Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

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Page 418
________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ ૩૦૫ दाल - हिय वलितां वलि स्वामि हणादइपुरि भेट्या जिन वेलांगरी, कालं(दरि)झरि(?) पुरि ठामि प्रमुख नयर प्रभु बंद्या मनि ऊलट धरी ए ॥१७॥ कुशलम संपत सोवनगिरिवर शुभ सुकने निज घरि बली ए| पंधा जिनवर पास आसज मनतणी जिनवर दरसणि सषि फली ए ॥१८॥ से(? जे)समरई अरिहंत तसु घरि संपदा कित्तिरयण सिरि सो घरइए। सेय्यां हर्षपिशाल प्रमोद अंगि बली हर्पधर्म ते मनि धरइ ए ॥ १९॥ गच्छ खरतर सिणगार थीजिनचंदसूरि सांनिधि तीरथ घंदिया । घात्र(? गाय )कमांहि प्रधान साधुमंदिरगणी सीस हु (इण) परि गुण गाधिपा ए ॥२०॥ -इम नयर धीजाल र अरखुद सकल तीरथ वंदिया, सोलसागताल (१६४१) वरसइ माघ मासि आणंदिया। मुनि पिमलरंग मुसीस लब्ध मन कहोटड़ा गुप भण्या, जे चिस चोख हदय राखइ तेह पामइ सुख घणा ॥२१॥ पंचनदीसाधन गीत राग भाशार्गदहाधीक्षकदर हरषित कन, फराद आनंद । पंचनदी साधन नणी, बीनदीप जिनद ॥ ६ ॥ सुन पेला मुर पालाद, सुमसुमने तुम वारि ! मुलवालि संपक्षासर, काम तु करद विहार ॥२॥ -- -

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