दीवाल रही तो मैं यहां चिल्लाता रहूंगा, तुम्हें ठीक का पता नहीं है। इसलिए तुम्हारी मांग में ही भूल आवाज तुम तक पहुंचेगी नहीं। मैं रोज-रोज तुम्हें समझाता होगी। तुम वही मांगोगे, जो तुम पहले मांगते रहे हो। तुम रहूंगा, तुम रोज-रोज चूकते रहोगे। मैं रोज-रोज दोहराता रहूंगा फिर-फिर दोहराकर उसी रास्ते से घूमते रहोगे, जिस पर तुम और तुम बहरे...और बहरे होते जाओगे। ज्ञान कान में भरा हो | पहले घूमते रहे हो। तुम कोल्हू के बैल की तरह चलते रहोगे। तो कान सनने में असमर्थ हो जाते हैं। ज्ञान आंख में भरा हो तो इसलिए अगर थोड़ी समझ हो तो मांगना मत। झोली फैलाकर आंख देखने में असमर्थ हो जाती है। खड़े हो जाना, मांगना मत। हृदय खोलकर खड़े हो जाना, अज्ञान को स्वीकार करने में एक निर्दोषता है। मांगना मत। यह मत कहना कि यह दे, वह दे। इतना ही कठिन था। तरु को पता था। बहुत-सी बातें पता थीं। और कहना : झोली खुली है। तू देगा तो हम स्वीकार करेंगे आनंद से, बहुत मुश्किल होता है कि जो तुम्हें पता है, उसे हटाकर रख अहोभाव से। तू नहीं देगा तो हम समझेंगे, यही तेरा देना है। तू देना। उसे ही मैं त्याग कहता हूं। धन, पद, प्रतिष्ठा, इनका झोली खाली रखेगा तो हम समझेंगे, यही हमारी झोली का भरा त्याग कुछ भी नहीं है, ज्ञान का त्याग ही वास्तविक त्याग है। होना है। खालीपन से ही तूने हमारी झोली भरी है। त चाहता है, क्योंकि ज्ञान से जितना अहंकार भरता है, उतना किसी चीज से हम खालीपन में जीएं। तो हम नाचेंगे, गुनगुनाएंगे, आनंदित नहीं भरता। ज्ञान जैसी अकड़ देता है, रीढ़ को जैसा सख्त, | होंगे; मांगेंगे नहीं।। पथरीला कर देता है, वैसी कोई चीज नहीं करती। ___ ध्यान रखना, जिसने प्रार्थना में मांगा, उसकी प्रार्थना तो खराब छोड़ सकी तो पाने का रास्ता बना। झक सकी तो भरने का ही हो गई। उस मांगने के कारण प्रार्थना तो प्रार्थना ही न रही। उपाय हुआ। प्रार्थना में आदमी अपने को देता है, मांगता नहीं। पूछा है : 'न मालूम आपने कहां से कहां चला दिया। तो जो मेरे पास आए हैं और जिनको खयाल है कि कुछ मिल क्योंकि जो वह सोचकर आयी होगी, उस तरफ तो मैं नहीं ले जाए; और जिनकी जितनी स्पष्ट धारणा है कुछ पाने की, उतनी गया। क्योंकि तम जो सोचकर आते हो, वह तो गलत ही है। ही अड़चन है। तो बार-बार उनके मन में यही अपेक्षा गूंजती / 'तुम' सोचकर आते हो, तुम्हारा सोचना तुम्हारे अतीत का ही रहती है-अभी तक मिला नहीं, अभी तक मिला नहीं। और जो प्रतिफलन होता है। अन्यथा हो भी नहीं सकता। तुम जो मिल रहा है, वह उन्हें दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि उनकी आंख सोचकर आते हो, वह तुम्हारी अतीत की ही कुछ पुनरावृत्ति होता | में उनकी मांग भरी है। वे अपनी ही मांग को दोहराए चले जा रहे || है। जो तुमने जाना है, उसी को तो मांगोगे। जो तुमने पहले जाना हैं। मांग अंधा कर देती है। 1439 2010_03
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________________ जिन सूत्र भागः 2 तरु ने कुछ मांगा नहीं। जो उसे मैंने कहा, उसने किया है। | दस-पांच मिनट भी उसको रुकना पड़ता तो वह नाराज हो जाता, कहा, गीता पढ़ तो गीता पढ़ी। कहा, उपनिषद पढ़ तो उपनिषद चीख-पुकार मचाने लगता। पढ़ा। कहा, चल जिन-सूत्र पढ़ तो जिन-सूत्र पढ़े। कहा, कोई दस साल तक ऐसा चला। एक दिन आया लेने तो जो धम्मपद पढ़ तो धम्मपद पढ़ा। कहा, भजन गा भजन गाए। जो क्लर्क उसे देता था और भी भिखमंगों को रथचाइल्ड बांटता उसे कहा, उसने किया है। मांगा उसने कुछ नहीं। जो करने को था। बहुत धन उसने बांटा—उसने कहा कि इस तारीख से अब कहा है, उसे इंकार नहीं किया। उसने सरलता से मेरे हाथों में तुम्हें पचास डालर ही मिल सकेंगे। उसने पूछा, क्यों? सदा ड़ा। उसके परिणाम होने स्वाभाविक है। उसके मुझे सौ मिलते रहे। सालों से मिलते रहे। यह फर्क कैसा! उस महत परिणाम होते हैं। क्लर्क ने कहा कि ऐसा करें, मालिक का धंधा बहत लाभ में नहीं तो यह संभव हो सका कि जिसका उसे खयाल भी नहीं रहा | चल रहा है। और उनकी लड़की की शादी हो रही है। और उस होगा, जो वह कभी सपने में भी मांग नहीं सकती थी, उस तरफ | लड़की की शादी में बहुत खर्च है। तो उन्होंने सभी दान आधा यात्रा शुरू हुई। कर दिया है। जब तुम अपने अतीत से कुछ भी दोहराना नहीं चाहते, तो वह तो एकदम टेबल पीटने लगा। उसने कहा बुलाओ अभिनव का पदार्पण होता है। परमात्मा सदा नया है। सत्य सदा | रथचाइल्ड को, कहां है! मेरे पैसे पर अपनी लड़की की शादी? नया है। सत्य इतना नया है कि उसकी कोई धारणा भी नहीं की एक गरीब आदमी का पैसा काटकर लड़की की शादी में मजा, जा सकती। और एक बार तुम्हें सत्य के इस नयेपन का अनुभव गुलछर्रे उड़ाएगा? बुलाओ, कहां है! हो जाए तो तुम सब मांग छोड़ देते हो। तब एक नई प्रतीति होनी | रथचाइल्ड ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि मैं गया और शुरू होती है कि इतना मिल रहा है और हम याचक बने हैं! हमने मुझे बड़ी हंसी आयी। लेकिन मुझे एक बात समझ में आयी कि मांगा यहीं भूल हो गई। | यही तो मैं परमात्मा के साथ करता रहा हूं। फिर तम जो मांगते हो. अगर मिल जाए तो भी धन्यवाद पैदा यही तो हम सबने परमात्मा के साथ किया है। जो मिला है नहीं होता। क्योंकि जो तुमने मांगा है, तुम सोचते हो, तुमने उसका हम धन्यवाद नहीं देते। उस दस साल में उसने कभी एक अर्जित किया। लोग मांगने में भी अगर कई दिन तक मांगते रहें | दिन धन्यवाद न दिया। लेकिन पचास डालर कम हुए तो वह तो धीरे-धीरे अधिकारी हो जाते हैं। वे सोचने लगते हैं, हमने नाराज था, शिकायत थी। और आगबबूला हो गया। उसके इतनी प्रार्थना की इसलिए मिला। प्रार्थना की इसलिए! पचास डालर काटे जा रहे हैं? भिखमंगा भी जब सड़क पर आधा घंटे मांगता रहता है और अगर तुमने मांगा तो पहली तो बात, मिलेगा नहीं। और शुभ तुम देते हो तो धन्यवाद थोड़े ही देता है। वह जानता है कि आधा | है कि नहीं मिलता क्योंकि तुम जो भी मांगते हो, गलत मांगते घंटे चीखे-चिल्लाए, श्रम किया। और अगर तुम रोज-रोज देने हो। तुम सही मांग ही नहीं सकते। तुम गलत हो। गलत से लगो तो धन्यवाद देना तो दूर, अगर तुम किसी दिन न दोगे तो गलत मांग ही उठ सकती है। नीम में केवल नीम की निबोरियां वह नाराज होगा। ही लग सकती हैं, आम के सुस्वादु फलों के लगने की कोई रथचाइल्ड के संबंध में मैंने सुना है-यहूदी धनपति—एक | संभावना नहीं है। जो तुम्हारी जड़ में नहीं है, वह तुम्हारे फल में भिखमंगे को वह रोज हर महीने पहली तारीख को सौ डालर देता | न हो सकेगा। तुम गलत हो तो तुम जो मांगोगे वह गलत होगा। था। वह भिखमंगा उसे जंच गया। एक दिन बगीचे में उसी बेंच तो पहली तो बात-मिलेगा नहीं। और शभ है कि नहीं | पर आकर बैठ गया था। दया आ गई। कोई रथचाइल्ड के पास | मिलता। परमात्मा की बड़ी अनुकंपा है कि तुम जो मांगते हो, कमी न थी। उसने कहा कि तू सौ डालर हर महीने एक तारीख | वह नहीं मिलता। इसे कभी सोचना बैठकर कि तुमने जो-जो को आकर ले जाया कर। वह भिखमंगा इस तरह से उसके दफ्तर मांगा था अगर मिल जाता तो कैसी मुसीबत में पड़ते! में आने लगा, जैसे लोग अपनी तनख्वाह लेने जाते हैं। अगर लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि मिल जाता है। तो जो 4401 2010_03
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________________ पिया का गांव मिल जाए तो भी धन्यवाद पैदा नहीं होता, कृतज्ञता पैदा नहीं आभा होती है। होती, और जिस प्रार्थना का परिणाम कृतज्ञता न हो, वह प्रार्थना भाषाकोश में तो दोनों शब्दों का एक ही अर्थ लिखा है, लेकिन प्रार्थना नहीं है। प्रार्थना का पहला स्वाद भी कृतज्ञता है और जीवन के कोश में बड़ा भेद है। इसलिए भाषाकोश पर बहुत मत अंतिम स्वाद भी कृतज्ञता है। एक गहरा अनुग्रह का भाव! जाना। भाषा को बहुत जाननेवाले लोग अक्सर जीवन से वंचित तो जिस प्रार्थना के पीछे अनुग्रह का स्वाद छूट जाए, समझ रह जाते हैं। अगर तुम भाषाकोश में देखोगे, डिक्शनरी में देखोगे लेना कि प्रार्थना ठीक थी; पहुंच गई परमात्मा के हृदय तक। पूरी तो एकांत, एकाकी, अकेला, सबका एक ही अर्थ है। भाषाकोश हुई या नहीं, यह सवाल नहीं है। अगर अनुग्रह का भाव पैदा कर की तो अंधेर नगरी है। वहां तो सभी चीज एक भाव बिक रही गई तो पूरी हो गई। | है। 'अंधेर नगरी बेबूझ राजा, टके सेर भाजी, टके सेर तो जो मेरे पास आए हैं, अगर उनकी कुछ मांग है, तो एक तो खाजा।' सभी एक भाव बिक रहा है। मांग बाधा बनेगी। मुझसे मिलन न हो पाएगा। अगर मिल भी जीवन का कोश बड़ा अलग है। फासले बड़े सूक्ष्म हैं। गए, उनकी मांग पूरी भी हो गई तो कृतज्ञता पैदा न होगी। महावीर एकांत में होते हैं; तुम जब होते हो, अकेले होते हो। तुम असंभव है। और अगर कृतज्ञता पैदा न हुई तो आस्तिकता पैदा | जब होते हो तब तुम सोचते होते हो कि दूसरे को कहां खोज लूं! नहीं होती। - पत्नी को, पति को, मित्र को, बेटे को, पिता को, भाई को, समाज परमात्मा को चाहे भूल जाओ, कृतज्ञता को मत भूलना। को-दूसरे को कैसे खोज लूं? सच तो यह है कि जब तक क्योंकि कृतज्ञता का संचित जोड़ ही परमात्मा है। जितने तुम दूसरा मौजूद होता है, तब तक तुम्हें दूसरे की याद ही नहीं आती। अनुग्रह के भाव से भरते जाते हो, उतना ही तुम्हारे परमात्मा का | दूसरे की याद ही तब आती है, जब तुम अकेले होते हो। मंदिर निर्मित होता चला जाता है। तुम्हारे अकेले में बड़ी भीड़ खड़ी होती है। भाषाकोश '...न मालूम आपने कहां से कहां चला दिया। एकांत अब बनानेवाले को वह भीड़ दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि वह भीड़ तो प्रीतिकर लगता है।' एकांत प्रीतिकर लगे तो प्रार्थना शुरू हुई। सूक्ष्म है और मन की है। तुम जाकर पहाड़ पर बैठ जाओ। तुम हमें एकांत प्रीतिकर क्यों नहीं लगता? एकांत को हम कहते अकेले न जाओगे। अकेले दिखाई पड़ोगे, तुम्हारे भीतर एक हैं, अकेलापन, लोनलीनेस। एकांत को हम एकांत थोड़े ही भीड़ चल रही है। कहत हैं! अलोननेस थोड़े ही कहते हैं! एकांत को हम कहते हैं, जब बायजीद अपने गुरु के पास पहली दफा गया और उसने अकेलापन। अकेलेपन में लगता है, दूसरे की कमी है। दूसरा जाकर चरणों में सिर झकाया और कहा कि मैं आ गया हं सब होना चाहिए था, और है नहीं। अकेलेपन का अर्थ है शिकायत। छोड़कर अकेला तुम्हारे चरणों में। गुरु ने कहा, बकवास बंद। अकेलेपन का अर्थ है कि अभाव अनुभव हो रहा है दूसरे की भीड़ को बाहर छोड़कर आ। उसने लौटकर पीछे दिखा कि कोई मौजूदगी का। जब तुम कहते हो अकेलापन लग रहा है, तो क्या आ तो नहीं गया पीछे? कोई भी न था। उस मस्जिद में गुरु अर्थ हुआ इसका? इसका अर्थ हुआ कि दूसरा अनुपस्थित है, अकेला बैठा था। उसने चारों तरफ देखा। गुरु ने कहा, उसकी अनुपस्थिति खल रही है। यहां-वहां मत देख। आंख बंद कर; वहां देख। अकेलापन नकारात्मक है: एकांत विधायक है। घबड़ाकर उसने आंख बंद की, निश्चित ही वहां भीड़ खड़ी एकांत का अर्थ है, अपने होने में आनंद आ रहा है। अकेलेपन | थी। जिस पत्नी को रोते छोड़ आया था, वह अभी भी रो रही का अर्थ है, दूसरे के न होने में दुख मालूम हो रहा है। दूसरे की थी। जिन बच्चों को विदा कर आया था, माफी मांग आया था अनपस्थिति चभ रही है। एकांत का अर्थ है, अपने होने में रस कि मझे जाने दो, वे अब भी बिसरते खड़े थे। जिन मित्रों से कह बह रहा है। आया था गांव के बाहर आकर कि अब मेरे पीछे मत आओ, जब अकेला आदमी कमरे में बैठा हो तो उदासी से घिरा होता अब मुझे अकेला छोड़ दो, वे साथ ही चले आए थे। बाहर से तो है। और जब एकांत में बैठा हो तो उसके चारों तरफ आनंद की नहीं, भीतर आ गए थे। भीतर भीड़ थी। बायजीद को दिखा कि 1441 ___ 2010_03
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________________ जिन सूत्र भागः 2 गुरु ने ठीक कहा। भीड़ तो मैं साथ ले आया हूं और कहता हूं, मैं तो अगर एकांत में आनंद आने लगा, एकांत में सुगंध आने अकेला आया हूं! | लगी, एकांत में धूप जलने लगी, एकांत में रस बहने लगा तो अकेला होना तो बड़ी उपलब्धि है। मगर उस अकेलेपन का शुभ लक्षण है। उसका अर्थ है, अब अकेले में भी अकेलापन अर्थ होता है एकांत। जब तुम्हें अकेले में आनंद आने लगे तो | नहीं है। अब अकेले में भी कुछ भरापन है। अब अकेला भी एकांत बरसा। अकेले में आनंद कब आता है? अकेले में खालीपन नहीं है, अनुपस्थिति नहीं है। बल्कि किसी की आनंद तभी आता है, जब परमात्मा की थोड़ी झलक मिलने अप्रगट, अदृश्य उपस्थिति का अनुभव होने लगा है। लगे; नहीं तो नहीं आता। अकेले में आनंद तभी आता है, जब 'एकांत अब प्रीतिकर लगता है...।' वस्तुतः तुम अकेले नहीं होते हो, परमात्मा तुम्हें घेरे होता है। ध्यान कहो, प्रार्थना कहो, तभी शुरू होती है जब एकांत प्रसिद्ध ईसाई फकीर स्त्री हुई-थेरेसा। एक दिन उसने गांव प्रीतिकर लगने लगता है। में घोषणा की कि मैं एक बड़ा चर्च बनाने जा रही हूं। लोग हंसने ...अब न कहीं जाना है न आना; न कुछ होना है, न कुछ लगे। वह भिखमंगी थी। उसके पास कुछ भी न था। लोगों ने जानना!' अब कोई जरूरत भी नहीं। जाना-आना, पूछा, तेरे पास है क्या? चर्च बनाएगी कैसे? चर्च ऐसे कोई जानना-होना, सब दौड़ है। सब बाहर ले जाती है। जब कोई आकाश से नहीं बनता। और तू, सुना है कि सोचती है, दुनिया अपने भीतर डूबने लगे तो न कुछ जानने को बचता, न कुछ होने का सबसे सुंदर चर्च बन जाए! कोई खजाना मिल गया है तुझे? | को बचता। सब दौड़ गई। आदमी घर लौट आया। विश्राम का उसने खीसे से दो पैसे निकाले और उसने कहा कि ये मेरे पास क्षण आया। विराम आया। ने लगे। उन्होंने कहा कि हमें शक तो सदा से था इस विराम की हमें कोई अनभति नहीं है. इसलिए खतरा भी कि तू पागल है। दो पैसे में चर्च? उसने कहा, ये दो पैसे, मैं है। खतरा यह है कि मन सोचने लगे, क्या कर रहे हो और + ईश्वर। उसको क्यों भूले जाते हो? वह जो मुझे चारों बैठे-बैठे? कुछ तो करो। मन की पुरानी आदतें प्रबल हैं। तरफ से घेरा है, उसे भी जोड़ में रखो। अकेले दो पैसे और संस्कार गहन हैं। वह फिर उधेड़-बुन पैदा कर सकता है। थेरेसा से तो चर्च नहीं बन सकता, यह सच है। लेकिन थेरेसा, इसलिए सावधान रहना। दो पैसे और + ईश्वर; चर्च बनेगा या नहीं, यह कहो। पागल मैं | विराम तो स्वीकार कर लेना, विश्राम तो करना, लेकिन हूं, या पागल तुम हो? विश्रांति को असावधानी मत बनने देना। अगर विश्रांति में लेकिन उन लोगों की बात भी ठीक थी। उनका गणित | | असावधानी आ जाए तो मन के खेल बड़े प्राचीन हैं। मन फिर साफ-सुथरा था। उन्हें तो दो पैसे, और गरीब औरत थेरेसा | कुछ खेल निकाल ले सकता है। क्योंकि मन सदा व्यस्त रहना दिखाई पड़ रही थी। वह जो परमात्मा उसे घेरे था, वह तो केवल | चाहता है। मन चाहता है, कुछ करते रहो, कुछ होते रहो, कुछ | उसे ही दिखाई पड़ रहा था। चर्च बना। और कहते हैं, दुनिया का पाते रहो। मन तो भिखारी का पात्र है, जो कभी भरता नहीं। कुछ सुंदरतम चर्च बना। उस जगह, जहां थेरेसा ने वे दो पैसे लोगों | न कुछ डालते रहो...डालते रहो, पात्र खाली का खाली रहता को दिखाए थे, वह चर्च प्रमाण की तरह खड़ा है कि अगर | है। मन तो याचक है। परमात्मा का साथ हो तो तुम अकेले नहीं हो। और जब कहीं नहीं जाना, कुछ भी नहीं होना, शांत बैठे हैं तो अकेले होकर अकेले नहीं हो, अगर परमात्मा का साथ हो। मन बड़ा बेचैन होगा। सावधानी रखना। नहीं तो मन बने हए अगर परमात्मा का साथ न हो तो तुम भीड़ में भी अकेले हो। | एकांत को खंडित कर सकता है। जरा-सी हवा की लहर शांत मित्र हैं, प्रियजन हैं, संबंधी हैं, सगे हैं। कभी खयाल किया, | झील को फिर लहरों से भर देती है। जरा-सा झोंका दीये की लेकिन कहीं अकेलापन मिटता है? कंधे से कंधे लगे हैं। भीड़ | ज्योति को फिर कंपा जाता है। मन का जरा-सा झोंका अब यह में, जमात में खडे हो. लेकिन अकेले हो। आदमी भीड में भी हो | खतरनाक हो सकता है। तो अकेला है। भक्त अकेला भी हो तो अकेला नहीं है। इसलिए महावीर ने कहा है, कि जब ध्यान भी सध जाए, यहां 2010_03
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________________ पिया का गांव तक कि शुक्ल ध्यान की भी जरूरत न रह जाए तो भी बारह | कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली भावनाओं को करते रहना। महावीर कह रहे हैं, जब समाधि भी मैंने कहा पिया के गांव चली रे' उपलब्ध हो जाए तो भी जल्दी मत करना क्योंकि मन के धोखे दूसरों को तो दिखाई भी नहीं पड़ता। इसलिए कोई कहता है, बड़े पुराने हैं। कहां छिपा बैठा हो। कहां अचेतन की किसी गर्त यहां चली, कोई कहता है, वहां चली। कोई कहता है पागल हो | में, गुहा में बैठा हो। कहां भीतर कोई जगह बना ली हो और वहां गई है तरु। कोई कहता है दिमाग फिर गया, दीवानी हो गई। से धीरे-धीरे फिर उपद्रव की शुरुआत कर दे। फिर वहां से कोई कहता है पहले बड़ी बुद्धिमान थी; बुद्धि गंवाई। पहले बड़ी अंकुरित हो जाए। समझदार थी, सब समझ-बूझ खोई। लोकलाज गंवाई। तुमने देखा? घास-पात हम उखाड़कर फेंक देते हैं, मैदान तो कोई तो कुछ कहेगा, कोई कुछ कहेगा। उस समय भीतर साफ हो जाता है। लगता है, सब ठीक हो गया। इतनी जल्दी यह याद रखना ही—'मैंने कहा पिया के गांव चली रे।' क्योंकि मत सोच लेना। बीज पड़े होंगे पिछले वर्ष के। वर्षा आएगी, उस पिया को अगर जरा भी विस्मरण किया तो लोगों की बातें फिर घास-पात पैदा हो जाएगा। माली कहते हैं कि एक साल सार्थक मालूम पड़ सकती हैं। क्योंकि लोग जो कह रहे हैं, वह घास-पात पैदा हो जाए तो बारह साल उखाड़ने में लगते हैं। वही कह रहे हैं, जो तुमने भी अतीत में सोचा होता। तो लोग जो मिल जाते हैं भूमि में, उनका पता भी नहीं चलता। कह रहे हैं उससे मिलते-जुलते भाव कहीं गहन में तुम्हारे भी पड़े और यह आश्चर्य की बात है, यहां अगर फूल बोने हों तो खाद | हैं। जब कोई कहता है किसी को, कि क्या पागल हो गए? तो दो, पानी दो, सम्हालो, तब भी पक्का नहीं कि पैदा होंगे। और उसके कहने का थोड़े ही परिणाम होता है! अगर वह आदमी घास-पात उखाड़ो, हटाओ, जलाओ; फिर वर्षा होती है, न चिंतित हो जाता है तो परिणाम इसलिए होता है कि वह भी खाद की जरूरत, न माली की जरूरत, न सूरज की जरूरतः सोचता है कि पता नहीं, पागल हो ही न गया होऊ! घास-पात फिर पैदा हो जाता है। कल ही मुझे एक पत्र मिला। एक दंपति संन्यास लेकर गए। उतार पर चीजें अपने आप हो जाती हैं, चढ़ाव पर कठिनाई है। भोले लोग हैं, पहाड़ से आए थे। पहाड़ का भोलापन है। दोनों उतार पर आदमी दौड़ता चला जाता है। चढ़ाव पर दौड़ना बड़ी मस्ती में गए। लेकिन जब इतनी मस्ती में गए तो गांव के मुश्किल हो जाता है। चढ़ाव में श्रम है। लोगों ने सोचा कि दिमाग खराब हो गया। और दोनों का तो जो भी ऊर्ध्वगामी यात्राएं हैं, उनमें श्रम है। अधोगामी साथ-साथ हो गया। रिश्तेदारों ने जबर्दस्ती इलाज करवाना शुरू यात्राओं में कोई श्रम नहीं है। ध्यान को सम्हालो, कर दिया। कल मुझे पत्र मिला कि हम अस्पताल में पड़े हैं। हम सम्हाल-सम्हाल छूट-छूट जाता है। काम को दबाओ, हटाओ, हंसते हैं तो लोग कहते हैं, शांत रहो, हंसो मत। हंसने की बात मिटाओ, मिटाते-मिटाते भी उभर आता है। घास-पात की तरह क्या है? इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं, ट्रेन्क्विलाइजर दिए जा रहे है। क्रोध को मिटाओ. मिटते-मिटते भी कब उभर पड़ेगा कुछ हैं। हम कहते हैं, हमें तो वैसी ही नींद मस्ती की आ रही है। हम पक्का पता नहीं। करुणा को साधो, साधते-साधते भी कब हाथ तो प्रसन्न हैं, हम नाच-गा रहे हैं, हम कुछ पागल नहीं हैं। से छूट जाएगी कुछ पता नहीं। लेकिन गांव में कोई मानने को तैयार नहीं है। जितना हम इससे यह नतीजा लेना कि जो चीज बिना सम्हाले सम्हल जाती | समझाते हैं कि हम पागल नहीं हैं तो वे कहते हैं, ऐसा तो सभी हो, उससे जरा सावधान रहना। वह घास-पात होने का डर है। पागल कहते हैं। कोई पागल कभी मानता है? तुम चुप रहो। जो सम्हाल-सम्हालकर छूट-छूट जाती हो, उसके लिए परी| हम जानते हैं। चेष्टा करना क्योंकि वहीं खजाना छिपा है। वहीं स्वर्ण-भंडार तो उन्होंने पूछा है, कि अब तो हमें भी शक होने लगा, कहीं है। वहीं जीवन की ऊर्ध्वयात्रा है, उर्ध्वगमन है, तीर्थयात्रा है। यही लोग ठीक न हों। तो अब करना क्या है? 'न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे हमारा भी अतीत इन्हीं तर्कों में जीया है। हमारे भी देखने के चली रे चली रे नाव चली रे ढंग जन्मों-जन्मों तक ऐसे ही रहे हैं। तो जब कोई कहने लगा 443 2010_03
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________________ जिन सुत्र भाग 2 वन यहां चली, कोई कहने लगा वहां चली, तो भीतर याद रखना नहीं सकता भ्रम से। बहुत मुश्किल हो जाता है कि पिया के गांव चली है। क्योंकि इस | इसलिए तो हमने ब्रह्म की परिभाषा में अंतिम बात कही पिया से तो मुलाकात बड़ी नई है। और ये जो लोग कह रहे हैं है-सच्चिदानंद। आनंद आखिरी बात है। सत, चित, यहां चली, वहां चली, इनसे बड़े पुराने संबंध हैं। इनकी भाषा तो | आनंद-आखिरी बात है। जहां से तुम्हें आनंद मिल रहा हो, जानी-मानी है, इस पिया की भाषा तो जानी-मानी नहीं है। फिर दुनिया कुछ भी कहे, तुम फिक्र मत करना। तुम अपने यह पिया का गांव है भी या नहीं? जिसको दिखाई पड़ने आनंद को ही कसौटी मानना, तो ही पहुंच पाओगे पिया के गांव लगता है, उसको भी शक आता है। जिनको नहीं दिखाई पड़ता | तक। नहीं तो बीच में हजार बाधाएं हैं। सारी दुनिया तुम्हें इस उनका शक तो बिलकुल स्वाभाविक है। जिसको पिया का गांव | तरफ खींचेगी। साफ-साफ दिखाई पड़ने लगता है, उसके मंदिर के कलश धूप और सारी दुनिया का इस तरफ खींचना भी अकारण नहीं है। में चमकते दिखाई पड़ने लगते हैं, उसको भी शक होता है कि जब किसी एक व्यक्ति को पिया का गांव दिखाई पड़ता है तो वह कहीं मैं कल्पना तो नहीं कर रहा? क्योंकि वे कलश दूसरों को | बाकी सारे लागों के लिए चिंता का कारण हो जाता है। अगर वह दिखाए नहीं जा सकते। यह कठिनाई है। सही है तो हम सब गलत हैं। जो कहता है, मुझे परमात्मा के पति को दिखाई पड़े तो अपनी पत्नी को भी नहीं दिखला | दर्शन हुए, अगर वह सही है तो बाकी इन चार अरब लोगों का सकता। पत्नी कहती है, अगर वे कलश हैं और पिया का गांव है | क्या? अगर बुद्ध सही हैं तो इन चार अरब बुद्धओं का क्या? तो हमें भी तो दिखाई पड़े। पांच पंचों को दिखाई पड़े तो सत्य है। ये गलत होंगे ही। बुद्धओं को यह बात जंचती नहीं। यह पसंद तुमको दिखाई पड़ने से क्या होता है ? तुम कोई कल्पना के जाल | नहीं पड़ती। कौन अपने को बुद्ध मानना चाहता है ? ये चार में पड़ गए हो। तुम्हें कुछ बुद्धि-भ्रम हुआ है। तुम्हारी बुद्धि, अरब भीड़ की तरह इकट्ठे हो जाते हैं। ये कहते हैं बुद्ध को कुछ तुम्हारा विवेक, तुम्हारे तर्कना की क्षमता क्षीण हुई। तुम किस | भ्रम हुआ होगा। सम्मोहन में पड़ गए हो? जो किसी को नहीं दिखाई पड़ता वह | इसलिए तो जीसस को सूली लग जाती है। सुकरात को जहर तुम्हें दिखाई पड़ रहा है? पिला देते हैं। बुद्ध और महावीर को पत्थर मारे जाते हैं। यह तो जिस व्यक्ति को पिया का गांव दिखाई भी पड़ता है, वह भी अकारण नहीं है, इसके पीछे बड़ा गहरा कारण है। कारण यह है इस जगत में बड़ा अकेला हो जाता है। और यह जगत तो बड़ा | कि अगर तुम सही हो, तो हम गलत हैं। और यह बात मानना लोकतांत्रिक है। यहां तो सत्य का निर्णय भीड़ से होता है। यहां कि हम गलत हैं...और हम ज्यादा हैं, तुम अकेले हो। तुम तो कितने लोग मानते हैं इससे तय होता है कि सत्य है या नहीं! कभी-कभी होते हो। तुम अपवाद-रूप हो, हम नियम हैं। मोगे, जिस दिन तुम्हें पिया का गांव दिखाई। इसलिए मनोवैज्ञानिक तो पागलों को, बुद्धों को, एक ही गणना पड़ना शुरू होगा। उस दिन तुम इतने अकेले हो जाओगे कि तुम्हें में गिनते हैं। दोनों को एबनार्मल कहते हैं। दोनों सामान्य नहीं हैं, खुद ही संदेह पैदा होना शुरू होगा कि पता नहीं, कहीं कोई भ्रांति | कुछ गड़बड़ हैं। पागल को भी एबनार्मल कहते हैं, बुद्ध को भी, तो नहीं हो रही है? मैं किसी भ्रम का शिकार तो नहीं है? उस | महावीर को भी. कष्ण को भी। सामान्य नहीं हैं। कुछ चूके, वक्त याद रखना, बड़ा श्रम मांगता है, बड़ी श्रद्धा मांगता है। इधर-उधर हैं। नियम नहीं हैं, अपवाद हैं। इसे स्मरण रखना। इसे मन में निरंतर दोहराते रहना। इसकी अगर मनोवैज्ञानिकों का बस चले तो वे बुद्धों को भी चिकित्सा बहुत फिकर मत करना कि लोग क्या कहते हैं। एक ही कसौटी | करके ठीक कर देना चाहेंगे। ऐसा हो रहा है। पश्चिम के है-अगर तुम्हें आनंद मिल रहा हो तो तुम फिकर ही मत करना पागलखानों में ऐसे कुछ लोग आज बंद हैं, जो अतीत के दिनों में कि भ्रम है कि सत्य! क्योंकि आनंद लक्ष्य है। मैं तुमसे यह बुद्ध हो गए होते। जिनको बड़ा सम्मान मिलता; कबीर और कहना चाहता हूं कि अगर भ्रम से भी आनंद मिल रहा हो तो तुम दादू और नानक हो गए होते, वे आज पागलखानों में बंद हैं। वह सत्य को फेंक देना कूड़ाघर में, कचरे में। क्योंकि आनंद मिल ही | तो बुद्ध-महावीर ने बड़ा अच्छा किया, जल्दी निकल गए। आज 1444 Jair Education International 2010_03
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________________ पिया का गांव बड़ी कठिनाई में पड़ते। सगमता से निकल गए। लेकिन बुद्ध या महावीर जैसे व्यक्ति की मौजूदगी से बेचैनी पश्चिम में तो अभी भी किताबें लिखी जाती हैं, जिनमें सिद्ध पैदा होती है। और वह बेचैनी यह है कि दो में से एक ही ठीक हो किया जाता है कि जीसस का दिमाग खराब था-न्यूरोटिक। सकता है। या तो हमारी दृष्टि ठीक है या इनका दर्शन ठीक है। और अगर तुम मनोवैज्ञानिक की बात पढ़ो तो बात समझ में तुम्हें और यह स्वाभाविक मालूम पड़ता है कि हमारी दृष्टि ठीक हो, भी आएगी। क्योंकि यह आदमी आकाश की तरफ देखता है क्योंकि हमारी भीड़ है। हम सदियों में भरे पड़े हैं। बुद्ध-महावीर और कहता है, हे पिता!-कौन पिता? इससे पूछो कि कौन | कभी-कभी पुच्छल तारे की तरह निकल जाते हैं-आए, गए! पिता? कहां है? तो यह आकाश की तरफ हाथ बताता है। लेकिन रात के जो स्थायी तारे हैं उनका भरोसा करो। ये किसी को नहीं दिखाई पड़ते। तुम सब सिर उठाओ, किसी को बुद्ध-महावीर तो ऐसे हैं कि बिजली चमक गई। अब बिजली कोई पिता नहीं दिखाई पड़ते। चमकने में बैठकर किताब पढ़ सकते हो? कि दुकान का हिसाब तो इस एक आदमी की आंख पर भरोसा करें? हम सबकी लगा सकते हो? कि खाता-बही लिख सकते हो? किस काम आंखों पर संदेह करें? और अगर हम यह मान लें कि यह ठीक | के हैं? काम तो दीये से ही चलाना पड़ता है। बिजली चमकती है तो हम गलत हैं। तो फिर हम ठीक होने के लिए क्या करें? | होगी, होगी बहुत बड़ी और बड़ी महिमाशाली होगी, लेकिन क्या उपाय करें? उससे बड़ी बेचैनी पैदा होगी। उससे बड़ी | इसका उपयोग क्या है? घबड़ाहट पैदा होगी। __ तो जब तुम्हारे जीवन में कभी पहली झलकें आनी शुरू होंगी __ अगर बुद्ध मापदंड हैं, महावीर मापदंड हैं तो हम एबनार्मल तो बड़ा खतरा पैदा होता है। खतरा यह कि तुम्हारा अतीत भी हैं। तो हम ठीक-ठीक मापदंड पर, कसौटी पर नहीं उतर रहे हैं। कहता है भूल मत जाना, कल्पना में मत पड़ जाना। और भी तो हमारे जीवन में वैसे ही तो चिंता बहुत है, और चिंता बढ़ लोग कहते हैं- 'कोई कहे यहां चली, कोई कहे वहां चली।' जाएगी। और इतने लोगों को कैसे स्वस्थ करियेगा? तुम्हारा अतीत भी कहेगा कहां जा रहे हो? क्या कर रहे हो? इससे ज्यादा सुगम और सीधी बात मालूम यह पड़ती है कि यह सम्हलो! सम्हालो! एक आदमी कुछ विकृत हो गया है। यह कुछ असामान्य है। मैंने कहा पिया के गांव चली रे' अगर लोग भले होते हैं तो इसे स्वीकार कर लेते हैं कि ठीक है, इसे सतत स्मरण रखना। इसे महामंत्र बना लेना। कसौटी तुम भी रहो, कोई हर्जा नहीं। अगर लोग और भी भले हुए तो क्या है पिया के गांव की? कसौटी सिर्फ एक है कि तुम्हारा कहते हैं, तुम अवतार हो, तीर्थंकर हो; हम तुम्हारी पूजा करेंगे, | आनंद भाव बढ़ता जाए, तुम्हारी मगनता बढ़ती जाए, तुम्हारी मगर गड़बड़ मत करो। हम माने लेते हैं कि तुम भगवान हो। एकता बढ़ती जाए, तुम्हारा मन और तुम्हारा हृदय दो न रह जाएं सदा-सदा तुम्हारी याद रखेंगे, लेकिन दखलंदाजी नहीं। तुम एक हो जाएं; तुम्हारा विचार और तुम्हारा भाव इकट्ठा हो जाए, बैठो मंदिर की इस वेदी पर। हम पूजा कर जाएंगे, पाठ कर तुम्हारे भीतर निर्द्वद्वता बढ़ती जाए। जाएंगे, लेकिन बाजार में मत आओ। हमारे जीवन को नाहक है एक तीर जिसमें दोनों छिदे पड़े हैं अस्त-व्यस्त मत करो। हम साधारणजन हैं, तुम अवतारी पुरुष वह दिन गए कि अपना दिल जिगर से जुदा था। , कहां हम। हम तो हमी जैसे होंगे। तुम्हारे जैसा प्रेम का एक तीर, जिसमें हृदय और मन दोनों जुड़ गए हैं। एक कभी कोई हुआ है? तुम तो एक ईश्वर का अवतरण हो इस ही तीर दोनों को छेद गया है। पृथ्वी पर। हम साधारण मनुष्यों को साधारणता से जीने दो। है एक तीर जिसमें दोनों छिदे पड़े हैं अगर लोग भले होते हैं तो ऐसा करते हैं। अगर लोग जरा और वह दिन गए कि अपना दिल जिगर से जदा था तेज-तर्रार होते हैं तो वे कहते हैं, बंद करो बकवास! तुम्हारा | अगर तुम्हें ऐसा अनुभव होता हो कि यह पिया के गांव के दिमाग खराब है। सूली पर लटका देंगे, जहर पिला देंगे। तुम करीब आने से तुम्हारे भीतर के खंड एक दूसरे में गिरकर अखंड पागल हो। बन रहे हैं, टुकड़े-टुकड़े में बंटा हुआ व्यक्तित्व अखंड बन रहा 1445] 2010_03
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________________ - जिन सूत्र भाग 2 है, तो तुम फिक्र मत करना। सारी दुनिया एक तरफ हो तो भी | श्रद्धा बढ़ती हो, और जिससे भी तुम्हें लगता हो, जीवन का चिंता मत करना। | असत हट रहा है और सत बढ़ रहा है, फिर तुम चिंता मत और इस अखंडता से ही आनंद का रस बहता है। जितने तुम करना। फिर तुम बिलकुल अकेले हो तो भी सही हो। खंडित, उतने दुखी। जितने तुम अखंड, उतनी ही रसधार बहती और खयाल रहे, दुनिया में सत्य भीड़ के पास नहीं होता, है। उस आनंद का भरोसा करना। और आनंद बढ़ता जाए, तो कभी-कभी अकेले व्यक्तियों के पास होता है-कभी-कभी! सारी दुनिया कहे तुम पागल हो तो स्वीकार कर लेना कि हम दुर्भाग्य है लेकिन ऐसा ही है। कभी-कभी कोई एकाध विलक्षण पागल हैं। लेकिन हम आनंदित हैं। तुम दुनिया का दुख, चिंता, व्यक्ति सत्य को उपलब्ध होता है। भीड़ तो भेड़-चाल चलती और परेशानी मत चुनना क्योंकि दुनिया कहती है कि वास्तविकता है। भीड़ तो लकीर की फकीर होती है। भीड़ तो दूसरे जहां जा कुछ और है। तुम आनंद को ही वास्तविकता समझना। रहे हैं वहीं चलती है।। लिखे सच्चिदानंद पर, मगर किसी ने भी यह फिक्र नहीं की, कि नमाज पढ़ने बैठा तो उसका कुर्ता, पीछे से एक कोना उठा हुआ सच्चिदानंद का मौलिक अर्थ क्या होगा! ये केवल भगवान के था, धोती में उलझा होगा तो पीछे के आदमी ने कुर्ता खींचकर गुण नहीं हैं, यह साधक की कसौटी भी है। जैसे-जैसे तुम्हारे ठीक कर दिया। मुल्ला ने सोचा कि शायद कुर्ता खींचना इस भीतर सत बढ़े-सत का अर्थ होता है अखंड बनो। तुम्हारी मस्जिद का रिवाज है। तो उसने अपने सामनेवाले आदमी का बीइंग तुम्हारी आत्मा बने। जैसे-जैसे तुम्हारे भीतर चित बढ़े, कुर्ता खींचा। उस आदमी ने पूछा, क्यों जी! किसलिए कुर्ता तुम्हारा चैतन्य बढ़े, बेहोशी घटे, और जैसे-जैसे तुम्हारे भीतर खींचते हो? उसने कहा, मेरे पीछेवाले से पूछो। मुझे कुछ पता आनंद बढ़े...। नहीं। मैं तो समझा कि यहां का रिवाज है। ये परमात्मा के ही गुण नहीं हैं, ये साधक के रास्ते के लिए तुम न मालूम कितने लोगों के कुर्ते खींच रहे हो! क्योंकि मापदंड हैं, कसौटी हैं। जैसे सुनार सोने को कसने के लिए एक तुम्हारा कुर्ता खींच दिया गया है। तुम सोचते हो, यहां का रिवाज पत्थर रखता है, उस पर कसता रहता है। कसकर देख लेता है, है। तुम सौ में से निन्यानबे काम ऐसे कर रहे हो जो कि तुम देखते सोना है या नहीं। तुम सच्चिदानंद के पत्थर पर कसकर देखते हो दूसरे कर रहे हैं। किसी ने कहा, फलां फिल्म अच्छी चल रही रहना। कोई भी अनुभव हो! आनंद देता हो, चैतन्य बढ़ता हो, | है-चले! खीच दिया किसी ने कुतो। खड़े हैं क्यू में, खीच रहे सत्य बढ़ता हो, तुम्हारे जीवन का अस्तित्व मजबूत होता हो, बल हैं दूसरों का कुर्ता। आता हो, आत्मा सघन होती हो, तुम ज्यादा केंद्रित होते हो, फिर तुम अपनी बुद्धि से कभी जीयोगे? फैशन ऐसे बदलते रहते फिक्र छोड़ देना। हैं। जीवन के ढंग ऐसे बदलते रहते हैं। बस चल पड़ती है एक उपनिषद के ऋषियों की बड़ी प्रसिद्ध प्रार्थना है : बात। कोई चला दे! उसका सतत प्रचार करता रहे, चल पड़ती 'असतो मा सदगमय। है। पकड़ा दे। इसीलिए तो विज्ञापन का इतना प्रभाव हो गया तमसो मा ज्योतिर्गमय। दुनिया में। पश्चिम के विकसित मुल्कों में जो चीज बाजार में दस मृत्योर्माअमृतं गमय।' साल बाद आएगी, दस साल पहले विज्ञापन शुरू हो जाता है। असत से सत का ओर। वह जो भ्रामक है, प्रतीति मात्र है, अभी वह चीज आयी भी नहीं बाजार में। आएगी भी कभी, यह आभास मात्र है, उससे उसकी ओर-जो भ्रामक नहीं, प्रतीति | भी पक्का नहीं। दस साल बाद का क्या पक्का है? लेकिन दस नहीं, आभास मात्र नहीं। अंधकार से ज्योति की ओर। और साल पहले बाजार में काम शुरू हो जाता है, विज्ञापन शुरू हो मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो, हे प्रभ! जाता है। क्योंकि पहले बाजार पैदा करना पड़ता है। तो तम्हारे भीतर जिससे भी ज्योति बढती हो. अंधेरा कम होता बाजार तम कैसे पैदा करते हो? पराने अर्थशास्त्री कहते थे कि | हो; और जिससे भी मृत्यु का भय कम होता हो और अमृत की जहां-जहां मांग होती है वहां-वहां पूर्ति होती है। जब लोगों की 1446 2010_03
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________________ पिया का गांव जरूरत होती है तो कोई न कोई पूर्ति करनेवाला पैदा हो जाता है। जन्मता खूब, मरता खूब, पहुंचता कहीं नहीं। धक्कम-धुक्के ही अब हालत बदल गई। अब तो पहले मांग पैदा करो। मांग हो खाता रहता है। धीरे-धीरे धक्का-धुक्के की ऐसी आदत हो या न हो इसकी फिक्र ही छोड़ो। अब तो ऐसा है, पूर्ति है तो मांग | जाती है कि वह चैन से बैठ ही नहीं सकता अकेला, जब तक पैदा की जा सकती है। | भीड़ में न पड़ जाए। जब भीड़ उसे पीसने लगती है सब तरफ अमरीका में आज से दस साल पहले तक वे कहते थे, जिस | से, तभी उसको लगता है जीवित है। आदमी के पास कार नहीं, वह भी कोई आदमी है? अब सब सत्य का मार्ग अकेले का मार्ग है। वह एकांत का मार्ग है। आदमियों के पास कार हो गई। अब क्या करना? क्योंकि कार भीतर जाना है। जो भी चीज बाहर ले जाती है, वह तुम्हें अपने से की फैक्ट्रियां चल रही हैं, उनको चलना ही है। तो अब हर दूर ले जाएगी। जो भी तुम्हारे मन में किसी वासना और तृष्णा को आदमी के पास कम से कम दो कार होनी चाहिए। ऐसा तीन पैदा करती है, वह तुम्हें अपने घर से दूर ले जाएगी। साल पहले तक वे कहते थे कि जिस आदमी के घर में दो कार को तो शुभ है कि ऐसा भाव जगे, कि न अब कुछ पाना है, न कुछ रखने का गैरेज नहीं है वह भी कोई आदमी है! वह भी बात बदल होना है, न कुछ जानना है। इसी गहन भाव में डूबो। डूबकर गई क्योंकि फैक्ट्रियों को तो चलना ही है। अब लोगों के पास अपने ही भीतर जो सब पाने का पाना है, वह पा लिया जाता है। दो-दो कारें भी हो गईं। अब वे कहते हैं चार कार का गैरेज होना जो सब जानने का जानना है, वह जान लिया जाता है। जो सब चाहिए। नए साल के विज्ञापन कह रहे हैं कि चार कार का गैरेज होने का होना है वह हो लिया जाता है। होना चाहिए। चार कार नहीं हैं? तुम भी कोई आदमी हो? तीन आ जाओ कि अब खल्वते-गम खल्वते-गम है हों तो बेचैनी मालूम होगी; चार होनी चाहिए। अब तो दिल के धड़कने की भी आवाज नहीं है हर आदमी के पास कम से कम दो मकान होने चाहिए-एक इन पंक्तियों का अर्थ है कि अब तो केवल दुख का एकाकीपन शहर में, एक जंगल में, या पहाड़ पर, या समुद्र के किनारे। है, अकेलापन है। अब तो दिल भी नहीं धड़कता। अब आ विज्ञापन जोर से करते रहो, लोगों के मन पकड़ लिए जाते हैं। | जाओ! लोगों के मन चलने लगते हैं। बस उनके दिमाग में दोहराते रहो यह निश्चित ही किसी पार्थिव प्रेम के लिए कही गई होंगी। कि ऐसा होना चाहिए। जितना दोहराओ, उतने ही असत्य सत्य आ जाओ कि अब खल्वते-गम खल्वते-गम है मालूम होने लगते हैं। जिनको तुम सत्य मानते हो वे केवल | कि अब तो केवल उदासी और दुख का अकेलापन ही बचा दोहराए गए असत्य हैं। है। अब तो इतना भी कोई साथ देने को नहीं है। अपना दिल भी जब उपनिषद के ऋषि कहते हैं, 'असतो मा सदगमय', तो वे नहीं धड़कता। वह भी साथी न रहा। ऐसा गहन अकेलापन हो यह कह रहे हैं कि ये सत्य तो जो बाहर से सुनाई पड़ रहे हैं, बहुत गया है। अब दिल के धड़कने की भी आवाज नहीं है। सुन लिए। इनसे तो कुछ सत्य मिलता नहीं; अब तो हमें | लेकिन जो परमात्मा की तरफ जा रहा है, जो पिया के घर की वास्तविक सत्य की तरफ ले चलो। ये तो दोहराए हुए झूठ हैं। तरफ जा रहा है, उसका एकाकीपन खल्वते-गम नहीं है। उसका काफी दिनों से दोहराए जा रहे हैं, लोगों को भरोसा आ गया है। एकाकीपन बड़ा आनंदमग्न, अहोभाव से परिपूर्ण है। नाचता तुम जरा अपने जीवन की व्यवस्था और शैली का विश्लेषण हुआ, खिला हुआ है, सुगंधित है। करना। क्यों ऐसे कपड़े पहने हुए हो? क्यों एक खास मार्के की भक्त भगवान को यह नहीं कहता कि मैं बड़ा उदास हूं, बड़ा सिगरेट पीते हो? क्यों एक खास ढंग से चलते-उठते-बैठते दुखी हूं, आ जाओ। दुख में भी क्या बुलाना! भक्त कहता है, हो? विश्लेषण करोगे तो तुम पाओगे, तुम सिर्फ अनुकरण कर अब देखो कैसा नाच रहा! देखो कैसा गुनगुना रहा हूं! देखो रहे हो। और जो अनुकरण कर रहा है, वह परमात्मा तक कभी कैसे फूल खिले हैं, अब तो आ जाओ! कैसा मस्त हूं! कैसा नहीं पहुंचता। वह भीड़ में धक्के-मुक्के खूब खाता है। तुम्हें पीकर मगन हो रहा हूं! दूर से ही तुम्हें देख रहा हूं और मस्ती इसी धक्कम-धुक्की को भारतीयों ने कहा है आवागमन। में डूबा जा रहा हूं। अब तो आ जाओ। 447 ___ 2010_03
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________________ जिन सूत्र भाग: 2 भक्त का एकाकीपन बड़ा आनंदमग्न है। वहां भी दिल के प्रेम की बड़ी अनूठी दुनिया है। वहां भक्त देने को गया है। धड़कने की आवाज नहीं है। आनंद में डूब जाती है दिल के वहां भक्त अपने को न्योछावर करने को गया है। लेकिन तुम धड़कने की आवाज। सब आवाजें आनंद में डूब जाती हैं। प्रेम अपने को दे तभी सकते हो, जब तुम हो। और तुम न्योछावर के सागर में सब डूब जाता है। तभी कर सकते हो, जब तुम्हारे पास कुछ हो। तुम्हारे पास सख ध्यान रखना, परमात्मा को कभी दुख में मत बुलाना। दुख में के फल हों तो ही तुम उसके चरणों में चढ़ा सकोगे। वक्षों के तो सभी बुलाते हैं, इसीलिए तो आता नहीं। दुख भी कोई मौका फूलों को तोड़कर कब तक अपने को धोखा दोगे? ये फूल है बुलाने का? दुख में सभी याद करते हैं, रोते हैं, बिसूरते हैं कि उसके चरणों में चढ़े ही हुए हैं। उनको वृक्ष से तोड़कर तुम उसके आ जाओ, इतना दुखी हो रहा हूं। लेकिन दुख कोई आने की चरणों से छीन लेते हो। चढ़ाते नहीं, मार डालते हो। जिंदा थे, घड़ी ही नहीं है। वसंत में बुलाना, सुख में बुलाना। और तुम मार डाले। जीवंत थे, हवाओं में नाच रहे थे, तुमने तोड़कर नाच पाओगे वह चला आ रहा है। जैसे तुम नाच रहे हो, वैसा ही छीन लिया। अभी और खिलते, खिलना छीन लिया। तुमने नाचता वह भी चला आ रहा है। | परमात्मा के चरणों से हटा लिया और गए और किसी मंदिर की सुख में ही मिलन होता है। तुम जितने सुखी हो जाओ उतना मुर्दा पत्थर की मूर्ति पर जाकर चढ़ा आए। खूब धोखा दे रहे हो! मिलन आसान हो जाएगा। परमात्मा भी दुखियों से बचता है, किसको धोखा दे रहे हो? खयाल रखना। दुख दूरी है। कौन किसके दुख में साथ खड़ा अपने आनंद के फूल जब चढ़ाओगे, तो ही उसके चरणों पर होता है? लेकिन लोग दुख में ही उसे बुलाते हैं। दुख की चढ़ते हैं। और तब किसी मंदिर में जाने की जरूरत नहीं। तुम आवाज उस तक नहीं पहुंचती। पहुंचनी भी नहीं चाहिए क्योंकि जहां हो, उसके चरण तुम्हें खोजते हुए वहीं आ जाते हैं। तुम्हारे दुख की आवाज बेईमान है। तुम परमात्मा को थोड़े ही बुला रहे हाथ बस फूलों से भरे हों, उसके चरण तुम्हें खोजते हुए निश्चित हो! तुम सुख को बुला रहे हो। तुम कहते हो इतना दुखी हूं। आ ही आ जाते हैं। जा, तो थोड़ा सुखी हो जाऊं। तुम्हारी प्रतीक्षा सुख की है। जब तुम सुख में परमात्मा को बुलाते हो तो तुम परमात्मा को ही दूसरा प्रश्न : जैन दर्शन कहता है कि इस आरे में मोक्ष संभव बुलाते हो, क्योंकि सुख तो आ ही गया है। जब कोई सुख में | नहीं है। बार-बार मेरी समकीत का वमन या उपशम होने का प्रार्थना करता है तो उसकी कोई मांग नहीं होती। उसकी प्रार्थना | क्या यही कारण तो नहीं है? मोक्ष यहीं और अभी है इस मांग-मुक्त होती है। क्योंकि मांगने को क्या है? जब दुख में | धारणा को पकड़ लेना क्या एक आत्मवंचना नहीं है? प्रार्थना करते हो तो क्षुद्र मांगें उठती हैं। भक्त तो कहता है जैन दर्शन क्या कहता है इसका कोई मूल्य नहीं है। जिन क्या तू जो कहे तो दिल भी दूं, जान भी , जिगर भी दूं कहते हैं इसका मूल्य है। जैन दर्शन तो पंडितों ने निर्मित किया। गो मैं गदाए-इश्क हूं मुझको न बेनवां समझ पंडित तो बड़ी तरकीबें खोजता है। एक तरकीब सदा से पंडित यद्यपि मैं प्रेम का भिखारी हूं, लेकिन मुझे कंगाल मत | की रही। वह सदा यह कहता है कि जो अतीत में संभव था, वह समझना। भक्त भगवान से कहता है। माना कि तेरे द्वार पर | अब संभव नहीं है। भीख मांगने के लिए खड़ा हूं लेकिन मुझे कंगाल मत समझना। मुसलमान कहते हैं-मुसलमान पंडित—कि पैगंबर अब तू जो कहे तो दिल भी दूं, जान भी दूं, जिगर भी दूं नहीं होंगे। जो मोहम्मद के लिए संभव था, वह अब किसी और गो मैं गदाए-इश्क हूं के लिए संभव नहीं है। -प्रेम का भिखारी हूं। अगर ऐसा ही है तो परमात्मा बड़ा कृपण मालूम होता है, बड़ा मुझको न बेनवां समझ कंजूस मालूम होता है। एक मोहम्मद को पैदा करके चुक गया? —लेकिन मुझे कंगाल मत समझ; देने को आया हूं। बहुत बांझ मालूम होता है। और अन्यायी भी मालूम होता है। 1448 2010_03
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________________ पिया का गांव क्योंकि किसी काल में पैदा किया और अब नहीं करता। यह वह सब गिरा देता है। जहां-जहां तुमने तरकीबें निकाल रखी बात व्यर्थ मालूम होती है। इसके पीछे कारण कुछ और है। थीं, उन सब तरकीबों के प्राण खींच लेता है। जहां-जहां तुमने मुसलमान पंडित नहीं चाहता कि अब किसी और को मोहम्मद | धोखे बना रखे थे, उन सब धोखों को उघाड़कर नग्न कर देता है। स्वीकार करे, किसी और को पैगंबर स्वीकार करे। क्योंकि एक वह तुम्हारी सारी आत्मवंचना तोड़ देता है। ही पैगंबर काफी अस्त-व्यस्त कर गया। उसी को तो ईसाई ठीक ही कहते हैं कि आखिरी...! बस अब बहत हो सम्हाल-सम्हालकर व्यवस्थित करने में इतना समय लग गया, | गया। अब और दुबारा नहीं। जैन कहते हैं, महावीर चौबीसवें तब तो उस पर कब्जा कर पाए। तब तो उसको बांधकर, जंजीरों तीर्थंकर-बस खतम! अब आगे नहीं। में डालकर मस्जिद में कैद कर पाए। कुरान की पोथी में बंद कर यह रोक लेने की प्रवृत्ति करीब-करीब दुनिया के सभी धर्मों में पाए बामुश्किल। अब फिर कोई निकल आए, फिर सब गड़बड़ है। लेकिन समय से मोक्ष का क्या संबंध? इतना मैं मानता हूं हो जाए। पंडित बड़ी मुश्किल से व्यवस्था जुटा पाता है। कि कुछ समय होते हैं, तब मोक्ष थोड़ा आसान; और कुछ समय ईसाई कहते हैं कि जीसस अकेले बेटे हैं परमात्मा के। कोई होते हैं, तब थोड़ा कठिन। लेकिन असंभव कभी भी नहीं। कुछ दूसरा बेटा नहीं—इकलौते बेटे! और बाकी ये सब लोग क्या समय निश्चित होते हैं, जब मोक्ष थोड़ा आसान है। हैं? यह सारा अस्तित्व फिर क्या है, अगर जीसस अकेले बेटे हर चीज के लिए यह सही है। वर्षा में वृक्षों का बढ़ना आसान हैं? यह सारा अस्तित्व उसी से पैदा हुआ है। वह बाप सिर्फ है। गर्मी में थोड़ा कठिन हो जाता है, लेकिन असंभव नहीं। जीसस का नहीं हो सकता, सभी का है। समानरूपेण सभी का | अगर पानी सींचने की व्यवस्था की तो गर्मी में भी बढ़ेंगे। ऐसे ही बढ़ेंगे। कोई बाधा नहीं है। और जीसस निरंतर दोहराते रहे कि जो मेरा पिता है वह तुम्हारा | ___ मनुष्य की जीवन-यात्रा में भी ऐसे बहुत-से पल आते हैं, जब भी पिता है। लेकिन ईसाई पंडित दोहरता है कि नहीं, इकलौते मोक्ष आसान हो जाता है। खासकर उन क्षणों में, जब बुद्ध या बेटे। क्यों? क्योंकि बामुश्किल वह इंतजाम जमा पाया दो | | महावीर जैसा व्यक्ति मोक्ष को उपलब्ध होता है, तो वह द्वार हजार साल में। दो हजार साल में जीसस को मिटाने में वह खोलकर खड़ा हो जाता है। उस वक्त जिनकी थोड़ी भी हिम्मत सफल हो पाया। लीप-पोत डाला उसने सब। जो भी क्रांति की होती है, साहस होता है, वे मोक्ष की यात्रा पर गतिमान हो जाते संभावना थी, सब समाप्त कर दी। दो हजार साल लग गए इस हैं। अगर महावीर जैसे व्यक्ति की मौजूदगी में भी तुम्हारे भीतर एक आदमी के अंगार को बुझाने में या राख से ढांकने में। अब | साहस पैदा नहीं होता तो जब महावीर जैसा व्यक्ति तुम्हें न फिर कोई अंगार हो जाए, फिर कोई उदघोषणा कर दे, फिर झंझट मिलेगा, तब तुममें साहस पैदा होगा इसकी आशा करना कठिन पैदा हो। यहदियों ने इसीलिए जीसस को मारा कि इस आदमी ने है। तब तुम धारे के साथ बह सकते हो। महावीर एक लहर की उपद्रव खड़ा कर दिया। तरह हैं। हवा जा रही है दूसरे किनारे की तरफ, तुम नाव में पाल जाग्रत पुरुष विद्रोही होगा ही। जाग्रत पुरुष ऐसी बातें कहेगा | बांध दो और छोड़ दो; पतवार भी नहीं चलानी पड़ती। ही, जो अंधों के समाज को बेचैन करेंगी। जाग्रत पुरुष इस तरह तो अनुकूल समय होते हैं, प्रतिकूल समय होते हैं, यह बात की जीवन दिशा देगा ही. जिससे भीड-भडक्का में चलनेवाले सच है। अनकल देश होते हैं. प्रतिकल लोग बड़ी दुविधा में पड़ेंगे, अब क्या करें! उम्र होती है, प्रतिकूल उम्र होती है। सुअवसर होते हैं, जिनका क्योंकि जाग्रत पुरुष विकल्प देता है। और जाग्रत पुरुष एक | कोई उपयोग कर ले तो जल्दी घटना घट जाए। कठिन अवसर वैकल्पिक समाज भी देता है। वह कहता है, यही एकमात्र मार्ग होते हैं। लेकिन असंभव है इस आरे में किसी व्यक्ति का मोक्ष नहीं है, जिस पर तुम चल रहे हो। यह तो कोई मार्ग ही नहीं है। पाना, यह बात फिजूल है। क्योंकि परमात्मा के लिए सब समय और जाग्रत पुरुष का बल, उसकी चुंबकीय शक्ति सब चीजों को समान हैं। और तुम जानकर चकित होओगे, यह धारणा सभी अस्त-व्यस्त कर जाती है। जहां-जहां तुमने घरगूले बना रखे थे, | कालों में रही है। जीसस को यहूदियों ने कहा कि तुम पा नहीं 449 ___ 2010_03
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________________ जिन सूत्र भागः2 लिए हो। महावीर को सभी ने थोड़े ही तीर्थंकर स्वीकार कर में क्यों ले जाना? अगर समाधि बार-बार चूक जाती है तो भूल लिया था। बहुत थोड़े-से लोगों ने स्वीकार किया था। अधिक ने खोजो। कहीं चूक कर रहे हो, उसे खोजो। कुछ रूपांतरण तो यही कहा कि सब बकवास है। बुद्ध को सभी ने थोड़े ही | करो। मार्ग खोजो, अगर बीहड़ में खो गए हो। स्वीकार किया था। अधिक तो हंसे और अधिक ने कहा कि सब / लेकिन जो आदमी जंगल में खो गया हो, वह कहने लगे, इस बातचीत है, सब कल्पना का जाल है, कविता है। पंचम काल में कहीं मार्ग मिलता है ? बैठ जाए। तो शायद मार्ग इस समय में भी घटना घट सकती है। इस समय में भी मोक्ष दो वक्षों के पार ही हो. जरा-सी झाडी की ओट में पडा हो तो भी को उपलब्ध व्यक्ति हैं। ऐसा तो कभी नहीं हुआ कि मोक्ष को चूक जाएगा। उपलब्ध व्यक्ति न हों। कभी कम, कभी ज्यादा, यह बात सच और इस तरह के खतरनाक तर्क स्वयंसिद्ध हो जाते हैं। जब है। कभी हजारों की संख्या में भी एक साथ, कभी उंगलियों पर वह बैठ जाएगा और चलेगा नहीं, मार्ग खोजेगा नहीं, कहेगा कि गिने जा सकें। पंचम काल में कहीं हो सकता है? कलियुग में कोई मोक्ष को आज उंगलियों पर गिने जा सकें इतने ही व्यक्ति मोक्ष को गया है? ये बातें होती थीं पहले, सतयुग में। अब कहां? यह उपलब्ध हैं। लेकिन मार्ग रुका नहीं। संकरा भला हो, चलने में तो अंधेरे का समय है। अब कहां? यह तो भटकने का, पाप का थोड़ा दुर्गम भी हो। युग है। अब कहां? लेकिन जिसने पूछा है, उसके पूछने का क्या कारण होगा? ऐसा सोचकर बैठ गया तो फिर होगा नहीं। और जब होगा | पूछा है : 'जैन दर्शन कहता है इस आरे में मोक्ष संभव नहीं है।' | नहीं तो वह सोचेगा, निश्चित ही जो मैं सोचता था, जो मैंने सुना अगर मोक्ष भी समय पर निर्भर हो तो क्या खाक मोक्ष रहा। था कि इस आरे में मोक्ष नहीं होता, बिलकुल ठीक है। शत मोक्ष का मतलब है स्वतंत्रता। अगर स्वतंत्रता भी शर्तबंद हो कि प्रतिशत ठीक है। जैसे-जैसे वह यह सोचता जाएगा, वैसे-वैसे कभी हो सकती है और कभी नहीं हो सकती तो मोक्ष भी बंधन ही | मिलना असंभव होता जाएगा। यह तो दुष्टचक्र हो जाएगा। उसे मिलेगा। पाना चाहनेवाला होना चाहिए। पाने की अदम्य | समय नहीं है, जब मोक्ष संभव न हो। हां, ऐसा हो सकता है चाह होनी चाहिए। कभी कठिन, कभी सरल। कठिन और सरल भी मोक्ष के कारण 'बार-बार मेरी समकीत का उपशम या वमन होने का क्या नहीं, लोगों की मनोदशाओं के कारण।। यही तो कारण नहीं है?' कोई युग होता है, बड़ा आत्यंतिक रूप से भौतिकवादी होता जरा भी नहीं। जिसने पछा है वह कह रहा है कि मेरा ध्यान है। लोग मानते ही नहीं कि जीवन के बाद कोई जीवन है। लोग बार-बार चूक जाता है, मेरी समाधि बार-बार छूट जाती है, मानते ही नहीं कि आत्मा जैसी कोई वस्तु है। लोग मानते ही नहीं इसका कारण यही तो नहीं? तो तरकीब खोज रहे हो तुम, कि कि परमात्मा है। तो स्वभावतः कठिन हो जाता है। आरे में तरकीब मिल जाए, समय में तरकीब मिल जाए। यह जब लोग मानते हैं और श्रद्धा का वातावरण होता है कि आत्मा पंचम काल, कलियुग, इसमें कहीं मोक्ष हुआ है? तो तुमको है, परमात्मा है और खोजना है...। तुम्हारे घर में अगर तुम मान राहत मिल गई। तुमने कहा, तो फिर हमारी कोई गलती नहीं है। ही लो कि खजाना नहीं है तो खोज बंद हो जाती है। मिलने की हम तो ध्यान ठीक ही साध रहे थे। अब समय ही प्रतिकूल है तो संभावना कम हो जाती है। खजाना अपने आप ही निकल आए हम क्या कर सकते हैं? तो बात अलग; अन्यथा मिलेगा कैसे? कभी भूल-चूक से गिर नहीं, इस तरह अपना दायित्व समय पर मत छोड़ो। क्योंकि पड़ो खजाने पर, बात अलग, अन्यथा मिलेगा कैसे? लेकिन जो अगर समय पर तुमने दायित्व छोड़ दिया तो जो संभव था वह | मानता है कि खजाना है, वह खोजता है। मान्यता से खोज फिर निश्चित ही असंभव हो जाएगा। अगर समाधि चूक-चूक निकल आती है। खोज से संभावना सुगम हो जाती है। जाती है तो कहीं तुम्हारी भूल है। सीधी-सी बात को इतने जाल | मैं तुमसे कहता हूं, मोक्ष संभव है। क्योंकि मोक्ष तुम्हारी 450 2010_03
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________________ पिया का गांव आत्यंतिक दशा है। इसका समय से कुछ लेना-देना नहीं। मोक्ष ही नहीं; क्योंकि दूसरे पंडितों ने उनको समझाया है कि इस आरे तुम्हारा ही स्वभाव है, इसे उघाड़ने की जरूरत है। मोक्ष तुम में संभव ही नहीं है। लेकर ही आए हो। थोड़े पर्दे पड़े हैं। पर्दे हटाने हैं। यह तो बड़ा उपद्रव का जाल है। एक आदमी किनारे बैठा है तो इस तरह की झूठी बातों में मत पड़ना। हालांकि इस तरह और कहता है, यह नदी अथाह है। इसमें कोई थाह ले ही नहीं की झूठी बातें पकड़ने का बड़ा रस है मन को। क्योंकि तब झंझट | सकता। उससे तुम पूछोगे, तुमने ली? मिटी, श्रम मिटा, साधना गई। अब कोई जरूरत न रही। अब | तुमने कोशिश की? कम से कम तुम डुबकी लगाए? वह तुम जो करना है करो। इस आरे में मोक्ष होता नहीं। | कहता है, डुबकी लगाने से सार क्या है? हमसे पहले कोई बैठा तम्हारी समाधि अगर चक रही है तो तम्हारी समाधि में भल | था, वह कह गया यह अथाह है। उससे पछा था कि डबकी है। अगर दो और दो पांच हो रहे हैं तो फिर से गणित करो। या | लगाई थी? उसके गुरु उसको बता गए थे कि डुबकी व्यर्थ है। दो और दो तीन ही रह जाते हैं, फिर से जोड़ो। यह कहकर मत | मैं तुमसे कहता हूं, वही आदमी हकदार है कहने का जिसने बैठ जाओ कि होगा नहीं। | डुबकी लगाई हो। और बड़े मजे की बात यह है, जिसने भी तो जिनने भी तुम्हें ऐसा समझाया है कि होगा नहीं, वे धर्म के | डुबकी लगाई, उसने पा ही लिया। किनारे पर बैठनेवाले लोग दुश्मन हैं। क्योंकि धर्म की इससे बड़ी दुश्मनी क्या होगी कि कोई | पाने के श्रम से बचना चाहते हैं, लेकिन यह भी नहीं मानना समझा दे कि अब मोक्ष असंभव है? वह तो तुम्हें हताश कर चाहते कि हम काहिल हैं, सुस्त हैं, अलाल हैं, तामसी हैं। समय देगा। वह तो तुम्हारे भीतर से आशा का सारा दीया बुझा देगा। पर दोष टाल देते हैं। समय ही खराब है। इस समय में इस नदी वह तो तुमसे सारी किरण छीन लेगा, उत्साह छीन लेगा। की थाह नहीं मिल सकती। नदी की थाह है तो कभी भी मिल पूछा है : 'मोक्ष यहीं और अभी, इस धारणा को पकड़ लेना | सकती है। डुबकी लगानेवाला चाहिए। क्या एक आत्मवंचना नहीं है?' | मैं तुमसे कहता हूं, मिल सकता है; क्योंकि मिला है। अगर आत्मवंचना इस धारणा को पकड़ना है कि मोक्ष अभी नहीं हो चूक होती हो तो अपनी चूक सुधारो। सकता। अभी और यहीं हो सकता है, इससे तो कोई हानि | मैं तो तुमसे कहता हूं, ईश्वर अगर न भी हो तो भी फिक्र मत होनेवाली नहीं है। नहीं हुआ तो नहीं हुआ। हो गया तो द्वार खुले करो। खोजो। होना जरूरी नहीं है खोज के लिए, है ऐसी आस्था स्वर्ग के। भर जरूरी है। खोजो। अगर नहीं होगा तो पता चल जाएगा, अगर खजाना घर में दबा पड़ा है, मैं कहता हूं, खोजो। अगर नहीं है। लेकिन उस पता चलने में भी तुम्हारे जीवन में बड़ा नहीं मिला तो भी क्या खोया? खोजने में थोड़े हाथ-पैर मजबूत आविर्भाव हो जाएगा चैतन्य का। ही हो जाएंगे, और कुछ भी न होगा। अगर मिल गया तो मिला। खुदा न सही आदमी का ख्वाब सही लेकिन तम अगर बैठे रहे और न खोजा तो पड़ा भी रहे खजाना, कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए तो भी नहीं मिलेगा। क्या फिक्र करनी कि ईश्वर नहीं है। न सही। चलो, आदमी __ मैं तुमसे कहता हूं: जीवन को सदा विधायक दृष्टि से देखो, | का सपना सही। नकारात्मक दृष्टि से नहीं। खोजकर देखो। मुझे खोजकर मिला | कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए। है, इसीलिए तुम्हें भी मिल सकता है। मैं तुम्हारा समसामयिक कोई सुंदर सपना तो सही! उस सुंदर सपने के सहारे तुम सुंदर हूं। तुम्हारे सामने बैठा हूं। उसी समय में, उसी जगह में, जहां हो जाओगे-चाहे सपना हो या न हो। उस सुंदर सपने को तुम हो। | देखते-देखते तुम सुंदर हो जाओगे-चाहे कोई खुदा हो न हो। जो पंडित तुमसे कह रहे हैं कि इस आरे में संभव नहीं है, उनसे फूलों की तलाश करनेवाला फूलों जैसा हो जाता है। क्योंकि पूछो, क्या तुमने पूरी कोशिश कर ली? क्या तुमने आखिरी हम जो खोजते हैं वैसे हो जाते हैं। सुगंध का खोजी सुगंध से भर कोशिश कर ली? तो तुम अकसर पाओगे उन्होंने कोशिश की जाता है। सत्य का खोजी, सत्य हो या न हो, सत्य हो जाता है। 1451 2010_03
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________________ जिन सूत्र भाग : 2 - हम जो खोजते हैं वही हो जाते हैं। संभव है कल बोले भी तो स्वीकार न हो तुम कभी गौर से देखो। धन खोजनेवाले आदमी को तुम गौर | यह भी मुमकिन है, कल रूठने-मनाने को से देखो। उसकी शक्ल पर वैसी ही भावदशा बन जाती है जैसी यह रात न हो, यह बात न हो, यह प्यार न हो रुपयों पर होती है—वैसी ही घिसी-पिटी, चली-चलाई, हजार | हरेक भक्ति के साथ चल रही विरक्ति हाथ में गुजरी, घिनौनी। कंजूस आदमी के चेहरे को देखो। वैसा | हरेक राग का आंचल पकड़े है विराग ही चेहरा लगने लगता है। जैसा घिसा-पिसा रुपया। कई हाथों खिड़की पर ऐसे ही फिर न घटा अंगड़ाएगी से चल-चलकर चिकना हो गया। तेल-सा बहता मालम होता करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो है चेहरे से। यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा कामी आदमी को देखो। तो उसकी आंखों में एक कामना का भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो ज्वर, एक बुखार, एक उत्ताप। जिसने गाया है, शायद सांसारिक प्रेम के लिए गाया है, लेकिन परमात्मा के खोजी को देखो, परमात्मा है या नहीं छोड़ो। परमात्मा के प्रेम के लिए भी बात इतनी ही सही है। क्योंकि बिना खोजे पता भी कैसे चलेगा कि है या नहीं-छोड़ो। करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो लेकिन परमात्मा के खोजी को देखो। परमात्मा न हो, परमात्मा यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा के खोजी तो हैं: उनको देखो। परमात्मा हो या न हो, वे धीरे-धीरे भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो परमात्म-रूप हो जाते हैं। अभी के अतिरिक्त कोई और 'कभी' है भी नहीं। कभी पर खुदा न सही आदमी का ख्वाब सही टाला तो सदा के लिए टाला। कहा 'कल', तो फिर कभी कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए संभव न हो सकेगा। यही समय है तुम्हारे पास। पंचम काल और कल पर मत टालो क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं। जो कहो, कलियुग कहो, भ्रष्ट, पतित, पापी-मगर यही समय है करना है आज कर लो। जो करना है अभी कर लो। क्योंकि तुम्हारे पास। इससे अन्यथा तुम्हारे पास कोई काल है नहीं। अभी के तुम मालिक हो। कल के तुम मालिक नहीं। यही समय कीचड़ में ही पड़े हो माना; लेकिन कमल कीचड़ में ही पैदा तुम्हें मिला है। बंधन चाहो तो हो सकता है। मोक्ष चाहो तो हो | होते हैं। कीचड़ को दोष मत देते रहो, कमल होने की चेष्टा सकता है। | करो। और ध्यान रखो, महावीर के समय में सभी महावीर न थे। अब यह बड़े मजे की बात है। बंधन तो पहले भी होता था, | सभी कीचड़ कमल नहीं हो गए थे। और आज भी सभी कीचड़ बंधन अब भी होता है। मोक्ष पहले ही होता था, मोक्ष अब नहीं | कीचड़ नहीं हैं। आज भी कीचड़ में कोई कमल खिला है। होता। यह तर्क जरा जंचता नहीं। बीमारी पहले भी होती थी, लेकिन अगर तुमने एक बार यह मान लिया कि आज हो ही नहीं स्वास्थ्य पहले भी होता था, बीमारी अब भी होती है, स्वास्थ्य | | सकता तो महावीर भी तुम्हारे सामने खड़े हो जाएं, तुम कहोगे अब नहीं होता। जो आदमी बीमार हो सकता है, वह स्वस्थ क्यों किसी ने स्वांग भरा है। महावीर हो ही नहीं सकते। नहीं हो सकता? और जिस आदमी के हाथ में जंजीरें पड़ सकती| मगर यह तुम्हारी दृष्टि महावीर को कोई नुकसान नहीं हैं, वह जंजीरें क्यों नहीं तोड़ सकता? | पहंचाती, तम्हीं को नुकसान पहंचाती है। अगर महावीर नहीं हो जब कारागृह के भीतर आने का उपाय है तो जिस दरवाजे से सकते तो फिर तुम गए। फिर तुम्हारा कोई भविष्य नहीं। फिर भीतर आया जाता है, उसी से तो बाहर भी जाया जाता है। जब तुम किसलिए हो? फिर तुम्हारा कोई अभिप्राय नहीं। जिस कारागृह के भीतर आ गए तो एक बात पक्की है कि बाहर भी जगत में मुक्ति संभव न हो, जिस समय में मुक्ति संभव न हो, जाया जा सकता है। मगर वे ही लोग जा पाएंगे, जो आज का | उस समय में मरने के अतिरिक्त फिर और क्या होगा? उपयोग कर लेंगे। जीवन है तो दो ही संभावनाएं हैं: मौत या मोक्ष। अगर मोक्ष घंघट में शर्मानेवाली यह निशिगंधा हो ही नहीं सकता तो फिर जीवन का एक ही अर्थ रह 452 2010_03
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________________ पिया का गांव MARATHI गया—मरना, मृत्यु। तो उठे रोज, खाए-पीए रोज, सोए निर्भर है। एक बात खयाल रखना अत्यंत महत्वपूर्ण—कि रोज-सारी तैयारी की, बस मरने के लिए? अंततः मरे! तो राम बनो तो चेष्टा करनी पड़ेगी, रावण बिना चेष्टा के बन सकते सार क्या है? दो दिन पहले मरे तो हर्ज क्या? दो साल पहले हो। रावण बनने के लिए चेष्टा नहीं करनी पड़ती। रावण बिना मरे तो हर्ज क्या? और पैदा ही न होते तो क्या हर्ज था? या पैदा मेहनत के आदमी बन जाता है। जो कुछ भी न बनेगा वह रावण होते मर गए तो क्या रोना! अगर मौत ही होनी है, कुछ और हो बन जाएगा। रावण के भीतर राम सोया है। राम के भीतर रावण ही नहीं सकता, तो फिर जीवन का कोई अर्थ नहीं है। मोक्ष हो | जाग गया है। बस इतना ही भेद है। सकता है इसीलिए अर्थ है। तुम अगर सोए हो तो मैं कहता हूं, जागना भी हो सकता है। मस्ती में गाते हुए मर्द समय, युग की व्यर्थ बातें मत उठाओ। अपनी भूलें स्वीकार धूप में बैठे बालों में कंघी करती हुई नारियां करो। ऐसे बहाने मत खोजो। यह आत्मवंचना है। ये बड़ी तितलियों के पीछे दौड़ते हुए बच्चे तर्कयुक्त तरकीबें हैं अहंकार को बचा लेने की, सुरक्षा की। फुलवारियों में फूल चुनती हुई सुकुमारियां सीधा-सीधा देखो। जहां गलती मालूम पड़ती हो उसे सुधारो। ये सब के सब ईश्वर हैं जहां नीचे का खिंचाव मालूम पड़ता है उसे तोड़ो। जहां ऊपर क्योंकि जैसे ईसा और राम आए थे, उठने में कठिनाई मालूम पड़ती है उसका अभ्यास करो। ये भी उसी प्रकार आए हैं धीरे-धीरे इंच-इंच चलकर मोक्ष निर्मित होता है। और ईश्वर की कुछ थोड़ी विभूति बूंद-बूंद गिरकर सागर भरता है। अपने साथ लाए हैं तो उपदेशको! आओ हम ईमानदार बनें आज इतना ही। और मानवता को डराएं नहीं, बल्कि यह कहें कि जिस सरोवर का जल पीकर तुम पछताते हो। उस तालाब का पानी हमने भी पीया है और जैसे तुम हंस-हंसकर रोते और रो-रोकर हंसते हो इसी तरह हंसी और रुदन से भरा जीवन हमने भी जीया है गनीमत है कि हर पापी का भविष्य है जैसे हर संत का अतीत होता है आदमी घबड़ाकर व्यर्थ रोता है मैं दानव से छोटा नहीं, न वामन से बड़ा हूं सभी मनुष्य एक ही मनुष्य हैं सबके साथ मैं आलिंगन में खड़ा हूं वह जो हारकर बैठ गया उसके भीतर मेरी ही हार है वह जो जीतकर आ रहा है। उसकी जय में मेरी ही जय-जयकार है महावीर तुम्हारी ही जीत हैं। राम तुम्हारी ही विजय-यात्रा हैं। रावण तुम्हारी ही हार है। जीसस तुम्हारी ही बजती हुई वीणा, जुदास तुम्हारा ही टूटा हुआ तार है। दोनों तुम्हारी संभावना हैं-राम और रावण। और तुम पर 453 ___ 2010_03