Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

View full book text
Previous | Next

Page 442
________________ चरित्रनायकना शिष्य महोपाध्याय श्रीरत्ननिधानजी गणिवरकृत. - गुरुगुणगीत. देशी भर्तनी जुगवर श्रीजिनचंदजी, जगि जिनसासन चंद रे। प्रहसमे ऊठी पूजिये, कामित सुरतरु कंद रे॥१॥ जुग० । संवत पनर पंचाणुये, श्रीवंत साह मल्हार रे। . मात सिरियादेवी जनमियो, रीहड कुल सिणगार रे ॥२॥ जुग०॥ संवत सोल चिडोतरे (१६०४), जाणी जेणे अथिर संसार रे। हाथे जिनमाणिकसूरिने, संग्रह्यो संजम भार रे ॥३॥ जुग० । वयर कुमार तणी परे, लघु वये वुद्धि भंडार रे। गुरुकुलवासे वसि पामियो, प्रवचन सागर पार रे ॥४॥ जुग०। संवत सोल वारोत्तरे, जेसलमेर मजारि रे। भाग्य वले सूरि पदवीलही, हरखिया सविनर नारि रे॥५॥ झुग०। कठिण क्रिया जेणे ऊधरी, मांडियो उग्र विहार रे। सूरि जिनवल्लभ सारिखो, चरण करण गुण धार रे ॥६॥ जुग०। पाटण सोल सतरोत्तरे, च्यार एसी गच्छ साखि रे। खरतर विरुद दीपावीयो, आगम अक्षर दाखि रे ॥ ७ ॥ जुग०। सोरिपुरे हथिणाउरे, विमलगिरि गढ गिरिनारि रे।। तारंग अरवुद तीरथे, जात्रा करी बहु चारि रे ॥ ८॥ जुग०। अकवर साहि परिखियो, कसवटि कंचण जेम रे। पूज्यनी मधुर देसना सुणी, रंजियो साहि सलेम रे ॥९॥जुग० । सात दिवस वरतावियो, माहि दुनिया अभय दान रे। पंचनदीपति साधीया,वाधियो अति घणोवान रे ॥१०॥ जुग०। राजनगर प्रतिष्ठा करी, सवल मंडाण गुरुराई रे। संघवी सोमजी लाछिनो, लाह लिहाई रे ॥१॥ जुग० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 440 441 442 443 444