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________________ जिन सूत्र भाग: 2 भक्त का एकाकीपन बड़ा आनंदमग्न है। वहां भी दिल के प्रेम की बड़ी अनूठी दुनिया है। वहां भक्त देने को गया है। धड़कने की आवाज नहीं है। आनंद में डूब जाती है दिल के वहां भक्त अपने को न्योछावर करने को गया है। लेकिन तुम धड़कने की आवाज। सब आवाजें आनंद में डूब जाती हैं। प्रेम अपने को दे तभी सकते हो, जब तुम हो। और तुम न्योछावर के सागर में सब डूब जाता है। तभी कर सकते हो, जब तुम्हारे पास कुछ हो। तुम्हारे पास सख ध्यान रखना, परमात्मा को कभी दुख में मत बुलाना। दुख में के फल हों तो ही तुम उसके चरणों में चढ़ा सकोगे। वक्षों के तो सभी बुलाते हैं, इसीलिए तो आता नहीं। दुख भी कोई मौका फूलों को तोड़कर कब तक अपने को धोखा दोगे? ये फूल है बुलाने का? दुख में सभी याद करते हैं, रोते हैं, बिसूरते हैं कि उसके चरणों में चढ़े ही हुए हैं। उनको वृक्ष से तोड़कर तुम उसके आ जाओ, इतना दुखी हो रहा हूं। लेकिन दुख कोई आने की चरणों से छीन लेते हो। चढ़ाते नहीं, मार डालते हो। जिंदा थे, घड़ी ही नहीं है। वसंत में बुलाना, सुख में बुलाना। और तुम मार डाले। जीवंत थे, हवाओं में नाच रहे थे, तुमने तोड़कर नाच पाओगे वह चला आ रहा है। जैसे तुम नाच रहे हो, वैसा ही छीन लिया। अभी और खिलते, खिलना छीन लिया। तुमने नाचता वह भी चला आ रहा है। | परमात्मा के चरणों से हटा लिया और गए और किसी मंदिर की सुख में ही मिलन होता है। तुम जितने सुखी हो जाओ उतना मुर्दा पत्थर की मूर्ति पर जाकर चढ़ा आए। खूब धोखा दे रहे हो! मिलन आसान हो जाएगा। परमात्मा भी दुखियों से बचता है, किसको धोखा दे रहे हो? खयाल रखना। दुख दूरी है। कौन किसके दुख में साथ खड़ा अपने आनंद के फूल जब चढ़ाओगे, तो ही उसके चरणों पर होता है? लेकिन लोग दुख में ही उसे बुलाते हैं। दुख की चढ़ते हैं। और तब किसी मंदिर में जाने की जरूरत नहीं। तुम आवाज उस तक नहीं पहुंचती। पहुंचनी भी नहीं चाहिए क्योंकि जहां हो, उसके चरण तुम्हें खोजते हुए वहीं आ जाते हैं। तुम्हारे दुख की आवाज बेईमान है। तुम परमात्मा को थोड़े ही बुला रहे हाथ बस फूलों से भरे हों, उसके चरण तुम्हें खोजते हुए निश्चित हो! तुम सुख को बुला रहे हो। तुम कहते हो इतना दुखी हूं। आ ही आ जाते हैं। जा, तो थोड़ा सुखी हो जाऊं। तुम्हारी प्रतीक्षा सुख की है। जब तुम सुख में परमात्मा को बुलाते हो तो तुम परमात्मा को ही दूसरा प्रश्न : जैन दर्शन कहता है कि इस आरे में मोक्ष संभव बुलाते हो, क्योंकि सुख तो आ ही गया है। जब कोई सुख में | नहीं है। बार-बार मेरी समकीत का वमन या उपशम होने का प्रार्थना करता है तो उसकी कोई मांग नहीं होती। उसकी प्रार्थना | क्या यही कारण तो नहीं है? मोक्ष यहीं और अभी है इस मांग-मुक्त होती है। क्योंकि मांगने को क्या है? जब दुख में | धारणा को पकड़ लेना क्या एक आत्मवंचना नहीं है? प्रार्थना करते हो तो क्षुद्र मांगें उठती हैं। भक्त तो कहता है जैन दर्शन क्या कहता है इसका कोई मूल्य नहीं है। जिन क्या तू जो कहे तो दिल भी दूं, जान भी , जिगर भी दूं कहते हैं इसका मूल्य है। जैन दर्शन तो पंडितों ने निर्मित किया। गो मैं गदाए-इश्क हूं मुझको न बेनवां समझ पंडित तो बड़ी तरकीबें खोजता है। एक तरकीब सदा से पंडित यद्यपि मैं प्रेम का भिखारी हूं, लेकिन मुझे कंगाल मत | की रही। वह सदा यह कहता है कि जो अतीत में संभव था, वह समझना। भक्त भगवान से कहता है। माना कि तेरे द्वार पर | अब संभव नहीं है। भीख मांगने के लिए खड़ा हूं लेकिन मुझे कंगाल मत समझना। मुसलमान कहते हैं-मुसलमान पंडित—कि पैगंबर अब तू जो कहे तो दिल भी दूं, जान भी दूं, जिगर भी दूं नहीं होंगे। जो मोहम्मद के लिए संभव था, वह अब किसी और गो मैं गदाए-इश्क हूं के लिए संभव नहीं है। -प्रेम का भिखारी हूं। अगर ऐसा ही है तो परमात्मा बड़ा कृपण मालूम होता है, बड़ा मुझको न बेनवां समझ कंजूस मालूम होता है। एक मोहम्मद को पैदा करके चुक गया? —लेकिन मुझे कंगाल मत समझ; देने को आया हूं। बहुत बांझ मालूम होता है। और अन्यायी भी मालूम होता है। 1448 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340153
Book TitleJinsutra Lecture 53 Piya ka Gav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
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