________________ जिन सूत्र भाग : 2 - हम जो खोजते हैं वही हो जाते हैं। संभव है कल बोले भी तो स्वीकार न हो तुम कभी गौर से देखो। धन खोजनेवाले आदमी को तुम गौर | यह भी मुमकिन है, कल रूठने-मनाने को से देखो। उसकी शक्ल पर वैसी ही भावदशा बन जाती है जैसी यह रात न हो, यह बात न हो, यह प्यार न हो रुपयों पर होती है—वैसी ही घिसी-पिटी, चली-चलाई, हजार | हरेक भक्ति के साथ चल रही विरक्ति हाथ में गुजरी, घिनौनी। कंजूस आदमी के चेहरे को देखो। वैसा | हरेक राग का आंचल पकड़े है विराग ही चेहरा लगने लगता है। जैसा घिसा-पिसा रुपया। कई हाथों खिड़की पर ऐसे ही फिर न घटा अंगड़ाएगी से चल-चलकर चिकना हो गया। तेल-सा बहता मालम होता करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो है चेहरे से। यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा कामी आदमी को देखो। तो उसकी आंखों में एक कामना का भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो ज्वर, एक बुखार, एक उत्ताप। जिसने गाया है, शायद सांसारिक प्रेम के लिए गाया है, लेकिन परमात्मा के खोजी को देखो, परमात्मा है या नहीं छोड़ो। परमात्मा के प्रेम के लिए भी बात इतनी ही सही है। क्योंकि बिना खोजे पता भी कैसे चलेगा कि है या नहीं-छोड़ो। करना है तो तुम ब्याह सपन का अभी करो लेकिन परमात्मा के खोजी को देखो। परमात्मा न हो, परमात्मा यह समय दुबारा लौट नहीं आएगा के खोजी तो हैं: उनको देखो। परमात्मा हो या न हो, वे धीरे-धीरे भरना है तो मांग मिलन की अभी भरो परमात्म-रूप हो जाते हैं। अभी के अतिरिक्त कोई और 'कभी' है भी नहीं। कभी पर खुदा न सही आदमी का ख्वाब सही टाला तो सदा के लिए टाला। कहा 'कल', तो फिर कभी कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए संभव न हो सकेगा। यही समय है तुम्हारे पास। पंचम काल और कल पर मत टालो क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं। जो कहो, कलियुग कहो, भ्रष्ट, पतित, पापी-मगर यही समय है करना है आज कर लो। जो करना है अभी कर लो। क्योंकि तुम्हारे पास। इससे अन्यथा तुम्हारे पास कोई काल है नहीं। अभी के तुम मालिक हो। कल के तुम मालिक नहीं। यही समय कीचड़ में ही पड़े हो माना; लेकिन कमल कीचड़ में ही पैदा तुम्हें मिला है। बंधन चाहो तो हो सकता है। मोक्ष चाहो तो हो | होते हैं। कीचड़ को दोष मत देते रहो, कमल होने की चेष्टा सकता है। | करो। और ध्यान रखो, महावीर के समय में सभी महावीर न थे। अब यह बड़े मजे की बात है। बंधन तो पहले भी होता था, | सभी कीचड़ कमल नहीं हो गए थे। और आज भी सभी कीचड़ बंधन अब भी होता है। मोक्ष पहले ही होता था, मोक्ष अब नहीं | कीचड़ नहीं हैं। आज भी कीचड़ में कोई कमल खिला है। होता। यह तर्क जरा जंचता नहीं। बीमारी पहले भी होती थी, लेकिन अगर तुमने एक बार यह मान लिया कि आज हो ही नहीं स्वास्थ्य पहले भी होता था, बीमारी अब भी होती है, स्वास्थ्य | | सकता तो महावीर भी तुम्हारे सामने खड़े हो जाएं, तुम कहोगे अब नहीं होता। जो आदमी बीमार हो सकता है, वह स्वस्थ क्यों किसी ने स्वांग भरा है। महावीर हो ही नहीं सकते। नहीं हो सकता? और जिस आदमी के हाथ में जंजीरें पड़ सकती| मगर यह तुम्हारी दृष्टि महावीर को कोई नुकसान नहीं हैं, वह जंजीरें क्यों नहीं तोड़ सकता? | पहंचाती, तम्हीं को नुकसान पहंचाती है। अगर महावीर नहीं हो जब कारागृह के भीतर आने का उपाय है तो जिस दरवाजे से सकते तो फिर तुम गए। फिर तुम्हारा कोई भविष्य नहीं। फिर भीतर आया जाता है, उसी से तो बाहर भी जाया जाता है। जब तुम किसलिए हो? फिर तुम्हारा कोई अभिप्राय नहीं। जिस कारागृह के भीतर आ गए तो एक बात पक्की है कि बाहर भी जगत में मुक्ति संभव न हो, जिस समय में मुक्ति संभव न हो, जाया जा सकता है। मगर वे ही लोग जा पाएंगे, जो आज का | उस समय में मरने के अतिरिक्त फिर और क्या होगा? उपयोग कर लेंगे। जीवन है तो दो ही संभावनाएं हैं: मौत या मोक्ष। अगर मोक्ष घंघट में शर्मानेवाली यह निशिगंधा हो ही नहीं सकता तो फिर जीवन का एक ही अर्थ रह 452 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org