Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni
View full book text
________________
३२८
परिशिष्ट () नव त(त्त्व)त मेरी कंगुरी (किन्नरी)रे, जीवदया तंत सारं। जे कंगुरी(किन्नगरी)वावइ अरिहंत ध्यावइ, ते पावइ भवपारं ॥५॥जो. वाणी श्रुत रंग सिंगी पूरं, नासइ दुप्कृत पूरं । कानइ मोरइ तप मुद्रा दीपइ, जीपइ चंदनई सूरं ॥ ६॥ जोगी। समता अंगि विभूति लगाउं, विनइ जटासु रखाउं । मेखलि मौनि महाव्रत कथा, पहिरि परमपद पाउं ॥ ७॥ जोगी। शील गु(ण)ण्ड (१) तिन डंपति जोगवटउ, दीनउ गुरु हितकारं । ज्ञान मढी थिर आसन बइठउ, मंत्र ज(पइ)पुं नवकारं ॥८॥ जोगी० भावना भूमि खिमा मोरी सिज्या, सोवत सयर सुरंगो। सुगुरुवचनसुणी मोहनिद्रामिसि, राव(?)लणी सिवरंगो॥९॥जोगी० खपर खाइ संघ(संथा) रइ सोवंइ, भार जटा सिव धारइ । जोगी नाम विगोवइ कां रे, जिणमत विण भ(व)हारइ ॥१०॥जोगी० आदीसर जिनशासन जोगी, नेमिनइ थूलिभद्र राया। जेहनइ लामइ पाप पुलायइ, निर्मल होवइ काया ॥ ११॥ जोगी० पूरि मनोरथ वीर जोगीस, 'ढिलीपुर' प्रभु (राया) जाणी। *जोगी वाणी 'जिनचंद सूर' हि, रंगइ एम वखाणी ॥ १२॥ जोगी *पाठांतर-श्रीजिन चंदसुरिसर इणपरि, जोगीकुं समझाया॥१२॥जो० .

Page Navigation
1 ... 439 440 441 442 443 444