SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन सूत्र भागः 2 गुरु ने ठीक कहा। भीड़ तो मैं साथ ले आया हूं और कहता हूं, मैं तो अगर एकांत में आनंद आने लगा, एकांत में सुगंध आने अकेला आया हूं! | लगी, एकांत में धूप जलने लगी, एकांत में रस बहने लगा तो अकेला होना तो बड़ी उपलब्धि है। मगर उस अकेलेपन का शुभ लक्षण है। उसका अर्थ है, अब अकेले में भी अकेलापन अर्थ होता है एकांत। जब तुम्हें अकेले में आनंद आने लगे तो | नहीं है। अब अकेले में भी कुछ भरापन है। अब अकेला भी एकांत बरसा। अकेले में आनंद कब आता है? अकेले में खालीपन नहीं है, अनुपस्थिति नहीं है। बल्कि किसी की आनंद तभी आता है, जब परमात्मा की थोड़ी झलक मिलने अप्रगट, अदृश्य उपस्थिति का अनुभव होने लगा है। लगे; नहीं तो नहीं आता। अकेले में आनंद तभी आता है, जब 'एकांत अब प्रीतिकर लगता है...।' वस्तुतः तुम अकेले नहीं होते हो, परमात्मा तुम्हें घेरे होता है। ध्यान कहो, प्रार्थना कहो, तभी शुरू होती है जब एकांत प्रसिद्ध ईसाई फकीर स्त्री हुई-थेरेसा। एक दिन उसने गांव प्रीतिकर लगने लगता है। में घोषणा की कि मैं एक बड़ा चर्च बनाने जा रही हूं। लोग हंसने ...अब न कहीं जाना है न आना; न कुछ होना है, न कुछ लगे। वह भिखमंगी थी। उसके पास कुछ भी न था। लोगों ने जानना!' अब कोई जरूरत भी नहीं। जाना-आना, पूछा, तेरे पास है क्या? चर्च बनाएगी कैसे? चर्च ऐसे कोई जानना-होना, सब दौड़ है। सब बाहर ले जाती है। जब कोई आकाश से नहीं बनता। और तू, सुना है कि सोचती है, दुनिया अपने भीतर डूबने लगे तो न कुछ जानने को बचता, न कुछ होने का सबसे सुंदर चर्च बन जाए! कोई खजाना मिल गया है तुझे? | को बचता। सब दौड़ गई। आदमी घर लौट आया। विश्राम का उसने खीसे से दो पैसे निकाले और उसने कहा कि ये मेरे पास क्षण आया। विराम आया। ने लगे। उन्होंने कहा कि हमें शक तो सदा से था इस विराम की हमें कोई अनभति नहीं है. इसलिए खतरा भी कि तू पागल है। दो पैसे में चर्च? उसने कहा, ये दो पैसे, मैं है। खतरा यह है कि मन सोचने लगे, क्या कर रहे हो और + ईश्वर। उसको क्यों भूले जाते हो? वह जो मुझे चारों बैठे-बैठे? कुछ तो करो। मन की पुरानी आदतें प्रबल हैं। तरफ से घेरा है, उसे भी जोड़ में रखो। अकेले दो पैसे और संस्कार गहन हैं। वह फिर उधेड़-बुन पैदा कर सकता है। थेरेसा से तो चर्च नहीं बन सकता, यह सच है। लेकिन थेरेसा, इसलिए सावधान रहना। दो पैसे और + ईश्वर; चर्च बनेगा या नहीं, यह कहो। पागल मैं | विराम तो स्वीकार कर लेना, विश्राम तो करना, लेकिन हूं, या पागल तुम हो? विश्रांति को असावधानी मत बनने देना। अगर विश्रांति में लेकिन उन लोगों की बात भी ठीक थी। उनका गणित | | असावधानी आ जाए तो मन के खेल बड़े प्राचीन हैं। मन फिर साफ-सुथरा था। उन्हें तो दो पैसे, और गरीब औरत थेरेसा | कुछ खेल निकाल ले सकता है। क्योंकि मन सदा व्यस्त रहना दिखाई पड़ रही थी। वह जो परमात्मा उसे घेरे था, वह तो केवल | चाहता है। मन चाहता है, कुछ करते रहो, कुछ होते रहो, कुछ | उसे ही दिखाई पड़ रहा था। चर्च बना। और कहते हैं, दुनिया का पाते रहो। मन तो भिखारी का पात्र है, जो कभी भरता नहीं। कुछ सुंदरतम चर्च बना। उस जगह, जहां थेरेसा ने वे दो पैसे लोगों | न कुछ डालते रहो...डालते रहो, पात्र खाली का खाली रहता को दिखाए थे, वह चर्च प्रमाण की तरह खड़ा है कि अगर | है। मन तो याचक है। परमात्मा का साथ हो तो तुम अकेले नहीं हो। और जब कहीं नहीं जाना, कुछ भी नहीं होना, शांत बैठे हैं तो अकेले होकर अकेले नहीं हो, अगर परमात्मा का साथ हो। मन बड़ा बेचैन होगा। सावधानी रखना। नहीं तो मन बने हए अगर परमात्मा का साथ न हो तो तुम भीड़ में भी अकेले हो। | एकांत को खंडित कर सकता है। जरा-सी हवा की लहर शांत मित्र हैं, प्रियजन हैं, संबंधी हैं, सगे हैं। कभी खयाल किया, | झील को फिर लहरों से भर देती है। जरा-सा झोंका दीये की लेकिन कहीं अकेलापन मिटता है? कंधे से कंधे लगे हैं। भीड़ | ज्योति को फिर कंपा जाता है। मन का जरा-सा झोंका अब यह में, जमात में खडे हो. लेकिन अकेले हो। आदमी भीड में भी हो | खतरनाक हो सकता है। तो अकेला है। भक्त अकेला भी हो तो अकेला नहीं है। इसलिए महावीर ने कहा है, कि जब ध्यान भी सध जाए, यहां Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.340153
Book TitleJinsutra Lecture 53 Piya ka Gav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages1
LanguageHindi
ClassificationAudio_File, Article, & Osho_Rajnish_Jinsutra_MP3_and_PDF_Files
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy