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________________ पिया का गांव जरूरत होती है तो कोई न कोई पूर्ति करनेवाला पैदा हो जाता है। जन्मता खूब, मरता खूब, पहुंचता कहीं नहीं। धक्कम-धुक्के ही अब हालत बदल गई। अब तो पहले मांग पैदा करो। मांग हो खाता रहता है। धीरे-धीरे धक्का-धुक्के की ऐसी आदत हो या न हो इसकी फिक्र ही छोड़ो। अब तो ऐसा है, पूर्ति है तो मांग | जाती है कि वह चैन से बैठ ही नहीं सकता अकेला, जब तक पैदा की जा सकती है। | भीड़ में न पड़ जाए। जब भीड़ उसे पीसने लगती है सब तरफ अमरीका में आज से दस साल पहले तक वे कहते थे, जिस | से, तभी उसको लगता है जीवित है। आदमी के पास कार नहीं, वह भी कोई आदमी है? अब सब सत्य का मार्ग अकेले का मार्ग है। वह एकांत का मार्ग है। आदमियों के पास कार हो गई। अब क्या करना? क्योंकि कार भीतर जाना है। जो भी चीज बाहर ले जाती है, वह तुम्हें अपने से की फैक्ट्रियां चल रही हैं, उनको चलना ही है। तो अब हर दूर ले जाएगी। जो भी तुम्हारे मन में किसी वासना और तृष्णा को आदमी के पास कम से कम दो कार होनी चाहिए। ऐसा तीन पैदा करती है, वह तुम्हें अपने घर से दूर ले जाएगी। साल पहले तक वे कहते थे कि जिस आदमी के घर में दो कार को तो शुभ है कि ऐसा भाव जगे, कि न अब कुछ पाना है, न कुछ रखने का गैरेज नहीं है वह भी कोई आदमी है! वह भी बात बदल होना है, न कुछ जानना है। इसी गहन भाव में डूबो। डूबकर गई क्योंकि फैक्ट्रियों को तो चलना ही है। अब लोगों के पास अपने ही भीतर जो सब पाने का पाना है, वह पा लिया जाता है। दो-दो कारें भी हो गईं। अब वे कहते हैं चार कार का गैरेज होना जो सब जानने का जानना है, वह जान लिया जाता है। जो सब चाहिए। नए साल के विज्ञापन कह रहे हैं कि चार कार का गैरेज होने का होना है वह हो लिया जाता है। होना चाहिए। चार कार नहीं हैं? तुम भी कोई आदमी हो? तीन आ जाओ कि अब खल्वते-गम खल्वते-गम है हों तो बेचैनी मालूम होगी; चार होनी चाहिए। अब तो दिल के धड़कने की भी आवाज नहीं है हर आदमी के पास कम से कम दो मकान होने चाहिए-एक इन पंक्तियों का अर्थ है कि अब तो केवल दुख का एकाकीपन शहर में, एक जंगल में, या पहाड़ पर, या समुद्र के किनारे। है, अकेलापन है। अब तो दिल भी नहीं धड़कता। अब आ विज्ञापन जोर से करते रहो, लोगों के मन पकड़ लिए जाते हैं। | जाओ! लोगों के मन चलने लगते हैं। बस उनके दिमाग में दोहराते रहो यह निश्चित ही किसी पार्थिव प्रेम के लिए कही गई होंगी। कि ऐसा होना चाहिए। जितना दोहराओ, उतने ही असत्य सत्य आ जाओ कि अब खल्वते-गम खल्वते-गम है मालूम होने लगते हैं। जिनको तुम सत्य मानते हो वे केवल | कि अब तो केवल उदासी और दुख का अकेलापन ही बचा दोहराए गए असत्य हैं। है। अब तो इतना भी कोई साथ देने को नहीं है। अपना दिल भी जब उपनिषद के ऋषि कहते हैं, 'असतो मा सदगमय', तो वे नहीं धड़कता। वह भी साथी न रहा। ऐसा गहन अकेलापन हो यह कह रहे हैं कि ये सत्य तो जो बाहर से सुनाई पड़ रहे हैं, बहुत गया है। अब दिल के धड़कने की भी आवाज नहीं है। सुन लिए। इनसे तो कुछ सत्य मिलता नहीं; अब तो हमें | लेकिन जो परमात्मा की तरफ जा रहा है, जो पिया के घर की वास्तविक सत्य की तरफ ले चलो। ये तो दोहराए हुए झूठ हैं। तरफ जा रहा है, उसका एकाकीपन खल्वते-गम नहीं है। उसका काफी दिनों से दोहराए जा रहे हैं, लोगों को भरोसा आ गया है। एकाकीपन बड़ा आनंदमग्न, अहोभाव से परिपूर्ण है। नाचता तुम जरा अपने जीवन की व्यवस्था और शैली का विश्लेषण हुआ, खिला हुआ है, सुगंधित है। करना। क्यों ऐसे कपड़े पहने हुए हो? क्यों एक खास मार्के की भक्त भगवान को यह नहीं कहता कि मैं बड़ा उदास हूं, बड़ा सिगरेट पीते हो? क्यों एक खास ढंग से चलते-उठते-बैठते दुखी हूं, आ जाओ। दुख में भी क्या बुलाना! भक्त कहता है, हो? विश्लेषण करोगे तो तुम पाओगे, तुम सिर्फ अनुकरण कर अब देखो कैसा नाच रहा! देखो कैसा गुनगुना रहा हूं! देखो रहे हो। और जो अनुकरण कर रहा है, वह परमात्मा तक कभी कैसे फूल खिले हैं, अब तो आ जाओ! कैसा मस्त हूं! कैसा नहीं पहुंचता। वह भीड़ में धक्के-मुक्के खूब खाता है। तुम्हें पीकर मगन हो रहा हूं! दूर से ही तुम्हें देख रहा हूं और मस्ती इसी धक्कम-धुक्की को भारतीयों ने कहा है आवागमन। में डूबा जा रहा हूं। अब तो आ जाओ। 447 ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340153
Book TitleJinsutra Lecture 53 Piya ka Gav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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