Book Title: acharanga sutra part 01
Author(s): Manekmuni
Publisher: Mohanlal Jain Shwetambar Gyan Bhandar
View full book text
________________
[२६४
आयरिणा गुपणाए आणावह सोउणियय पुरि सेहि लिब्बुक्कड दम्बेहिं संघिय पुत्वं तहिं खारं ॥५॥ पक्खित्तो जत्थणरो णवरं गोदोह मेत्त कालेणं णिजिण्ण मंस सोणिय अद्वियसेसत्तण मुवेइ ॥६॥ दोताहे पूव्वमए पुरिसे आणावए तहिं राया एगं गिहत्य वेसं, बीयं पासंडी'णे वत्थं । ७॥ पुव्वं चिय सिक्ख विए, ते पुरिसे पुच्छे ए तहिंराया। को अवराहो एसिं ? भणंति आणं अइक मह ॥८॥ पासंडिओ जहुत्ते ण वइ अत्तणो य आयारे पक्खि वह खार मजझे, खित्ता गोदोह मेत्तस्स॥९॥ दठुण द्विव सेसे, ते पुरिसे अलिय रोसरत्तच्छो सेहं आलायतो, रायातो भणइ आयरियं ॥१०॥ तुम्हवि कोवि पमादी? सासेमिय तंषि णस्थि
भणइ गुरू, जइ दोहि तो साहे, तुम्हे चिय तस्स जाणि हिह॥११॥ सेहो गए णिवंमी, भणई ते साहुणो उण पुणत्ति होहं पमाय सीलो तुम्हं सरणागो घणियं ॥१२॥ जइ पुण होज पमाओ, पुणो ममं सड्ढ भाव रहि
यस्स तुम्ह गुणेहिं सुविहिय, तो सावग रक्खसा मुच्चे ॥१३॥

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300