Book Title: Yuga Pradhan Jinachandrasuri
Author(s): Durlabhkumar Gandhi
Publisher: Mahavirswami Jain Derasar Paydhuni

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Page 435
________________ ३२२ परिशिE (४) अणहिल्ल पत्तन मंडन. ८-शांति जिन स्तवन (राग केदारा गौडी) देखउ माई! आसा मेरइ, मनकी सयल फली रे । उलट अंगि न माइ मेरउ, प्रभुवान चडावइ रे, मोहन सरूप रे, सेवउ श्रीसंति जिनराय ॥१॥ देखउ० । सुरतरु अंगणि सफल फल्यउ, पिसुन लुलइ मेरइ पाय, नवनिधि रिद्धि सिद्धि संपद भली, सहज मिली मुझ आय ॥२॥ देखउ०॥ पूरव भव राख्यऊ सरण पारेवउ, ए जस त्रिभुवन गाइ । महिर करउसेवक भणी, जिम दुख दूरि पलाइ ॥३॥ देखउ०। जनम जिणंद तणइ असिव दम्य उ, तिण नाम संति सुहाइ। नीकीहो लीला प्रभु! ताहरी, चकि जिनराज कहाइ ॥४॥ देखउ०। अणहिल्ल पाटणि भेटियउ, चरण नमुं चित लाइ। श्रीजिनचंदसूरि इम भणइ, नितु नितु तेज सवाइ॥५॥ देखउ०। ९-पार्श्वजिन लघु स्तवन जगदानंदन जिनवर पाया, पाया परम प्रमोद पसाया। साया संतति संपति साधी, साधीना हवइ जे अपराधी ॥१॥ आपणा पूंजिणसुं प्रेरीजइ, रीजइ जउ मूरति देखीजइ । देखीजइ आवइ सुभ भावइ, भावइ जे मनि ते सवि पावइ ॥२॥ अनुपम रूप त्रिजगजन तारण, रण विवाद प्रमाद निवारण । वारण कुमत महीरुह भंगइ, भंगइ विविध भजउं प्रभु रंगइ ॥ ३॥ पावन वावन चंदन सारइ, कुंकुम अगरु कुसुम घनसारइ।, रचइ भगति जे धन अनुसरइ, ते दुख दुरगति मूल विसारइ॥४॥ तुझ पद पंकज मुझ मन भमरउ, लीण रह्यर छइ ऊउ इणि भमरउ। मइगल विंझ वणइ उडागडड. पदरी वन तिम किमइ न राचइ॥५॥

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